केंद्र सरकार ने बुधवार को दावा किया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के साथ सहयोग नहीं कर रहे थे। सरकार ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने के अपने फैसले का बचाव किया और कहा कि यह "असाधारण और अभूतपूर्व" स्थिति थी जो एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ "भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप" के कारण उत्पन्न हुई।
'बार-बार याद दिलाने पर भी पेश नहीं किए दस्तावेज'
सीबीआई में गुट विवाद अपने चरम पर पहुंच गया है, जिससे प्रमुख जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा का संभावित नुकसान हुआ है। पीटीआई के मुताबिक, एक लंबे वक्तव्य में सरकार ने कहा, ‘’सीवीसी को सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ 24 अगस्त, 2018 शिकायत प्राप्त हुई। 11 सितंबर को सीवीसी अधिनियम, 2003 की धारा 11 के तहत तीन नोटिस दिए गए और 14 सितंबर को आयोग के समक्ष फाइलों और दस्तावेजों को पेश करने को कहा गया। ऐसे रिकॉर्ड तैयार करने के लिए सीबीआई को कई अवसर दिए गए थे और कई बार टालने करने के बाद सीबीआई ने 24 सितंबर को आयोग को तीन सप्ताह के भीतर दस्तावेज प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया था।‘’
'सीवीसी के काम-काज में डाली रुकावट'
"बार-बार आश्वासन और याद दिलाने के बावजूद सीबीआई के निदेशक आयोग के सामने रिकॉर्ड/ फाइलें प्रस्तुत करने में नाकाम रहे। सीवीसी ने पाया है कि गंभीर आरोपों से संबंधित मांगे गए रिकॉर्ड/ फाइल उपलब्ध कराने में सीबीआई निदेशक सहयोग नहीं कर रहे हैं।" सरकार ने कहा कि सीवीसी के संज्ञान में यह भी आया है कि सीबीआई निदेशक सहयोगी नहीं रहे थे और आयोग के काम-काज में, जो कि एक संवैधानिक निकाय है, जानबूझकर बाधा उत्पन्न कर चुके हैं।
नागेश्वर राव को सरकार ने बनाया अंतरिम डायरेक्टर
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई में मची अंदरूनी कलह की खबर सामने आने के बाद सरकार ने इस मुद्दे पर बड़ा एक्शन लेते हुए सीबीआई के नंबर एक आलोक वर्मा और नंबर दो राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया है। इस परिस्थिति में 1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम डायरेक्टर नियुक्त किया गया है। नागेश्वर राव ने बुधवार सुबह ही अपना कार्यभार संभाला। नागेश्वर राव अभी सीबीआई में संयुक्त निदेशक के तौर पर काम कर रहे थे। राव 1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं और वो तेलंगाना के वारंगल जिले के रहने वाले हैं।