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गायों का राग अालापने वाली सरकार ने गायों के बजट में की भारी कटौती

केंद्र की वर्तमान सरकार भले ही गौ रक्षा और गायों को लेकर जितनी भी हायतौबा मचाए मगर असलियत में यह सरकार गाय ही नहीं किसी भी जानवर की देखभाल को लेकर संवेदनशील नहीं है। यह आरोप किसी और ने नहीं पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत आने वाले एनिमल वेलफेयर बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य ने लगाया है।
गायों का राग अालापने वाली सरकार ने गायों के बजट में की भारी कटौती

बोर्ड के सदस्य एनजी जयसिम्हा ने देश की करीब 35 सौ गौशालाओं को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि गायों को लेकर सरकार का रवैया सही नहीं है और इस सरकार ने इस मद में आवंटित होने वाले बजट में बेतहाशा कटौती कर दी है। जयसिम्हा का आरोप है कि सरकार के लिए यह सिर्फ राजनीतिक लाभ हासिल करने भर का मुद्दा है, इससे अधिक कुछ नहीं। हकीकत यह है कि सरकार सिर्फ तथाकथित गौरक्षकों को बढ़ावा दे रही है। जयसिम्हा के आरोप से सरकार के लिए असहज ‌ स्थिति पैदा हो गई है। हालांकि एक तथ्‍य यह भी है कि जयसिम्हा की नियुक्ति बोर्ड सदस्य के रूप में यूपीए सरकार ने की थी और अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर वह अगले वर्ष फरवरी में पद मुक्त होंगे।

जयसिम्हा की बात में दम है क्योंकि पिछले दो साल में इस सरकार ने जानवरों की देखभाल के बजट में 50 फीसदी से ज्यादा की कटौती कर दी है। सरकार ने एंबुलेंस ग्रांट, काऊ शेल्टर फंड, नियमित ग्रांट, गायों की स्मग्लिंग पर रोक लगाने के लिए निर्धारित फंड, प्राकृतिक आपदा और कुत्तों की नसबंदी के मद में साल 2015-16 में एनिमल वेलफेयर बोर्ड को सिर्फ सात करोड़ 84 लाख 85 हजार रुपये का बजट दिया है। यह पिछले वर्ष के 12 करोड़ 74 हजार रुपये के मुकाबले बेहद कम है। खास बात यह है कि इससे भी पिछले साल यानी 13-14 में यह बजट 12 करोड़ 99 लाख रुपये का था। इससे पिछले वर्ष यह बजट 16 करोड़ छह लाख रुपये जबकि इससे पिछले यानी 2011-12 में यह 21 करोड़ 77 लाख रुपये थे। यानी कि पहले यूपीए सरकार ने इसमें भारी गिरावट की और अब गायों के मुद्दों पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इस मद में खर्च में बेतहाशा कटौती कर दी है। जाहिर है कि गाय किसी भी पार्टी के लिए सिर्फ वोट बटोरने का जरिया भर रह गई है।

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