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जनादेश ’24 पंजाबः उधार के उम्मीदवार पर दारोमदार

कहीं बगावत तो कहीं दल-बदल, कहीं पैराशूट उम्मीदवार तो कहीं असंतोष, चौतरफा मुकाबले में लड़ाई तगड़ी पंजाब...
जनादेश ’24 पंजाबः उधार के उम्मीदवार पर दारोमदार

कहीं बगावत तो कहीं दल-बदल, कहीं पैराशूट उम्मीदवार तो कहीं असंतोष, चौतरफा मुकाबले में लड़ाई तगड़ी

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का गठबंधन सिरे नहीं चढ़ सका। 28 साल में पहली बार दोनों पार्टियां अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ रही हैं। इनके साथ ही सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के चुनाव में उतरने से मुकाबला चौकोणीय रहने के आसार हैं। आंदोलन कर रहे किसानों की नाराजगी और शिअद के बगैर चुनाव में उतरने से भाजपा की राह आसान नहीं होगी। लेकिन पार्टी ऐसी तमाम चुनौतियों को पीछे छोड़ 400 पार का लक्ष्य हासिल करना चाहती है। यही वजह है कि छह लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची में भाजपा ने दो कांग्रेस और एक आम आदमी पार्टी के बागी को अपना उम्मीदवार बनाया है।

लगभग तीन दशक तक शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में रही भाजपा की आशा इस बार कांग्रेस और अकाली दल के बागियों पर टिकी हुई है। 2020 में किसान आंदोलन के समर्थन में एनडीए से नाता तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल के भाजपा से गठजोड़ की कोशिश हुई थी, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से दो दौर की मुलाकात के बावजूद बातचित सिरे नहीं चढ़ सकी।

इस पर पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष प्रताप बाजवा कहते हैं, “उधार के उम्मीदवार जुटा कर भाजपा 400 पार का नारा दे रही है। पंजाब में भाजपा और उसके नेताओं का कोई जनाधार नहीं है इसलिए उनका पूरा दारोमदार कांग्रेस छोड़ कर आए उम्मीदवारों पर है।”

2022 के विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर सिमट गए शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भाजपा से गठबंधन न हो सकने के सवाल पर आउटलुक से कहा था, “कई मसलों पर मतभेद के कारण बात आगे नहीं बढ़ पाई। भाजपा नांदेड साहिब गुरुद्वारे के प्रबंधन में हस्तक्षेप कर रही है। लेकिन श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के मामले में भाजपा की दखलंदाजी शिरोमणि अकाली दल को मंजूर नहीं है। फिर किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने से पीछे हटी भाजपा को समर्थन देने के बजाय हम पंजाब के किसानों के साथ खड़े हैं।”

आप छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए डॉ. बलबीर गांधी

आप छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए डॉ. बलबीर गांधी

लेकिन भाजपा अपनी ओर से हर संभव कोशिश कर रही है। भाजपा की कोशिश पंजाब में सिख मतदाताओं के ध्रुवीकरण की भी है। यहां 58 फीसदी आबादी के साथ सिख बहुसंख्यक हैं। इसकी शुरूआत भाजपा ने 2019 में ही कर दी थी जब गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती पर डेरा बाबा नानक से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब तक कॉरीडोर खोला गया था। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। इसके अलावा 2016 में गुरु गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती पर भी विशेष आयोजन के लिए केंद्रीय बजट से 100 करोड़ रुपये दिए गए थे।

आप और कांग्रेस से उम्मीदवार तोड़ने के आरोप के बावजूद भाजपा का ‘बटोरने’ का अभियान धीमा नहीं पड़ा है। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह के सांसद पौत्र रवनीत बिट्टू को अपने पाले में शामिल कर भाजपा ने एक तरह से बढ़त हासिल कर ली है। बिट्टू फिलहाल लुधियाना से सांसद हैं और भाजपा ने उन्हें यहीं से टिकट दिया है। सिख होने के नाते बिट्टू को इसका फायदा मिल सकता क्योंकि इस सीट पर 53.26 प्रतिशत सिख वोटर हैं। हालांकि भाजपा में जाने से पहले अपने कार्यकर्ताओं को विश्वास में न लेने की नाराजगी उन्हें भारी पड़ सकती है। यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है क्योंकि तीन बार के सांसद बिट्टू को राहुल गांधी का करीबी माना जाता था।

इससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री रह चुके अमरिंदर सिंह ने भी कांग्रेस से अलग होकर बनाई अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का भाजपा में विलय कर लिया था। भाजपा ने अब कैप्टन की सांसद पत्नी परणीत कौर को अपना उम्मीदवार बना लिया है। परणीत कौर पटियाला लोकसभा सीट से चार बार सांसद रही हैं। कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर 9 बार कांग्रेस, 3 बार शिरोमणि अकाली दल और एक बार आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की है। परणीत कौर के सामने आम आदमी पार्टी ने कैबिनेट मंत्री डॉ. बलबीर सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस में शामिल हुए धर्मवीर गांधी ने इस सीट के मुकाबले को कड़ा बना दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में गांधी ने आम आदमी पार्टी की टिकट पर तब कांग्रेस रहीं परणीत कौर को हराया था।

भाजपा ने कांग्रेस और आप से आए तीन सांसदों को टिकट देने के अलावा तीन नए चेहरों को भी टिकट दिया है। पैराशूट उम्मीदवार बताकर स्थानीय नेता इनका विरोध कर रहे हैं। भाजपा की नजर केवल कांग्रेस पर ही नहीं आप पर भी है। साल भर पहले ही कांग्रेस विधायक रहे सुशील कुमार रिंकू जालंधर से आप की टिकट पर सांसद बने थे। भाजपा का दामन थाम लेने के बाद अब वे फिर से जालंधर से मैदान में हैं। हालांकि आप ने रिंकू को दोबारा टिकट दिया था।  

ग्राफिक

अमृतसर सीट से भाजपा ने एक बार फिर एक आइएफएस अफसर पर भरोसा किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर सीट से आइएफएस रहे केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी हार गए थे। इस बार भाजपा ने एक और पूर्व आइएफएस अधिकारी तरनजीत सिंह संधू को इस सीट से उतारा है। अमेरिका में भारतीय राजदूत रहे संधू के दादा समुद्री गुरुद्वारा सुधार के प्रमुख नेता रहे हैं, जिनका सिखों में खासा प्रभाव है। अमृतसर में 68.94 प्रतिशत सिख मतदाताओं का फायदा संधू को मिल सकता है। हालांकि पैराशूट उम्मीदवार के तौर पर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी का खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है। 

फरीदकोट सीट पर भी भाजपा कोई चूक नहीं चाहती है। पार्टी ने पूर्वी-पश्चिमी दिल्ली की आरक्षित सीट से भाजपा सांसद रहे सूफी गायक हंस राज हंस को फरीदकोट से मैदान में उतारा गया है। इससे पहले शिरोमणि अकाली दल की टिकट पर हंस जालंधर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। पैराशूट उम्मीदवार की श्रेणी में आए हंस को भी संभवतः नुकसान झेलना पड़े। उनकी टक्कर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कॉमेडियन कर्मजीत अनमोल से है, जो स्थानीय हैं। दोनों के बीच कांग्रेस के मौजूदा सांसद पंजाबी गायक मोहम्मद सादिक को कमतर नहीं आंका जा सकता।

गुरदासपुर से सांसद अभिनेता सनी देओल के चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद भाजपा ने तीन बार के विधायक रहे दिनेश सिंह बब्बू पर दांव खेला है। चुनाव से पहले दल बदल के दलदल में धंसे नेता अपनी पार्टियों को उबार पाएंगे या नहीं यह तो 4 जून को ही साफ होगा।

तीसरे कोण के रूप में मुकाबले में उतरी आप के लिए भी सफर आसान नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनाव में 113 में से 92 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी के जालंधर से इकलौते सांसद सुशील रिंकू भाजपा में शामिल हो गए हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की अनुपस्थिति में सारा दारोमदार सूबे के मुख्यमंत्री भगंवत मान पर ही टिका हुआ है।  

प्रचार का सारा दारोमदार भगवंत मान पर

प्रचार का सारा दारोमदार भगवंत मान पर

पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा का कहना है, ‘‘लोकसभा चुनाव में  विपक्ष की आवाज दबाने के लिए केजरीवाल की गिरफ्तारी की गई है। जनता को दी गई छह गारंटियों में 300 यूनिट मुफ्त बिजली, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा के लिए मोहल्ला क्लीनिक और कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने की गारंटी हमारी सरकार ने पूरी की है।’’

अपने लोगों के पार्टी छोड़ने से परेशान कांग्रेस के लिए यह चुनाव ‘केक वॉक’ नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को बैठाने से कांग्रेस न सिर्फ कमजोर पड़ी बल्कि पार्टी का कुनबा भी बिखरने लगा। लोकसभा चुनाव तक सभी को समेटे रखना पार्टी के लिए कड़ी चुनौती साबित हो रहा है क्योंकि लगातार कोशिश के बाद भी बिखराव थमने का नाम नहीं ले रहा है। 2022 में ही कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में आ गए थे। अब वे प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं। थोक के भाव कांग्रेसियों को अपने पाले में लेने पर पंजाब भाजपा के पूर्व महासचिव जीवन गुप्ता का कहना है, ‘‘भाजपा पंजाब में तेजी से अपना जनाधार बढ़ा रही है।”

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