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जाति और जीएसटी से तय होगी गुजरात में जीत-हार

- अजीत झा तीन साल पहले ‌विकास के जिस गुजरात मॉडल का सपना दिखाकर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने का...
जाति और जीएसटी से तय होगी गुजरात में जीत-हार

- अजीत झा

तीन साल पहले ‌विकास के जिस गुजरात मॉडल का सपना दिखाकर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने का जनादेश हासिल किया था उसे भूल जाइए। गुजरात में 2017 का विधानसभा चुनाव जाति और जीएसटी के गणित पर लड़ा जा रहा है। कांग्रेस पटेलों, दलितों, ओबीसी के आंदोलन से पैदा हुई जमीन और जीएसटी, नोटबंदी के मारे कारोबारियों की पीड़ा को हवा देकर भाजपा के इस अभेद्य किले में सेंधमारी की कोशिश कर रही है।

22 साल से गुजरात की सत्ता में काबिज भाजपा के लिए यह चुनाव सबसे चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यहां हार 2019 के आम चुनावों पर भी असर डालेगी। हारने का मतलब होगा विकास का वह गुजरात मॉडल फेल होना जिसने देश के हर कोने में 2014 में कमल खिलाया था। यही कारण है कि जातीय गणित को साधने के लिए भाजपा पाटीदार आंदोलन के नेता रहे हार्दिक पटेल के करीबियों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। हालांकि बीते दिनों नरेंद्र पटेल ने समर्थन के एवज में पैसा देने का आरोप लगाते हुए जिस तरह भाजपा छोड़ी उससे यह दांव फिलहाल कारगर होता नजर नहीं आ रहा है।

कारोबारियों की परेशानी कम करने के लिए इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार ने जीएसटी के नियम में कई बदलाव किए थे। केंद्रीय वित्त मंत्री जेटली ने व्यापारियों को और राहत प्रदान करने के भी संकेत दिए हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस जीएसटी और नोटबंदी के मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जीएसटी को “गब्बर सिंह टैक्स” बता चुके हैं। नोटबंदी की पहली वर्षगांठ पर आठ नवंबर को पार्टी काला दिवस मनाएगी। जिस नोटबंदी की बदौलत भाजपा ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया था वह भी गुजरात में उसके लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। माना जा रहा है कि इसने कैश पर कारोबार करने वाले छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी है।

गुजरात में 50 फीसदी वोट ओबीसी, 12 फीसदी पटेल और आठ फीसदी दलित के हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन तीनों वर्गों का आंदोलन गुजरात ने देखा। ओबीसी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन इनका झुकाव कांग्रेस की ओर स्पष्ट है। 2015 में हार्दिक पटेल की अगुआई में हुआ पाटीदार आंदोलन काफी चर्चित रहा था। इसके कारण भाजपा को आनंदीबेन पटेल की मुख्यमंत्री पद से छुट्टी करनी पड़ी थी। पटेलों की ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राज्य के कुल 182 विधायकों में से 44 विधायक और सात कैबिनेट मंत्री इसी समुदाय से हैं।

हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी पटेल हार्दिक के साथ हैं। इसमें दो वर्ग है। लेउवा पटेल और कड़वा पटेल। 2012 के चुनावों में भाजपा को लेउवा के 63 और कड़वा के 82 फीसदी वोट मिले थे। यदि हार्दिक अपने वर्ग का छह फीसद और अल्पेश तीस फीसद वोट भी कांग्रेस के पक्ष में लाने में कामयाब हुए तो भाजपा की सत्ता में वापसी की राह मुश्किल हो जाएगी। इसका तोड़ खोजने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हर कोशिश कर रहे हैं। चुनाव को गुजराती अस्मिता से जोड़कर भावनात्मक रंग देने की कोशिश हो रही है। 

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