नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में सोमवार को आसानी से पास हो गया है और अब मोदी सरकार बुधवार को इसे राज्यसभा में पेश करेगी। नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में जेडीयू, शिवसेना, बीजेडी और पूर्वोत्तर के कुछ दलों के साथ आने की वजह से सरकार को इस बिल को पास कराने में कोई दिक्कत नहीं हुई। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 वोट पड़े जबकि, विपक्ष में 80 वोट। लिहाजा राज्यसभा में भी मोदी सरकार की राह आसान मानी जा रही है।
बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक में इस विधेयक में तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई धर्मावलंबियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इस विधेयक से मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है।
माना जा रहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के ऊपरी सदन में बुधवार को पेश किया जाएगा, जहां सत्ताधारी एनडीए के पास बहुमत नहीं है। मगर जिस तरह से अल्पमत में होने के बावजूद सरकार ने तीन तलाक और अनुच्छेद 370 को हटाने वाले विधेयक को पास करवा लिया था ठीक उसी तरह माना जा रहा है कि वह इसे भी पास करवा ही लेगी। आइये जानते हैं कि आखिर क्या है राज्यसभा का पूरा गणित।
एनडीए की क्या है स्थिति
राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने 83 सांसद हैं। वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) के 6 सांसद हैं। जेडीयू ने लोकसभा में बिल का समर्थन किया है। इसके अलावा एनडीए के पास शिरोमणी अकाली दल के 3, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के एक और अन्य दलों के 13 सदस्यों का समर्थन है। इस तरह एनडीए गठबंधन के पास कुल 106 सांसदों का समर्थन है।
यूपीए की क्या है स्थिति
यूपीए गठबंधन में कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा 48 सांसद हैं। वहीं लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास चार-चार सांसद हैं। इसके अलावा डीएमके के पास 5 सासंद हैं और अन्य यूपीए सहयोगियों के तीन सांसद हैं। इस तरह यूपीए को कुल 62 सांसदों का समर्थन प्राप्त है।
दोनों में से किसी भी पार्टी में नहीं हैं ये दल
कई पार्टियां ऐसी भी हैं जो न एनडीए में हैं और न ही यूपीए में शामिल हैं। हालांकि विचारधारा के स्तर पर इन पार्टियों का रुख समय-समय पर बदल जाता है। ऐसी पार्टियों में सबसे बड़ी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) है जिसके पास 13 सांसद हैं। इसके बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) के पास नौ, तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति के पास छह, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पास पांच, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पास चार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) के पास तीन, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के पास दो, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पास एक और एचडी कुमारस्वामी की जनता दल (सेक्युलर) के पास एक सांसद है। इन्हें मिलाकर यह आंकड़ा 44 सांसदों का होता है।
ये पार्टियां दे सकती है समर्थन
कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो एनडीए और यूपीए का हिस्सा नहीं हैं लेकिन उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में होने के संकेत दिए हैं, जिसमें तमिलनाडु एआईएडीएमके के 11, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल के सात, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के दो, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के दो सांसद हैं।
हाल में भाजपा का साथ छोड़कर एनसीपी और कांगेस के समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार बनाने वाली शिवसेना ने लोकसभा में नागरिकता विधेयक के पक्ष में मतदान किया। राज्यसभा में उसके तीन सांसद हैं। माना जा रहा है कि वह ऊपरी सदन में विधेयक का समर्थन करेगी। ऐसे में तीन और सासंद भाजपा का समर्थन कर सकते हैं। इस तरह यह आंकड़ा 28 सांसदों को होता है।
बहुमत के लिए 121 वोटों की जरूरत
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर काफी आक्रामक है, लेकिन मोदी सरकार ने जेडीयू और बीजेडी को अपने साथ कर सदन के अंकगणित को अपने पक्ष में कर लिया। हालांकि पिछले दो सालों में बीजेपी और एनडीए की ताकत राज्यसभा में बेहतर हुई है। राज्यसभा में कुल सदस्य 245 हैं, लेकिन पांच सीटें खाली हैं, जिसके चलते फिलहाल कुल सदस्यों की संख्या 240 है। मतलब ये कि अगर सदन के सभी सदस्य मतदान करें तो बहुमत के लिए 121 वोट की जरूरत पड़ेगी।
राज्यसभा में मोदी सरकार का आंकड़ा
नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में जिन दलों ने समर्थन किया है। इस लिहाज से राज्यसभा में आंकड़ों को देखें तो यह संख्या 121 है। इनमें बीजेपी के 83, बीजेडी के 7, एआइएडीएमके के 11, अकाली दल के 3, शिवसेना के 3, जेडीयू के 6 वाईएसआर कांग्रेस के 2, एलजेपी के 1, आरपीआई के 1 और 4 नामित राज्यसभा सदस्य हैं।