बंगाल चुनाव के नतीजे आ गए हैं और ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में आ रही हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव में कामयाबी के बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी बंगाल विधानसाभ चुवाव में भी इसे दोहराने उतरे थे, लेकिन दीदी की आंधी में उड़ गए। बंगाल में वह कोई असर नहीं दिखा पाए। बंगाल की सभी सातों सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवारों को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। उन्हें एक भी सीट नहीं मिली और सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
ओवैसी ने बिहार की तर्ज पर बंगाल में मुसलमान वोटरों पर ध्यान केंद्रित किया लेकिन वो बंगाल के वोटरों को रिझा पाने में कामयाब नहीं हुए। मुस्लिम वोटरों का वोट पाने के लिए ओवैसी ने सातों सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन ओवैसी का बंगाल में सारा गणित फेल हो गया। ओवैसी ने जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा उनको एक हजार तक वोट नहीं मिले।
ओवैसी ने बंगाल की सिर्फ 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, ये वो सीटें थीं जहां मुस्मिल बहुल आबादी है। लेकिन मुस्लिम वोटरों ने ओवैसी का साथ नहीं दिया, बल्कि मामता बनर्जी का साथ दिया। ओवैसी ने इतहार सीट पर मोफाककर इस्लाम, जलंगी सीट पर अलसोकत जामन, सागरदिघी सीट पर नूरे महबूब आलम, भरतपुर सीट पर सज्जाद हुसैन, मालतीपुर सीट पर मौलाना मोतिहर रहमान, रतुआ सीट पर सईदुर रहमान और आंसनसोल नार्थ सीट पर दानिश अजीज को चुनावी मैदान में उतारा था।
बताते चलें कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुल करीब 120 सीट है, जहां पर ये मुस्लिम वोटर्स द्वारा जीत और हार तय किया जाता है।. पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद जिले में मुस्लिम बहुल सीट अधिक है। पिछले चुनाव में इन 120 सीटों में से टीएमसी को करीब 70 सीटे मिली थी। साल 2016 में राज्य की 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने 211, कांग्रेस ने 44, सीपीआई(एम) ने 24 और भाजपा ने 3 सीट पर कब्जा किया था लेकिन पांच साल में राज्य के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में 42 में से 18 सीट पर कब्जा किया था। इसके बाद राज्य में भाजपा टीएमसी के खिलाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।