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काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक: चुनाव में लगी पार्टियों के लिए हो सकती है मुश्किल

केंद्र सरकार द्वारा 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बंद किए जाने का असर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही राजनीतिक पार्टियों की तैयारियों पर भी पड़ सकता है। हालांकि सभी पार्टियां केंद्र सरकार के इस कदम से खुद पर पड़ने वाले असर के मुद्दे पर खामोश हैं, लेकिन चुनावों के लिए पार्टियों द्वारा चंदा एकत्र किए जाने के अब तक के तौर-तरीकों से यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बड़े नोटों का चलन बंद हो जाने से उन पर क्या असर पड़ेगा।
काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक: चुनाव में लगी पार्टियों के लिए हो सकती है मुश्किल

चुनावों में नकदी के चलन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टियों ने जहां 1299.53 करोड़ रुपये चेक इत्यादि के जरिये एकत्र किया, वहीं 1,039 करोड़ रुपये नकदी के रूप में इकट्ठा किए। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्मस (एडीआर) ने राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न के विश्लेषण में पाया कि राजनीतिक दलों ने पिछले तीन लोकसभा चुनाव के दौरान कुल 2,356 करोड़ रुपये बतौर चंदा एकत्र करने की घोषणा की थी। इसमें से 44 प्रतिशत रकम नकदी के रूप में इकट्ठा की गई थी। हालांकि, राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक नकदी के रूप में एकत्र चंदे की रकम घोषित की लेकिन चुनाव के दौरान पुलिस द्वारा भारी मात्रा में नकदी पकड़े जाने से यह संकेत मिलते हैं कि प्रचार अभियान के दौरान काले धन का भी इस्तेमाल किया गया। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान आयोग ने करीब 330 करोड़ रुपये की बेनामी नकदी पकड़ी थी।

अर्थशास्त्री प्रोफेसर एस. पी. तिवारी ने बताया कि काले धन को सामने लाने की सरकार की मुहिम तब तक फलदायी नहीं होगी, जब तक राजनीतिक दलों को नकदी के तौर पर चंदा एकत्र करने की इजाजत मिलती रहेगी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल काले धन के लेन-देन के प्रमुख स्रोत हैं। आयकर रिटर्न्स के विश्लेषण से पता लगता है कि पिछले तीन लोकसभा चुनाव के दौरान चंदे के तौर पर जो भी नकदी एकत्र की गई, उनमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से के दाताओं के नाम का खुलासा नहीं किया गया। एक राजनेता ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 500 और हजार रुपये के नोटों का चलन एकाएक बंद किए जाने के बाद पैदा सूरतेहाल से राजनीतिक दलों को काफी परेशानी होगी, लेकिन इससे सभी दलों के लिए समान मौके बनेंगे।

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