जब स्मृति ईरानी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया तो कहा गया कि वह मोदी के दौर की सुषमा स्वराज हैं। यह भी कल्पना की गई कि धीरे-धीरे वह शासन में सुप्रीम स्थिति में आ जाएंगी और साथ के साथ सुषमा स्वराज का सितारा भी डूब जाएगा। मगर सुषमा स्वराज मोदी (एक ऐसा व्यक्तित्व जिसके साथ न तो उनका अच्छा इतिहास रहा है और न समीकरण) के मातहत एक अनुपयुक्त परिस्थिति से भी पूरी गरिमा के साथ पेश आईं। उन्होंने वस्तुत: खुद को किसी भी विवाद से दूर रखकर विदेश मंत्रालय का काम पूरी दक्षता से संभला।
यह शायद किसी के ध्यान में नहीं आया है कि दरअसल विदेश मंत्री की असली भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही लगातार निभा रहे हैं और जिस क्षेत्र में सुषमा स्वराज का डंका बजना चाहिए था उसका सारा क्रेडिट मोदी ले जा रहे हैं। इसके बावजूद सुषमा की मौजूदगी लगातार दिख रही है और बिजनेस की तरह अपना काम कर रही हैं। दरअसल भाजपा के इतिहास में उनकी एक जगह है और जो उन्हें नहीं पसंद करते वह भी उनका अनादर करने की हिक्वमत नहीं कर सकते।
भाजपा के सदस्य अब कह रहे हैं कि स्मृति ईरानी सुषमा स्वराज से बहुत सी चीजें सीख सकती हैं और उनमें पहली है अच्छा व्यवहार। सुषमा आगंतुकों के साथ पूरी शालीनता और विनम्रता से पेश आती हैं और मुलाकाती उनसे मिलने के बाद किसी तरह की शिकायत नहीं करता। मगर दोनों के बीच जो सबसे बड़ा अंतर है वह है दूसरी महिलाओं के साथ उनका व्यवहार। सुषमा स्वराज का इस मामले में कोई जोड़ नहीं है। वह दूसरी महिला नेताओं के साथ गले लगकर मिलती हैं। यहां तक कि सोनिया गांधी के साथ उनके तब भी अच्छे संबंध थे जब वह नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनका विरोध करती थीं। पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सुषमा ने राजनीति और मीडिया में कार्यरत कई महिलाओं को मिलने के लिए बुलाया। इनमें भाजपा से उमा भारती, हेमा मालिनी के अलावा कांग्रेस से शीला दीक्षित भी शामिल थीं। सुषमा हर तरीके से सौम्य और शालीन हैं जो अतिथियों से आसानी से घुलमिल जाती हैं। भाजपा की महिला नेता कहती हैं, महिलाओं की युवा पीढ़ी में गंदी लड़ाई है। ऐसे में सौम्यता को देखना अच्छा लगता है।