भागलपुर से पूर्णिया जाते समय गंगा नदी पार करते ही नवगछिया के आगे सड़क के दोनों तरफ हरे भरे धान के खेतों के साथ ही केले और लीची के बड़े बड़े बागान शुरु हो जाते हैं। रास्ते में कच्चे अधपके केले के लदे ट्रकों के साथ ही जगह जगह कुछ बच्चे डाल से पके केले बेचते नजर आते हैं। हम रुक कर केले के भाव पूछते हैं। क्या आप यहां दिल्ली में बैठकर भागलपुर-पूर्णिया के रास्ते में केले के भाव का अंदाज लगा सकते हैं। दिल्ली में जबकि केला 50-60 रु। दर्जन के भाव बिक रहे हों, नवगछिया के आसपास सड़क किनारे हमें दस रु। में बीस केले मिल गए। बाद में दूसरा बच्चा उतने ही पैसों में दो-ढाई दर्जन केले देने की बात भी करने लगा। यह हालत तब है जबकि इस साल मानसून के दगा दे जाने और गरमी के जारी रहने के कारण केले की फसल अपेक्षाकृत कमजोर हुई है। केले भी क्या, हरी छाल के पके केले का शहद की तरह मीठा स्वाद गजब का। धान की खेती भी अजीब तरह की। किसी खेत में धान कट रहा है तो किसी में पकने की स्थिति में है जबकि साथ लगे किसी और खेत में नई फसल रोपी गई है। रास्ते में झील-तालाबों में मखाने की निकासी भी चल रही है। डूमर में मिलती हैं सुलेखा देवी। उनकी दुकान पर रुकना राहगीरों का चलन सा गया है। कई भट्ठियों में दूध, गरम करने से लेकर घी निकालने और खोया पकाने का काम सत्त रूप से जारी है। उनकी दुकान का, पेड़ा, दही-चूड़ा का नाश्ता और शुद्ध घी बड़ा मशहूर है। प्रायः हर कोई वहां रुककर चूड़ा में गरम दूध, सजी हुई दही और राब -गुड़ का ही एक रूप- मिलाकर परोसा जानेवाला नाश्ता-भोजन जरूर करता है। लौटते समय पेड़ा और घी जरूर ले जाता है। दुकान की देखरेख से लेकर हिसाब किताब सुलेखा और उनके बच्चों के जिम्मे है। कभी कभी उनके पति महेंद्र भी हाथ बंटाते हैं। चुनाव के बारे में पूछने पर जवाब में संकोच के साथ कहती हैं कि उन्हें ज्यादा इसके बारे में नहीं मालूम। थोड़ा कुरेदने पर जवाब मिलता है कि सब लोग अलग-अलग बातें करते हैं। नीतीश जी ने भी काम ठीके किया है। लेकिन मोदी जी से भी उम्मीद है। देखें वोट के दिन क्या होता है।
डूमर से आगे बढ़ने पर एक रास्ता कटिहार और दूसरा पूर्णिया की ओर जाता है। यहीं से सीमांचल का इलाका शुरु हो जाता है। सीमांचल इन दिनों बिहार विधानसभा के चुनाव के मद्देनजर प्रायः सबकी जबान पर है। इसलिए नहीं कि यह पिछले विधानसभा और खासतौर से लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के महागठबंधन के मजबूत राजनीतिक किले के रूप में सामने आया था। लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की तमाम चुनावी लहर के बावजूद इलाके की सभी लोकसभा सीटों-कटिहार, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और साथ लगे मधेपुरा में भी भाजपा-राजग विरोधी उम्मीदवार चुनाव जीते थे। हालांकि इनमें से कटिहार से तारिक अनवर और मधेपुरा से सांसद पप्पू यादव ने मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर अलग तीसरा समाजवादी धर्मनिरपेक्ष मोर्चा बना लिया है। सीमांचल की चर्चा इस बार इसलिए भी नहीं हो रही कि पिछले विधानसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान इसी इलाके में शुरू हुआ था और इस बार इस इलाके में मतदान अंतिम चरण में यानी 5 नवंबर को है। कारण चुनाव आयोग बेहतर बता सकता है।
