“न घर के, न घाट के”...ये कहावत चलते-फिरते हर जगह हमें सुनने को अधिकांशत: मिल हीं जाते हैं। लेकिन इन दिनों बिहार की राजनीति में ये कहावत घुम रही है। कहां लोकजनशक्ति पार्टी के नेता और सांसद चिराग पासवान ने अपने पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था और पार्टी को 'आत्मनिर्भर' बनाने की उम्मीद जगाई थी लेकिन अब ऐसा लगता है मानो उनका ये दांव उल्टा पड़ गया। भारतीय जनता पार्टी ने पासवान के निधन के बाद से खाली एक राज्यसभा सीट के लिए पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को अपना उम्मीदवार बना दिया है। जिसके बाद ये तय माना जा रहा है कि चिराग को अब बीजेपी ने किनारे करने का रास्ता तैयार कर लिया है। रामविलास पासवान एनडीए की मौजूदा मोदी सरकार में खाद्य मंत्री थे और केंद्र की राजनीति में उनकी पकड़ थी। लेकिन, अब सुशील मोदी इस सीट से राज्यसभा पहुंचेंगे और चिराग का पत्ता भाजपा के साथ बिहार के अलावा केंद्र से भी कट जाएगा।
चिराग पासवान ने संपन्न हुए बिहार विधानसभा 2020 में अकेले चुनाव लड़ा था। इस दौरान सीएम नीतीश पर जमकर हमला बोला था। जिसके बाद सुशील मोदी ने चिराग को लेकर कहा था कि वो वोटकटवा हैं। हालांकि, चिराग पूरे चुनाव में इस बात को दावे के साथ दोहराते रहें कि राज्य में भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी। लेकिन, चिराग बमुश्किल से एक सीट हीं जीत पाए जबकि उन्होंने कुल 243 सीट वाले विधानसभा में 143 सीटों पर अपनी ताल ठोकी थी।
एनडीए का यह भी आरोप है कि चिराग की वजह से कम सीटें आई है। एनडीए को कुल 125 सीटें मिली है जबकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली महागठबंधन को 110 सीटें मिली थी। हालांकि, एनडीए के आरोप को लेकर चिराग का कहना रहा कि उनकी मंशा नीतीश की अगुवाई वाली जेडीयू को नुकसान पहुंचाने का था और वो इस चुनाव में सफल रहे। जेडीयू को इस चुनाव में सिर्फ 43 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी को 74 सीटें और पूरे चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी राजद को 75 सीटें मिली थी।