‘फ्लाई मी टू द मून’ के नाम से आने इस आत्मकथा में इस कट्टरपंथी हिंदू नेता ने यह भी खुलासा किया है कि 1992 में राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराने में सिर्फ कारसेवकों की भूमिका नहीं थी बल्कि इसके लिए ‘कुछ विशेषज्ञों’ की सेवाएं भी ली गई थीं। खुद गोरादिया इस घटना के चश्मीदीद गवाह थे। गोरादिया वर्ष 1998 से 2000 तक गुजरात से भाजपा के सांसद थे और उन्होंने वर्ष 2004 के सितंबर में भाजपा छोड़ दी थी। उस समय गोवा चिंतन बैठक में हिंदुत्व को छोड़कर विकास और राष्ट्रवाद को कोर मुद्दे के रूप में अपनाने का विरोध करते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ी थी।
गोरदिया ने किताब में लिखा है कि 2002 के दंगों के बाद वह हर मौके पर मोदी का बचाव करते थे। इसके कारण कई लोगों को, यहां तक कि भाजपा में भी ऐसे लोगों को परेशानी थी जो न सिर्फ मोदी को अपनाने से इनकार करना चाहते थे बल्कि उनके राजनीतिक कॅरिअर को खत्म कर देना चाहते थे। उन्होंने लिखा है, ‘एक बार जब मैं टीवी पर मोदी के बचाव में लगा हुआ था तब मेरे पास एक फोन आया। मैं तत्काल उस आवाज को नहीं पहचान सका मगर बाद में महसूस हुआ कि वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय के एक विशेष कार्याधिकारी की आवाज थी। उसने कहा कि मोदी आपका भाई या भतीजा नहीं है तो आप क्यों उससे चिपके हुए हो।’ दूसरे शब्दों में यह पार्टी के शीर्ष स्तर द्वारा दी गई चेतावनी थी कि मोदी के साथ रहने से मेरे राजनीतिक कॅरिअर को नुकसान हो सकता है। उन्होंने लिखा, ‘अहमदाबाद में और दिल्ली में मोदी के करीबियों को लगता था कि इस सबके के पीछे प्रमोद महाजन थे जो कि गुजरात के शेर के विरोध में थे।’