बिहार विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम बहुल सीमांचल का महत्व इस बार इसलिए बढ़ गया है कि यहां पहली बार हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन’ -एआईएमआईएम-ने भी 24 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। असदुद्दीन और उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी यहां बड़ी राजनीतिक रैलियां भी कर चुके हैं। अपने जहरीले भाषणें के लिए अकबरुद्दीन के खिलाफ मुकदमा जारी कर उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया है। इससे पहले तेलंगाना के बाहर महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भी एआईएमआईएम ने हाथ आजमाए थे। दो-तीन सीटें भी जीती लेकिन दर्जन भर सीटों पर कांग्रेस और एनसीपी की हार का कारण उनके ही उम्मीदवार बने थे। शायद यह भी एक कारण है कि सीमांचल में उनके चुनाव लड़ने की घोषणा करने के साथ ही यह बात पूरे बिहार में फैल गई कि वह भाजपा और अमित शाह की चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं। हालांकि असदुद्दीन ओवैसी इससे इनकार करते हैं और तर्क देते हैं कि हरियाणा, झारखंड और कई अन्य राज्यों में उनकी पार्टी चुनाव नहीं लड़ी थी, इसके बावजूद उन राज्यों में भाजपा कैसे जीत गई और फिर वह तो बिहार में कम ही सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। लालू प्रसाद के करीबी रहे सांसद पप्पू यादव, उनके समधी मुलायम सिंह यादव और तारिक अनवर का गठबंधन तो सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में कौन किसका वोट काट रहा है?
सीमांचल की तकरीबन डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटों पर चुनावी हार जीत का फैसला मुसलमान मतदाता आमतौर पर मुसलमान उम्मीदवारों के बीच ही करते हैं। यहां अधिकतर सीटों पर उनकी संख्या 40 से 65 फीसदी तक बताई जाती है। यहां बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ भी चुनावी मुद्दा बनते रहा है। नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे किशनगंज में मिले कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र के मोहम्मद सादिक इकबाल उर्फ भोला बाबू के अनुसार ओवैसी की तकरीर अच्छी होती है। लोग उन्हें सुनने भी जाते हैं लेकिन इस चुनाव में उनकी पार्टी एक दो सीटों को छोड़ दें तो कहीं फैक्टर नहीं है। पहले जब वह यहां आए थे तो लागों को लगा कि आदमी पढ़ा लिखा और समझदार है। तकरीर भी अच्छी करता है लेकिन बाद में लगने लगा कि वह सेकुलर वोटों में बंटवारा कर भाजपा की मदद के इरादे से आए हैं। बिहार के लोग बुद्धू थोड़े न हैं। सच तो यह है कि उन्हें उम्मीदवार तक नहीं मिल रहे हैं। पहले 24 सीटों पर लड़नेवाले थे अब छह सीटों पर लड़ने जा रहे हैं। इकबाल की मानें तो पूरे बिहार में मुसलमानों को अपने वोट को लेकर इस बार किसी भी तरह का कनफ्यूजन-संशय-नहीं है। इक्का दुक्का अपवादों को छोड़ दें तो मुसलमान नीतीश-लालू और कांग्रेस के महागठबंधन के साथ ही जाएंगे। इस मामले में सीमांचल भी अपवाद नहीं है। हालांकि कुछ सीटों पर यहां भाजपा का भी अपना असर है। यहां के शेरशाहबादी मुसलमान भाजपा के साथ ही खड़े होते हैं। भोला बाबू के अनुसार बातें कोई कुछ भी करे, चुनाव आते-आते लड़ाई भाजपा गठबंधन और महागठबंधन के बीच ही रह जाएगी। ओवैसी की पार्टी और पप्पू, मुलायम और तारिक अनवर का तीसरा मोर्चा भी हाशिए पर ही नजर आएंगे। लेकिन उनके उम्मीदवार अगर कुछेक हजार वोट भी झटक लिए तो नुकसान तो महागठबंधन का ही होगा।
