शिवसेना सांसद संदीपन भुमरे और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ पार्टी के अन्य नेताओं ने वक्फ अधिनियम में कोई भी संशोधन करने से पहले आम सहमति बनाने और मुस्लिम समुदाय को विश्वास में लेने पर जोर दिया है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक में, वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995’ करने का भी प्रावधान है।
सरकार ने वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन से संबंधित विधेयक बृहस्पतिवार को लोकसभा में पेश किया था जिसे सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक एवं चर्चा के बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का फैसला हुआ।
सरकार का कहना था कि प्रस्तावित कानून का उद्देश्य मस्जिदों के कामकाज में हस्तक्षेप करना नहीं है, जबकि विपक्ष ने इसे मुसलमानों को निशाना बनाना और संविधान पर हमला बताया।
भुमरे ने महाराष्ट्र के जालना जिले में रविवार को एक सम्मान समारोह के दौरान कहा कि सरकार को वक्फ अधिनियम में किसी भी संशोधन से पहले आम सहमति बनाने और मुस्लिम समुदाय को विश्वास में लेने की आवश्यकता है।
शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अर्जुन खोतकर ने वक्फ अधिनियम में कोई भी बदलाव करने से पहले सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘वक्फ का मतलब मुसलमानों द्वारा समुदाय के कल्याण के लिए दान की गई संपत्ति है।’’
खोतकर ने कहा कि उनकी पार्टी को किसी भी नकारात्मक धारणा से बचने के लिए मुस्लिम समुदाय को विश्वास में लेना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘वक्फ अधिनियम एक संवेदनशील मुद्दा है और सरकार को मुसलमानों की भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए।’’
इस अवसर पर महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड (एमएसबीडब्ल्यू) के अध्यक्ष समीर काजी ने बोर्ड के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए प्रदान की गई वित्तीय सहायता के लिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के प्रति आभार व्यक्त किया।
काजी ने कहा कि सरकार की बदौलत एमएसबीडब्ल्यू में कर्मचारियों की संख्या 27 से बढ़कर 170 हो गई है, जिनमें 25 प्रथम श्रेणी के अधिकारी भी शामिल हैं।