कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था को लेकर विपक्षी दलों की बैठक शुरू हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बुलाई इस गई इस बैठक में 22 राजनीतिक दल हिस्सा ले रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता आरएस सुरजेवाला ने ट्वीट किया, "कोविद -19 और आर्थिक महामारी पर चर्चा के लिए समान सोच रखने वाले 22 राजनीतिक दलों की बैठक शुरू हो गई है। बैठक में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में अम्फान साइक्लोन से हुई मौतों पर शोक व्यक्त किया गया। श्रीमती सोनिया गांधी अपनी शुरुआती टिप्पणी दे रही हैं।"
प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे पर जोर
वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये बुलाई गई इस बैठक का उद्देश्य समान विचार वाले दलों को एक मंच पर लाना और अपने घरों को लौट रहे लाखों प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं का समाधान तलाशना है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हो रही इस बैठक में 22 विपक्षी दल मौजूद हैं। बैठक में किसानों की समस्याओं और उत्तर प्रदेश सहित भाजपाशासित राज्यों में श्रम कानूनों में बदलावों पर भी विचार विमर्श होगा।
सपा-बसपा-आप ने नहीं दी सहमति
कांग्रेस द्वारा बुलाई गई राजनीतिक दलों की बैठक में उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल सपा और बसपा हिस्सा नहीं ले रहे हैं वहीं अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी इससे दूरी बनाई है। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने कई विपक्षी नेताओं को व्यक्तिगत स्तर पर कॉल किया और प्रवासी मजदूरों के मुद्दे के समाधान के लिए संयुक्त रणनीति बनाने में सहयोग देने का अनुरोध किया।
इन दलों ने दी थी सहमति
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिव सेना के सांसद संजय राउत सोनिया गांधी द्वारा बुलाई बैठक में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये शिरकत कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में संवाददाताओं से बातचीत में बैठक में हिस्सा लेने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि आज दोपहर वीडियो कांफ्रेंस के जरिये होने वाली बैठक में मौजूदा हालात पर चर्चा होगी। इस बैठक में वह हिस्सा ले रही हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के नेता डी. राजा ने भी कहा कि उनकी पार्टी बैठक में हिस्सा ले रही है। उनकी पार्टी कुछ राज्यों में श्रम कानूनों को कमजोर करने का भी मुद्दा उठाएगी।
कांग्रेस ने कहा- संसद को किनारे कर दिया गया
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पूछे जाने पर इसके बारे में कहा कि जब भी कोई गंभीर मुद्दा आता है, सोनिया गांधी और राहुल गांधी सामने आते हैं। देश की सबसे बड़ी संस्था संसद को किनारे कर दिया गया है। संसदीय निगरानी लगभग गायब हो चुकी है। लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर कर दी गई हैं। वे लोकतंत्र के लिए अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही हैं।