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झारखंड: संहिता पर सवाल, चुनाव आचार संहिता को लेकर सरकार और आयोग आमने सामने

“डीसी ने सांसद के खिलाफ चुनाव के छह माह बाद एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दिया तो चुनाव आयोग ने डीसी को...
झारखंड: संहिता पर सवाल, चुनाव आचार संहिता को लेकर सरकार और आयोग आमने सामने

“डीसी ने सांसद के खिलाफ चुनाव के छह माह बाद एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दिया तो चुनाव आयोग ने डीसी को ही हटाने का दिया आदेश”

झारखंड में चुनाव आचार संहिता को लेकर बवाल मचा हुआ है। सात माह पूर्व देवघर जिले की मधुपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के सिलसिले में चुनाव आयोग ने देवघर के जिलाधिकारी (डीसी) मंजूनाथ भजंत्री के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया है। इससे सत्ताधारी झामुमो और भाजपा के बीच तलवारें खिंच गई हैं। झामुमो का आरोप है कि आयोग भाजपा एजेंट के रूप में काम कर रहा है। वहीं भाजपा का कहना है कि डीसी झामुमो कार्यकर्ता की तरह काम करते हैं। राज्य सरकार के मंजूनाथ भजंत्री के खिलाफ कार्रवाई न करने से टकराव बढ़ने के आसार हैं।

राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी की मौत के बाद मधुपुर सीट पर 17 अप्रैल 2021 को मतदान कराया गया। चुनाव के बाद तीन मई को आचार संहिता खत्म होने के करीब छह माह बाद जिलाधिकारी भजंत्री के निर्देश पर बिना चुनाव आयोग के निर्देश या सूचना दिए बिना जिले के विभिन्न थानों में गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ पांच प्राथमिकी दर्ज कराई गईं। चूंकि मामला विधानसभा क्षेत्र के बाहर दर्ज था, सो दुबे ने चुनाव आयोग से शिकायत की। आयोग ने डीसी को कारण बताओ नोटिस भेजा। आयोग के अनुसार जवाब संतोषजनक नहीं था।

इसके बाद आयोग ने 6 दिसंबर को झारखंड के मुख्य सचिव को भजंत्री को उपायुक्त पद से तत्काल हटाने, आयोग की अनुमति के बिना डीसी/जिला निर्वाचन अधिकारी पद पर तैनात न करने तथा 15 दिनों के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। राज्य सरकार ने चुनाव आयोग के आदेश के एक पखवाड़े बाद भी डीसी को नहीं हटाया है। लेकिन कुछ लोग जानना चाहते हैं कि आचार संहिता समाप्त होने के बाद किसी अधिकारी को हटाने और दूसरे जिले में भी तैनात नहीं करने का आदेश आयोग कैसे दे सकता है?

सरकार के करीबी के रूप में चर्चित भजंत्री को मधुपुर उप चुनाव की मतगणना से छह दिन पहले भी आयोग ने हटाकर देवघर की पूर्व डीसी नैंसी सहाय को तैनात कर दिया था। हालांकि आचार संहिता खत्म होते ही हेमंत सरकार भजंत्री को वापस ले आई।

भजंत्री ने मार्च 2021 में निशिकांत दुबे की पत्नी अनामिका गौतम के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन दिसंबर के मध्य में हाई कोर्ट ने प्राथमिकी निरस्त करने का आदेश दे दिया। अनामिका ने ऑनलाइन एंटरटेनमेंट ‘प्रालि’ के नाम पर देवघर के एलकेसी धाम में जमीन खरीदी थी। किरण कुमारी नाम की महिला ने उक्त जमीन पर दावा करते हुए उपायुक्त के यहां डीड रद्द करने का आवेदन दिया। उपायुक्त ने डीड रद्द करते हुए अनामिका के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था, जबकि यह मामला अदालत में लंबित था। हाई कोर्ट ने माना कि इस मामले में कानून का दुरुपयोग हुआ है।

अब आयोग ने भजंत्री के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया तो भाजपा आक्रामक हो गई है। पार्टी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, “डीसी देवघर राजनीतिक टूल के रूप में काम कर रहे थे। ऐसे अधिकारी से किसी पद पर रहते निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती। आयोग के आदेश के बाद भी डीसी को न हटाना समझ से परे है। सरकार न अदालत का आदेश मानती है न संवैधानिक संस्थाओं के निर्णय को।” दुबे ने भी डीसी को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग संसद में की। रघुवर सरकार में मंत्री रहे निर्दलीय विधायक सरयू राय कहते हैं, “प्रशासनिक अधिकारी नियुक्ति के समय ली गई शपथ का पालन करें और अपना दायित्व निभाएं।”

चुनाव आयोग का फैसला सत्ताधारी झामुमो को नागवार गुजरा है। पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, “आचार संहिता नहीं रहने पर भी क्या, चुनाव आयोग तय करेगा कि किस अधिकारी को हटाना है और किसे पोस्टिंग देनी है। आयोग भी सीबीआइ, ईडी और आयकर विभाग की तरह भाजपा के टूल के रूप में काम कर रहा है।” भट्टाचार्य के अनुसार भजंत्री ने आयोग से शिकायत की थी कि दुबे मतदाताओं को रिश्वत देने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिश कर रहे हैं। मगर आयोग ने दुबे के बजाय डीसी के खिलाफ कार्रवाई कर दी।

जानकारों का कहना है कि अधिकारियों पर सत्ताधारी दल के पक्ष में काम करने का आरोप कोई नई बात नहीं, लेकिन चुनाव आयोग जैसी संस्था पर इस तरह के आरोप लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं। फिलहाल इस मामले के पटाक्षेप का इंतजार है।

भजंत्री

सरकार के करीबी के रूप में चर्चित भजंत्री को मधुपुर उप चुनाव की मतगणना से छह दिन पहले आयोग ने देवघर से हटा दिया था

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