‘यदि स्पष्ट जनादेश किसी दल को नहीं मिला तो सरकार भाजपा की ही बनेगी।’ यह आम धारणा रही है। कर्नाटक चुनाव में त्रिशंकु जनादेश मिला। भाजपा यहां 104 सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लोगों का मानना था कि जब दो सीटों के साथ भाजपा सरकार बना लेती है, ऐसे में तो यहां वह इकलौती सबसे बड़ी पार्टी है। बहुमत से आठ सीट दूर भाजपा ने सरकार बनाने की जिद की... लेकिन इस बार नाकाम रही। आम धारणा ध्वस्त हुई।
इस दौरान भाजपा को ना सिर्फ नाकामी मिली है बल्कि आने वाले चुनावों के लिए कई मुश्किलें भी खड़ी हुईं हैं। आखिर भाजपा से कहां चूक हुई...
कांग्रेस-जेडीएस का फौरन साथ आना
चुनाव के दौरान जब कांग्रेस के द्वारा जेडीएस को भाजपा की टीम बी बताई जा रही थी..उस दौरान पीएम मोदी जेडीएस को लुभाने की कोशिशों में लगे थे। पीएम मोदी ने राहुल गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा का अपमान करने का जिम्मेदार ठहराया था। यानी भाजपा ने कभी सोचा नहीं कि कांग्रेस और जेडीएस इतनी जल्दी सात आएंगे। यहां तक की जब जेडीएस वोक्कलिगा बेल्ट में अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, तब भाजपा उत्साहित थी। क्योंकि इसका मतलब कांग्रेस की सीटों का डूबना था। लेकिन नतीजे आते ही जो पहले सियासी तौर पर ज्यादा विरोधी नजर आ रहे थे। वे एकजुट हो गए। शायद भाजपा इसे भांप नहीं सकी।
कानूनी हार
भाजपा को राज्यपाल से सरकार बनाने का न्योता मिल गया। बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त भी मिल गया। बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली लेकिन कांग्रेस ने कानूनी लड़ाई शुरु कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिन को 24 घंटे में पलट दिया। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक एक भाजपा नेता का कहना था कि, "एक दिन का वक्त दूसरे दल के विधायकों पर जीत हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं था, खासकर जब वे पहुंच से बाहर थे।"
कांग्रेस को कमतर समझना
भाजपा ने शायद ही सोचा होगा कि कांग्रेस अपने विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब होगी। लेकिन कांग्रेस अपने विधायकों को मनाने में सफल हुई कि वे सरकार बनाएंगे। कांग्रेस ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखा। कॉल रिकॉर्डिंग ऐप्प डाउनलोड करने को कहा। इसकी वजह से विधायकों में टूट नहीं हो सकी। कांग्रेस ने ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी करके झटका भी किया, हालांकि इनकी प्रामाणिकता स्थापित करने की जरूरत है।
लिंगायत विधायकों का मन न बदलना
भाजपा ने यह भी आशा की होगी की कि एक बार येदियुरप्पा मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले लेंगे उसके बाद लिंगायत नेताओं की मदद से कांग्रेस के लिंगायत विधायकों को समर्थन के लिए राजी कर सकेंगे। लेकिन यह भी नहीं हो सका।
क्या है सबक
कर्नाटक में असफलता कई कारणों का मिलाजुला स्वरुप है। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को रोकने में नाकामी से लेकर 24 घंटे के दौरान बहुमत सिद्ध करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौतियां बनी। कांग्रेस की रणनीति से उनके और जेडीएस विधायक एकजुट रहे। कानूनी फैसलों से जोड़तोड़ की संभावनाओं का लगभग सफाया हो गया।
लेकिन भाजपा का मानना है कि कर्नाटक की लड़ाई हारने के बावजूद, वह अभी भी 2019 की लड़ाई जीत सकता है।
लेकिन कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह विपक्षी ताकत और क्षेत्रीय दलों का मंच बनने जा रहा है। इस पर भी सियासत के रुख बदलने की उम्मीदें टिकी हुई है। जबकि जोड़तोड़ कर सरकार बनाने की रणनीति पर पहले ही सवालिया निशान लग गया है। ऐसे में क्या भाजपा अब भी खुद को अजेय समझ रही है?