नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर एक बार फिर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने निशाना साधा है। उन्होंने इस विधेयक को पूर्वोत्तर, उनके जीवन के तौर-तरीके और भारत के विचार पर आपराधिक हमला बताया है।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, “यह बिल पूर्वोत्तर, उनके जीवन के तौर-तरीके और भारत के विचार पर आपराधिक हमला है।नागरिकता संशोधन विधेयक मोदी-शाह सरकार की पूर्वोत्तर के जातीय सफाये की कोशिश है। मैं पूर्वोत्तर के लोगों के साथ खड़ा हूं और मैं उनकी सेवा में हाजिर हूं।”
गौरतलब है कि इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता का प्रस्ताव है। लोकसभा से पारित होने के बाद नागरिकता संशोधन बिल आज यानी बुधवार को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। वहीं पूर्वोत्तर के मूल निवासियों का कहना है कि बाहर से आकर नागरिकता लेने वाले लोगों से उनकी पहचान और आजीविका को खतरा है। आसू और अन्य संगठन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
इससे पहले मंगलवार को राहुल गांधी ने कहा, 'नागरिकता बिल भारतीय संविधान पर हमला है। जो भी इसका समर्थन करता है वह हमारे राष्ट्र की नींव को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है।'
कांग्रेस कर रही है विरोध
संसद से लेकर सड़क तक कांग्रेस पार्टी इस बिल का विरोध कर रही है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने भी नागरिकता (संशोधन) विधयेक को लेकर केंद्र पर निशाना साधा था। सिब्बल ने ट्विटर पर सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा, "कैब( विधेयक) एक ऐसी कैब है, जिसका चालक विभाजनकारी है, जो हमारे सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों को अस्थिर और नष्ट करना चाहता है, जिसकी नजर केवल राजनीतिक लाभ उठाने पर है, हाथ मिलाओ देश बचाओ।"
वहीं सिंघवी ने इसे असंवैधानिक बताते हुए ट्वीट किया, "कांग्रेस इसके मौजूदा स्वरूप में सीएबी का विरोध करती है, क्योंकि यह संविधान के विरुद्ध है। जिसका एक आधुनिक और बहुध्रुवीय समाज के दूरदर्शियों द्वारा महात्मा गांधी के भारत के लिए निर्माण किया गया था, जो हमारे अतिवादी पड़ोसी से अगल था।"
क्या है इस विधेयक में?
-भारतीय मूल के बहुत से व्यक्ति जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के उक्त अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्ति भी शामिल हैं, वे नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के अधीन नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। किंतु यदि वे अपने भारतीय मूल का सबूत देने में असमर्थ है, तो उन्हें उक्त अधिनियम की धारा 6 के तहत ‘‘देशीयकरण’’ द्वारा नागरिकता के लिये आवेदन करने को कहा जाता है। यह उनको बहुत से अवसरों एवं लाभों से वंचित करता है।
-इसमें कहा गया कि इसलिए अधिनियम की तीसरी अनुसूची का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है जिसमें इन देशों के उक्त समुदायों के आवेदकों को ‘‘देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिये पात्र बनाया जा सके’’। इसके लिए ऐसे लोगों मौजूदा 11 वर्ष के स्थान पर पांच वर्षो के लिए अपनी निवास की अवधि को प्रमाणित करना होगा।
-इसमें वर्तमान में भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के कार्ड को रद्दे करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है।
-विधेयक में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय आबादी को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की संरक्षा करने और बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की ‘‘आंतरिक रेखा’’ प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान किये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखने के मकसद से है।