पूर्णिया में मिले भूपेंद्रनारायाण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के प्रो वाइसचांसलर जयप्रकाश नारायण झा भी बताते हैं कि इलाके में केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि पिछड़ी और कुछ हद तक अगड़ी जातियों के लोग भी नीतीश कुमार के विकास कार्यों के कायल हैं। उनके अनुसार पहले पूर्णिया, कटिहार में सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई थीं। पूर्णिया से मधेपुरा जाने की सड़क पहले इतनी खराब थी कि मधेपुरा जाने में चार पांच घंटे लग जाते थे, गाड़ी अक्सर खराब होती रहती थी लेकिन नीतीश कुमार ने सड़क ऐसी बनवा दी कि वही दूरी अब दो ढाई घंटे में पूरी हो जाती है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी 20-22 घंटे बिजली की सप्लाई के लिए बिहार के लोग नीतीश कुमार के कृतज्ञ हैं लेकिन वह यह भी मानते हैं कि नीतीश ने लालू प्रसाद के साथ जाकर अपना नुकसान किया है। उनके अनुसार चुनाव में लड़ाई सत्ता के दावेदार दोनों मुख्य गठबंधनों के बीच ही होनेवाली है। कहीं कहीं, जहां दोनों गठबंधनों ने खराब और कमजोर उम्मीदवार दिए हैं, वहां ओवैसी और पप्पू यादव के मजबूत उम्मीदवार बाजी मार सकते हैं या किसी का खेल खराब कर सकते हैं।
सीमांचल में ओवैसी की राजनीतिक उम्मीदें पूर्व विधायक अख्तरुल ईमान पर टिकी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले वह जद -यू- के विधायक थे। जद -यू- ने उन्हें लोकसभा चुनाव में किशनगंज से कांग्रेस के मौलाना असरारुल हक के खिलाफ उम्मीदवार बनाया था लेकिन इस्लाम के अंतर्राष्ट्रीय विद्वान एवं धर्म गुरु की हैसियतवाले असरारुल हक के ही फिरके के अख्तरुल ईमान स्थानीय दबाव में चुनाव मैदान से हट गए थे। जद यू ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। तेलंगाना और महाराष्ट्र से बाहर भी राजनीतिक पांव पसारने की कवायद में जुटे असदुद्दीन ओवैसी की निगाह उन पर पड़ी और उनके ही प्रयासों से किशनगंज में उनकी पहली बड़ी रैली आयोजित हुई। अख्तरुल ईमान अभी एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं। किशनगंज में मिले स्थानीय पत्रकार नीरज बताते हैं कि अख्तरुल ईमान ने उस समय कहा था कि उन्होंने सेक्युलर जमात को ताकत देने के लिए राजनीतिक शहादत दी है। अब वह ओवैसी से मिलकर उस ‘शहादत’ की कीमत वसूल करना चाहते हैं।
बिहार में कांग्रेस के एक पूर्व विधायक एवं वरिष्ठ अल्पसंख्यक नेता बताते हैं कि बिहार में एआईएमआईएम की एंट्री गलत मौके पर हो गई। कांग्रेस, राजद और जद यू से बहुत प्रसन्न नहीं होने के बावजूद सांप्रदायिक भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के नाम पर उनका साथ दे रहे मुसलमान आवैसी को ‘वोट कटवा’ से अधिक नहीं मान रहे। लेकिन कांग्रेस के इस वरिष्ठ अल्पसंख्यक नेता को इस बात का डर भी सता रहा है कि ओवैसी बंधुओं के जहरीले भाषणें के कारण कहीं बिहार में सांप्रदायिक तनाव बढ़कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण न होने लगे। हालांकि कहने के लिए ओवैसी और उनके समर्थक सीमांचल के पिछड़ेपन को ही अपना चुनावी मुद्दा घोषित कर रहे हैं। कोचाधामन के दूरस्थ महेनगांव के पास मिले अख्तरुल ईमान बिहार में अन्य जिलों के मुकाबले, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं विकास के अन्य मुद्दों के तुलनात्मक आंकड़े देकर समझाते हैं कि कांग्रेस से लेकर राजद और जद -यू- के शासन में भी लगातार सीमांचल की उपेक्षा ही की गई है।