आशय साफ है कि संघ भाजपा के अंदरूनी झगड़ों को ज्यादा महत्व न देकर अपने एजेंडे पर काम करने की रणनीति तैयार कर रहा है। जिसमें राम मंदिर का निर्माण, ज्यादा से ज्यादा युवाओं को संघ की विचारधारा से अवगत कराना, ईसाई समुदाय के बीच में पकड़ बनाना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिल रहे आरक्षण की समीक्षा के अलावा कुछ महत्वपूर्ण विधेयक हैं जिनको लागू कराना है। संघ का यह एजेंडा यह तभी पूरा होगा जब चुनावी राज्यों में भाजपा की सरकार बनेगी। संघ के शीर्ष रणनीतिकार के मुताबिक भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय हुई है लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि संघ अन्य राज्यों के चुनाव में मेहनत नहीं करेगा। रणनीतिकार के मुताबिक जब भाजपा मजबूत होगी तो संघ की नीतियों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसी को ध्यान में रखकर संघ अपने नेटवर्क को फैलाने में जुटा है।
संघ सूत्रों के मुताबिक संघ चाहता है कि कम से कम 20 राज्यों में भाजपा का प्रभुत्व हो। इस दिशा में संघ शुरुआत भी कर चुका है और असम, पश्चिम बंगाल और केरल में संघ के कार्यकर्ता लोगों को जोडऩे में जुट गए हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब में संघ नेताओं का दौरा शुरू हो गया है। संघ की बैठक के तुरंत बाद सरकार्यवाह सुरेश जोशी और सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबेले का उत्तर प्रदेश दौरा इसी रणनीति का एक हिस्सा है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में संघ से जुड़े एक पदाधिकारी के मुताबिक दत्तात्रेय होसबोले की ओर से यह निर्देश मिला चुका है कि विधानसभा चुनाव में जीत से ही देश में सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव हो सकता है। इस तरह का संदेश प्रदेश में संघ की शाखाओं में दिया जाने लगा है। संघ से जुड़े एक नेता आउटलुक से कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह से संघ ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात कर दिया था उसी तर्ज पर एक बार फिर आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाई जा रही है। हर राज्य के लिए अलग-अलग एजेंडा तय किया जा रहा है।
असम और पश्चिम बंगाल में हिन्दूओं को एकजुट करने की रणनीति है तो केरल में ईसाईयों को साथ लेकर आगे बढऩे की पहल की जा रही है। केरल को लेकर संघ का एजेंडा साफ है कि ईसाई समुदाय से मेलजोल बढ़ाया जाए। केरल में ईसाई मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका में है। लेकिन संघ से ही जुड़े कई ईसाई नेताओं का मानना है कि रणनीति गलत तैयार हो रही है। संघ पादरियों के साथ मिलकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है जबकि चर्च का अपना खुद का एजेंडा है। ऐसे में दोनों अपने-अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। जैसे ही मीडिया में इस तरह की खबरें आई कि बीते साल 17 दिसंबर को एक बैठक में 4-5 आर्कबिशप और 10 से 12 राज्यों से आए 40-50 बिशपों ने भाग लिया। जिसमें संघ और भाजपा के पदाधिकारी भी मौजूद थे। इस खबर के तुरंत बाद आर्कबिशप कुरियाकोश ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि इस तरह की खबरें निराधार है। जिस बैठक की बात की जा रही है वह ईसाई समुदाय की ओर से क्रिसमस के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम था। इस बैठक में ऐसा कोई एजेंडा नहीं था कि राष्ट्रीय ईसाई मंच संघ के साथ मिलकर सद्भावना निर्माण के रूप में काम कर रहा है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में राममंदिर का मुद्दा गुजाने की तैयारी हो चुकी है। संघ के नेता भले ही खुलकर कुछ न बोले लेकिन हिंदुवादी संगठन राम मंदिर निर्माण को लेकर मुखर हो चुके हैं। यहां तक कि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी राममंदिर को बनाने की वकालत कर रहे हैं। स्वामी कहते हैं कि इसमें गलत क्या है अगर अयोध्या में राममंदिर था तो बिल्कुल बनना चाहिए। पहली बार संघ सोशल मीडिया पर सक्रिय भूमिका निभाने जा रहा है। क्योंकि आज युवाओं का एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया से ज्यादा प्रभावित है। इसके साथ ही लोगों के रजिस्ट्रेशन से लेकर गणवेश तक की रणनीति बनाई जा रही है। शाखाओं में पहने जाने वाले वेशभूषा को बदलकर नया रूप दिया जा रहा है। संघ के एक नेता के मुताबिक अब यह तय हो गया है कि पारंपरिक चीजों से हटकर काम करना होगा। इसलिए संघ अब नए एजेंडे की तैयारी में जुट गया है जिसकी झलक आने वाले विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगी। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य कहते हैं कि संघ का विकास हो रहा है और बड़ी संक्चया में युवा संगठन से जुड़ रहे हैं। वैद्य के मुताबिक हर महीने सात हजार से ज्यादा अनुरोध संघ से जुडऩे के लिए आ रहे हैं।
भाजपा को लेकर संघ की चिंता कुछ जायज भी है। क्योंकि पार्टी में जिस तरह से शक्ति का केंद्रीकरण हुआ है उससे भाजपा का नुकसान हुआ है और संघ की चिंता है कि अगर भाजपा का नुकसान हुआ तो संघ की विचारधारा कैसे आगे बढ़ेगी। इसको लेकर संघ में दो तरह की राय चल रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लेकर तमाम तरक की अटकलों के साथ-साथ इस बात को लेकर भी मंथन चल रहा है कि शाह नहीं तो फिर कौन? दरअसल संघ का एक खेमा यह कह रहा है कि प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष एक ही राज्य के नहीं होने चाहिए। तो दूसरा खेमा इस बात पर सहमति जता रहा है कि अभी भाजपा अध्यक्ष को एक और मौका दिया जाना चाहिए। क्योंकि अभी कोई ऐसा संदेश नहीं गया है कि संघ और भाजपा का एजेंडा अलग है। भाजपा एक सियासी दल है इसलिए उसे लोगों के मूड को भी ध्यान में रखना है। संघ के एक नेता के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज को लेकर किसी प्रकार का मतभेद नहीं है। मोदी लंबे समय तक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और मोदी कैबिनेट के सात मंत्री अपनी युवा अवस्था में संघ से जुड़े रहे हैं। यही नहीं संघ के शुभचिंतकों की नियुक्ति एफटीआईआई, आईसीएचसी जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं के प्रमुख पदों पर हो रही है। ऐसे में संघ नेता भाजपा से किसी प्रकार का टकराव नहीं देख रहे हैं।