बिहार विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आने के एक दिन बाद पार्टी मुख्यालय में संसदीय बोर्ड की बैठक हुई जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अन्य शीर्ष नेताओं के साथ राज्य में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा की। पार्टी ने स्वीकार किया कि वह इसलिए हार गई क्योंकि महागठबंधन के सामाजिक अंकगणित का आकार राजग से बड़ा था और पार्टी का यह आकलन गलत साबित हुआ कि जदयू, राजद और कांग्रेस एक दूसरे को अपने वोटों का हस्तांतरण नहीं कर पाएंगे। पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में हुए विचार-विमर्श के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, जहां तक जवाबदेही की बात है, पार्टी सामूहिक रूप से जीतती है और सामूहिक रूप से हारती है। दिल्ली की हार के बाद दूसरी बड़ी पराजय से शाह के नेतृत्व पर असर पड़ने की संभावना के सवाल पर जेटली ने उनका मजबूती से बचाव किया। पार्टी के अध्यक्ष को तौर पर शाह का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो रहा है।
लोकसभा चुनाव में सफलता के बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनावों और कुछ राज्यों में स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा की जीत का जिक्र करते हुए जेटली ने कहा, पार्टी सामूहिक रूप से जीतती है और सामूहिक रूप से हारती है। जेटली ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि आरक्षण की समीक्षा करने के संघ प्रमुख भागवत के बयान चुनावों में पार्टी को महंगे साबित हुए। शाह के पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाने वाले बयान से नुकसान होने की बात को भी खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि किसी एक बयान से चुनावों का फैसला नहीं हो सकता। वित्त मंत्री ने कहा कि भाजपा ने अपनी स्थापना के समय से ही हमेशा यह बात कही है कि वे आरक्षण का समर्थन करते हैं और 1991 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद यह स्पष्ट किया है। इस संबंध में उन्होंने कहा, हमने सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की अवधारणा को स्वीकार किया है। मैं समझता हूं कि संघ का भी यही रुख है। इस बारे में कोई संशय नहीं होना चाहिए। पार्टी नेताओं द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा कि सभी को गरिमा के साथ बोलना चाहिए। उन्होंने भाजपा के तीन सहयोगी दलों द्वारा 84 सीटों पर चुनाव लड़ने और केवल पांच पर ही जीत दर्ज करने को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा कि उनके वोट पार्टी को मिल सके। बिहार चुनाव में मोदी द्वारा प्रचार की कमान संभालने की वजह से इन परिणामों को उन पर जनमत संग्रह के तौर पर देखे जाने की दलील को भी खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि जनमत-संग्रह पत्रकारीय बोलचाल का शब्द है और सभी चुनाव अलग अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं।