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वाम दलों ने चुनावी समर में घोले जमीनी मुद्दे

नीतीश और मोदी के बीच बंटे राजनीतिक विमर्श में तीसरे धारदार विकल्प की राह खोली की वाम पार्टियों के गठबंधन ने
वाम दलों ने चुनावी समर में घोले जमीनी मुद्दे

 बिहार में महागठबंधन और राजद गठबंधन ने जिस तरह से अपनी सारी शक्तियों और दावों को खोल रखा है. उसी तरह से वाम दलों के गठबंधन ने भी लंबे समय बात पूरे जोश के साथ चुनावी मैदान में उतरा है। पहले दो चरण में खासतौर कुछ विधानसभा चुनाव क्षेत्र मं वाम गठबंधन का प्रदर्शन बेहद सकारात्मक रहा है। किसी भी चुनाव में पहली बार ये तमाम कम्युनिस्ट पार्टियों एक साथ मिलकर लड़ रही हैं और इस लिहाज से ये अपने आप में ऐतिहासिक है।

पहले दो चरणों में और 28 अक्टूबर को होने वाले तीसरे चरण में कई विधानसभा सीटों पर वामपार्टियों की कई सीटों पर मजबूत दावेदारी बन रही है। भाजपा के नेतृत्व वाले राजद गठबंधन और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागबंधन के बीच फंसे इस चुनाव में वामदलों के संयुक्त हस्तक्षेप ने उन मतदाताओं के लिए एक विकल्प खोला है, जो दोनों को वोट नहीं देना चाहते। बिहार की कई विधानसभा सीटों में भाकपा, भाकपा माले और भाकपा के जुझारू उम्मीदवार चुनाव को सीधे-सीधे जमीनी मुद्दों से जोड़ रहे हैं। वामदलों ने भाजपा की सांप्रदायिकता के साथ-साथ नीतीश और लालू के शासन के जनविरोधी पक्ष को उजागर करते हुए किसानों और खेती की बुरी हालात को चुनावी मुद्दा बनाया है।

सिवान के पास सरैइया के विपिन कुमार ने आउटलुक को बताया कि नीतीश ने अपने दोनों कार्यकाल में सांप्रदायिक भाजपा को फायदा पहुंचाने का सारा काम किया, लालू यादव ने बिहार को जंगल राज में तब्दील कर दिया और भाजपा सिर्फ और सिर्फ नफरत की राजनीति करना चाहती है। भाजपा, नरेंद्र मोदी और अमित शाह भीतर से लोकतंत्र विरोधी हैं और अंदर से बिहार की जनता और स्वाभिमान के खिलाफ हैं। ऐसे में अगर भाकपा माले का उम्मीदवार न हो, तो बेहद मुश्किल हो जाए वोट डालना।–तकरीबन यही बात भाकपा माले की नेता मीना तिवारी ने कही। मीना तिवारी ने कहा,  बिहार के मतदाताओं को बेहतर विकल्प देने का काम वाम पार्टियों का गठजोड़ कर रही हैं।भाजपा को बिहार की धरती में आगे फैलाने के दोषी नीतीश ही है। उन्होंने ही भाजपा के साथ गठबंधन करके उसके विष को राज्य भर में फैलाया। लालू के राज में ही सबसे ज्यादा दलितों पर नरसंहार हुए। आज बिहार की जनता भगवा आतंक और नीतीश दोनों का विकल्प चाहती है, यह हम मुहैया करा रहे हैं।–अब ये कितना प्रयोग कितना सफल होगा, ये तो समय बताएगा, लेकिन वाम दलों की प्रासंगिकता और कतारों की सक्रियता बेहद सार्थक ढंग से बढ़ी हुई दिख रही है। बिहार में काराकाट, ओबरा, अरवल, बेगुसराय में वाम गठबंधन अपनी मजबूत छाप छोड़ने में सफल हो पाया है। भाकपा-माले के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने अगिआंव विधान सभा के माले प्रत्याशी मनोज मंजिल के समर्थन में अजीमाबाद और पवना तथा जगदीशपुर के माले प्रत्याशी चंद्रदीप सिंह के समर्थन में जनसभाओं को संबोधित किया। ये सभाएं बेहद सफल सभाओं में गिनी जा रही है। आरा के तरारी विधानसभा क्षेत्र में भाकपा माले के उम्मीदवार हैं सुदामा प्रसाद। 54 वर्षीय कॉमरेड सुदामा प्रसाद इस इलाके के बहुत सशक्त उम्मीदवार बताए जाते हैं। भाकपा माले को पूरी उम्मीद है कि यह सीट उसे मिलने जा रही है। सुदामा प्रसाद की छवि पूरे इलाके में एक जुझारू नेता की है और वह इस इलाके के माले के बड़े कद्दावर नेता रामनरेश राम के सच्चे वारिस माने जाते हैं। भाकपा माले जब भूमिगत पार्टी थी, तो उसके मोर्चे साईपीएफ से कामरेड रामनरेश राम ही आरा संसदीय क्षेत्र से सफल वाम संसदीय लड़ाई का प्रतीक बने थे।

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