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छह चरणों में कहीं ज्यादा वोटिंग तो कहीं कम, मोदी सरकार के लिए क्या हैं इसके मायने

लोकसभा चुनाव 2019 के छह चरणों की वोटिंग खत्म हो चुकी हैं और सभी पार्टियां अब सातवें चरण के मतदान के लिए जोर...
छह चरणों में कहीं ज्यादा वोटिंग तो कहीं कम, मोदी सरकार के लिए क्या हैं इसके मायने

लोकसभा चुनाव 2019 के छह चरणों की वोटिंग खत्म हो चुकी हैं और सभी पार्टियां अब सातवें चरण के मतदान के लिए जोर आजमाइश में जुट गई हैं। अब तक हुए छह चरणों के मतदान में सबसे कम वोटिंग प्रतिशत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में रहा। इन तीनों जगहों पर कुल मिलाकर 44 फीसदी मतदान हुआ, जोकि 2014 के मतदान से पांच प्रतिशत कम है। 2014 में यहां का मतदान प्रतिशत 49 फीसदी रहा था।

लेकिन अगर सिर्फ घाटी की बात की जाए तो ये आंकड़ा और कम है। हिंसा की सबसे खूनी पृष्ठभूमि और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच घाटी की तीन सीटों पर सिर्फ 19 फीसदी वोट पड़े। 2014 के लोकसभा चुनावों में कश्मीर के 31 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाला था। वहीं, इलाके के लिहाज से भारत के सबसे बड़े निर्वाचन-क्षेत्र लद्दाख में 71 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

ये इलाके मिलाकर बनाते हैं जम्मू-कश्मीर लोकसभा सीट

लोकसभा के 543 सांसदों में से सिर्फ 6 कश्मीर के भौगोलिक रूप से तीन अलग-अलग इलाकों कश्मीर, जम्मू और लद्दाख से होते हैं। ये इलाके मिलकर जम्मू-कश्मीर लोकसभा सीट बनाते हैं।

10 जिलों वाली कश्मीर की तीन सीटों में से बारामुला सीट में सबसे ज्यादा 34 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। बारामुला सीट में बारामुला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा जिले शामिल हैं। वहीं, श्रीनगर सीट, जिसमें श्रीनगर, बड़गाम और गांदरबल जिले शामिल हैं, में 14 फीसदी मतदान प्रतिशत रहा। अनंतनाग सीट, जिसमें अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा शामिल हैं, वहां सबसे कम 8.7 फीसदी मतदान हुआ। यहां मतदान प्रतिशत काफी ज्यादा गिरा है, क्योंकि इस बार के मुकाबले 2014 में यहां 29 फीसदी मतदान हुआ था।

पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा वोटिंग

वहीं, इन छह चरणों के बाद सबसे ज्यादा वोटिंग वाले राज्य की बात की जाए तो उसमें पश्चिम बंगाल टॉप पर है, जहां हिंसक झड़पों के बीच भी वोटिंग प्रतिशत में कोई कमी नहीं आई। हालांकि कई बूथों पर मतदान जरूर दोबारा करवाए गए। हर चरण में पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा वोटिंग पर्सेंटेज 80 प्रतिशत  दर्ज की गई है।

कम वोटिंग को लेकर सुर्खियों में राजधानी दिल्ली

12 मई को खत्म हुए छठे चरण के मतदान में राजधानी दिल्ली भी कम वोटिंग को लेकर चर्चा में बनी रही। वहीं, इस चरण में उत्तर प्रदेश में भी वोटिंग प्रतिशत कम दर्ज किया गया। छठे चरण में कुल 63.49 फीसदी मतदान दर्ज हुआ। वहीं, दिल्ली में दिल्ली में 59.73 फीसदी तो उत्तर प्रदेश में 54.74 फीसदी मतदान दर्ज किया गया।

वैसे तो वोटिंग के लिए देश के सभी राज्यों में मतदाताओं को जागरुक करने के लिए अभियान चलाया गया था लेकिन राजधानी दिल्ली में इस काम के लिए करीब 7 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, इसके बावजूद दिल्ली की जनता ने वोटिंग में उत्साह नहीं दिखाया और पिछली बार की तुलना में इस बार राजधानी में वोटिंग कम हुई, जो सभी के लिए एक चौंका देने वाली खबर है।

राजधानी दिल्ली में हुए कम मतदान के क्या हैं मायने

हालांकि चुनाव अधिकारियों का कहना है कि भीषण गर्मी की वजह से वोटिंग में यह कमी आई है। वोटिंग में आई इस कमी ने विशेषज्ञों के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी गुणा-भाग करने के लिए मजबूर कर दिया है कि इसके मायने क्या हैं?

चुनावी विश्लेषण में यह माना जाता है कि ज्यादा वोटिंग सत्ता के विरोध का प्रतीक होती है। तो ऐसे में दिल्ली की कम वोटिंग के क्या मायने हैं ये समझना भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक जो परंपरा रही है, उसके तहत दिल्ली की लोकसभा सीटें जिस पार्टी को मिलती हैं, उसी पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिलता रहा है।

हालांकि, दिल्ली में 60 प्रतिशत वोटिंग भले ही 2014 से कम है, लेकिन उससे पहले हुए लोकसभा चुनावों की वोटिंग का ट्रेंड देखा जाए तो आंकड़े थोड़ा हैरान करने वाले हैं। 1977 से लेकर 2009 तक ऐसे तीन ही मौके आए हैं जब दिल्ली में वोटिंग प्रतिशत 60 पार कर पाया हो। साल 1977 में यहां सबसे ज्यादा 71.3 फीसदी वोटिंग हुई थी। इसके बाद 1980 में 64.9 और 1984 में 64.5 फीसदी वोटिंग हुई। यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था। लेकिन 1989 से लेकर 2009 तक हुए सात लोकसभा चुनावों में एक बार भी वोटिंग प्रतिशत 60 का आंकड़ा नहीं छू पाया और ऐसा भी बताया जाता है कि कई बार तो यह 50 फीसदी भी नहीं पहुंच सका।

राजधानी में अब तक ये रहा वोटिंग प्रतिशत

1989- 54.3%

1991- 48.5%

1996- 50.6%

1998- 51.3%

1999- 43.5%

2004- 47.1%

2009- 51.9%

2009 के बाद दिल्ली में अन्ना आंदोलन हुआ। केंद्र की कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। लोकपाल आंदोलन के बीच कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा नजर आया, जिसका नतीजा ये हुआ कि 2014 में दिल्ली की जनता ने 65 फीसदी मतदान किया और सातों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई।

हालांकि, दिल्ली से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि कम वोटिंग प्रतिशत में भी यहां की जनता एक चुनाव में किसी एक पार्टी को ही प्रमुखता से चुनती रही है। मसलन, 2009 में सभी सात सीटें कांग्रेस को मिलीं, 2004 में कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं, 1999 में बीजेपी को सातों सीट मिलीं, 1998 में बीजेपी को 6 सीटें मिलीं।

सातवें और आखिरी चरण में 59 सीटों पर मतदान

सातवें और आखिरी चरण में 19 मई को आठ राज्यों की 59 सीटों पर मतदान होगा। 19 मई को जिन जहां पर मतदान होगा, उसमें पंजाब और उत्तर प्रदेश की 13-13 सीटें, बिहार और मध्य प्रदेश की आठ-आठ, झारखंड की तीन, पश्चिम बंगाल की नौ, हिमाचल प्रदेश की चार और चंडीगढ़ की एक सीट शामिल हैं।

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