शिवसेना ने यह भी कहा कि इस बात का अध्ययन किया जाना चाहिए कि जब राज्य विकास के मामलों में अपने नंबर वन होने का दावा करता है तो भाजपा राज्य के ग्रामीण इलाकों में हार क्यों गई? शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में कहा गया है कि 20 साल तक सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस ने गुजरात के ग्रामीण इलाकों में शानदार वापसी की है, जहां यह 31 जिला पंचायतों में से 21 और 230 तालूका पंचायतों में से लगभग 110 में जीती है जबकि भाजपा सभी छह नगर निगमों और 56 नगरपालिकाओं में से 40 में जीतकर शहरी इलाकों पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही है।
बिहार विधानसभा चुनावों में हारने के बाद भाजपा को अब गुजरात के ग्रामीण इलाकों के स्थानीय निकायों में हार का सामना करना पड़ा है। यह हार ऐसे समय हुई है, जब राज्य में 12 साल तक शासन कर चुके नरेंद्र मोदी को दिल्ली गए हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। संपादकीय में कहा गया, निकाय चुनावों के नतीजे यही दिखाते हैं कि गुजरात की जनता पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे नहीं खड़ी है। हालांकि भाजपा सभी छह नगर निगमों में जीती है लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि कांग्रेस हार गई है।
संपादकीय में कहा गया, नगर निगमों पर भाजपा का शासन होगा और जिला परिषदों पर कांग्रेस का। संक्षेप में कहें तो कांग्रेस इस चुनाव में हारने के बावजूद जीत गई है। भाजपा को अब यह आंकने की जरूरत है कि नरेंद्र मोदी की होम पिच पर खतरे की घंटियां बजनी क्यों शुरू हो गई हैं? सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगी दल ने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को एक नया जीवन मिलना ठीक है लेकिन मोदी के गृह राज्य में पार्टी का अच्छा प्रदर्शन भारी चिंता का विषय है।
शिवसेना ने कहा, यह अध्ययन कराने की जरूरत है कि यदि विकास के मामले में नंबर वन राज्य के रूप में पेश की जा रही गुजरात की तस्वीर सच्ची है तो फिर ग्रामीण इलाकों में लोग भाजपा के खिलाफ क्यों हो गए? शिवसेना ने कहा, लोकतंत्र में मतदाता सर्वोच्च होता है और इसने बड़े-बड़े नेताओं को उनका स्थान दिखा दिया है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस-मुक्त भारत का नारा दिया था लेकिन बिहार के बाद कांग्रेस अब गुजरात में भी बढ़ी रही है। संपादकीय में कहा गया, इन नतीजों ने कांग्रेस को खुश होने का मौका दे दिया है।