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बिहार: सिवान की हर सीट पर कांटे की टक्कर के संकेत

बिहार मे तीसरे और चौथे चरण में एक-एक सीट पर कांटे की टक्कर नजर आ रही है। सिवान जिले की सभी आठ विधानसभा सीटों पर भी यही स्थिति नजर आ रही है। जिले की किसी भी सीट पर कोई भी दल पूरी तरह आश्वास्त नहीं है और यहां पर जाति समूहों में भी भारी विचलन देखने को मिल रहा है।
बिहार: सिवान की हर सीट पर कांटे की टक्कर के संकेत

हर सीट का समीकरण दूसरी सीट से अलग है। इससे कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि ऊपरी तौर पर किसी भी गठबंधन के पक्ष या विपक्ष में कोई लहर नहीं दिखाई दे रही है। यहां तक की जो जाति समूह किसी एक गठबंधन के साथ माना जा रहा है, वह अलग-अलग विधानसभा सीटों में अलग-अलग जगह खड़ा दिखाई दे रहा है। इसमें अपवाद स्वरूप सवर्ण जातियों के भाजपा गठबंधन के प्रति मुखर झुकाव को ही रखा जा सकता है।

 

सिवान में चुनाव चौथे चरण यानी 1 नवंबर को होने हैं। सिवान में विधानसभा की आठ सीटें हैं, जिसमें नीतीश के महागठबंधन और भाजपा के गठबंधन के बीच बराबर का मुकाबला होने के आसार जताए जा रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 26 अक्टूबर को यहां रैली होनी है। और इसके बाद बॉलीवुड स्टार अजय देवगन की 27 अक्टूबर को रैली होने की बात है। सिवान के राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इन रैलियों के असर के बाद ही कहा जा सकता है कि पलड़ा किसका भारी पड़ेगा। अभी तो महागठबंधन ज्यादा बढ़त बनाए हुए है। सीवान की दो विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे दो उम्मीदवार जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं। गिरादेवी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे अमरजीत कुशवाहा ने गरीबों को उनकी जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए संघर्ष चलाया और इसी मामले में वह जेल में हैं। वह भी इलाके में लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते हैं।

 

फूड स्पलीमेंट का कारोबार करने वाले कृष्णकुमार ने बताया कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य और स्थानीय भाजपा नेताओं की जबर्दस्त अनदेखी की है। इसकी वजह से बहुत से विद्रोही उम्मीदवार खड़े हो गए हैं। इसका नुकसान भाजपा को होगा। सिवान सदर से एक ऐसे ही बागी उम्मीदवार अवध बिहारी चौधरी के पक्ष में बोलने वाले बहुत लोग इस संवाददाता को मिले। सिवान में एडीएम ऑफिस के नजदीक चाय के ठेले पर छोटा-मोटा कारोबार करने वाले व्यापारियों से लेकर साइकिल पर अखबार बेचने वाले अरुण कुमार तक ने बताया कि एबी चौधरी की दावेदारी मजबूत है। उन्होंने भाजपा से टिकट मिलने के भरोसे, जद (यू) छोड़ा लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया।

 

एक बात और यहां देखी जा रही है कि सिवान के बाजार से लेकर अखबारों के दफ्तर और सरकारी दफ्तरों में हिंदुओं के बीच शहाबुद्दीन की वापसी का खौफ साफ दिखाई दे रहा है। वे खुलकर बोलते हैं कि महागठबंधन को वोट करने का मतलब शहाबुद्दीन के उम्मीदवार को वोट करना है। इसके बावजूद जमीनी हालात बता रहे हैं कि महागठबंधन की जमीन कुछ पक्की हो रही है। 

 

 

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