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त्रिपुरा में कौन संभालेगा भगवा की कमान, भाजपा के लिए बना सवाल

त्रिपुरा में  लालदुर्ग पर भगवा का कब्जा तो हो गया लेकिन इसके साथ ही अब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होने लगा...
त्रिपुरा में  कौन संभालेगा भगवा की कमान, भाजपा के लिए बना सवाल

त्रिपुरा में  लालदुर्ग पर भगवा का कब्जा तो हो गया लेकिन इसके साथ ही अब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होने लगा है कि यहां भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाएगी? इसी माथापच्ची में भाजपा उलझी हुई है।  इस रेस में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बिप्लब कुमार देब और वहां के प्रभारी सुनील देवधर का नाम सामने आया है।

वामपंथ के ‘लाल किले त्रिपुरा में पहली बार भगवा परचम फहराने वाली भाजपा अप्रत्याशित सफलता से फूले नहीं समा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 60 सदस्यों वाली त्रिपुरा विधानसभा में जिस भाजपा का एक भी विधायक नहीं था वहां पर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। 

बिप्लब देब 

बिप्लब युवा नेता है और आरएसएस के भी करीबी है। भाजपा ने जनवरी, 2016 में बिप्लब को त्रिपुरा का अध्यक्ष घोषित किया था। उन्होंने अगरतला में बनमालीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। बिप्लब कुमार 1998 से 2015 तक भाजपा जनसंपर्क अभियान के प्रमुख भी रहे। बिप्लब ने बीए तक पढ़ाई त्रिपुरा में की, इसके बाद वो उच्च शिक्षा और मास्टर्स के लिए दिल्ली चले गए। दिल्ली में उन्होंने प्रोफेशनल जिम इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम किया। करीब 15 साल बाद वो फिर त्रिपुरा लौटे। उनका जन्म त्रिपुरा के उदयपुर जिले में हुआ था जिसे आज गोमती जिले के नाम से जाना जाता है। बिप्लब ने चुनाव के दौरा डोर-टू-डोर कैंपेन किया। उनके साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता सुनील देवधर भी कैंपेनिंग का हिस्सा थे। बिल्पब की रैलियों में लाखों लोग उमड़ते थे। अभियान के दौरान उन्होंने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। बिप्लब देब ने चुनाव के दौरान युवाओं के बीच रोजगार का मुद्दा उठाया। उन्होंने वादा किया था कि अगर वह चुनाव जीते तो फिर वह त्रिपुरा के सभी कर्मियों के लिए 7वें वित्त आयोग को मंजूरी दिलवाएंगे। 

सुनील देवधर 

त्रिपुरा में भाजपा की कामयाबी के पीछे एक नाम राज्य के पार्टी प्रभारी सुनील देवधर का भी है। नवंबर 2014 में अमित शाह ने उन्हें त्रिपुरा का प्रभारी बनाकर भेजा था। उन्हें जो लक्ष्य दिया गया था, वो था- त्रिपुरा में भाजपा को शक्तिशाली बनाना। 25 साल से वामपंथी शासन में बीजेपी को खड़ा करने की चुनौती को सुनील देवधर ने सहज स्वीकार किया और तीन साल से ज्यादा वक्त तक लगातार जुटे रहे। त्रिपुरा में भाजपा का अपना संगठन नहीं था। बांग्ला भाषा में एक्सपर्ट सुनील देवधर ने यहां पर सबसे पहला जो काम किया वो था त्रिपुरा के आदिवासियों की भाषा कोकबोरोक को सीखना। यह भाषा राज्य के 31 फीसदी आबादी द्वारा बोली जाती है। इसे सीखने के बाद वह आदिवासियों से सीधा संपर्क स्थापित करने में सफल हुए। सुनील देवधर आरएसएस में पहले ही काम कर चुके थे। त्रिपुरा में बनवासी कल्याण केन्द्र के जरिये संघ यहां पर सक्रिय भी था, लेकिन वह नाकाफी था। लगातार संवाद के बाद सुनील देवधर मोदी सरकार की नीतियों को त्रिपुरा के लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे और उनका विश्वास जीत सके। सीएम पद के दावेदारों में उनका भी नाम है। 

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