महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का राज्य विधान परिषद के चुनाव में रास्ता साफ करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने तत्कालीन सहयोगी शिवसेना के साथ तालमेल बिठाने की राह फिर से खोल दी है। विधान परिषद की सीटों पर राज्यपाल द्वारा उद्धव को नामित न किया जाना और फिर पीएम से फोन पर बात करने के बाद चुनाव आयोग द्वारा फैसला लिया जाना राज्य की राजनीति में अहम माना जा रहा है।राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा की ओर से एक पेशकश के तौर पर देखा जा रहा है।
शुक्रवार को चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र विधान परिषद की नौ सीटों पर चुनाव कराने की घोषणा की है जिसके बाद जिसके बाद शिव सेना नेताओं ने राहत की सांस ली है। राज्य की 9 सीटों पर अब 21 मई को चुनाव होगा। उद्धव ठाकरे को 27 मई तक राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य होना जरूरी है।
मंडरा रहे थे अनिश्चितता के बादल
महाराष्ट्र विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार का नेतृत्व कर रहे उद्धव ने पिछले साल 28 नवंबर को शपथ ली थी। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, उन्हें शपथ ग्रहण के छह महीने के भीतर विधायक या एमएलसी के रूप में निर्वाचित होना है। ऐसा नहीं होने पर उनका मुख्यमंत्री पद चला जाएगा। चूंकि चुनाव आयोग ने कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप के कारण देश भर के सभी चुनावों पर रोक लगा दी थे जिसके चलते उद्धव सरकार पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे थे।
लगाया था राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का आरोप
असल में राज्य कैबिनेट ने इस महीने की शुरुआत में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें राज्यपाल को विधान परिषद की खाली सीटों में से एक पर उद्धव को नामित करने की सिफारिश की गई थी। हालांकि, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने लगभग 20 दिनों तक निर्णय लेने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और इस संबंध में कानूनी सलाह मांगी। इस पर शिवसेना नेताओं ने राजभवन पर भाजपा की शह पर उस समय राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया जब राज्य कोविड-19 के खिलाफ गंभीर लड़ाई लड़ रहा था।
पीएम से की थी फोन पर बात
राज्यपाल की इस बेरुखी के बाद उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और उनसे शिकायत करते हुए हस्तक्षेप की मांग की। पीएम ने मामले को देखने का वादा किया। उद्धव के राहत की बात यह रही कि पीएम से बातचीत के दो दिन बाद चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी। गुरुवार को राज्यपाल ने चुनाव आयोग से भी चुनाव कराने का अनुरोध करते हुए लिखा था। शुक्रवार को उद्धव की राज्यपाल कोश्यारी से 'शिष्टाचार मुलाकात' की थी।
आयोग के फैसले से राजनीतिक विवाद समाप्त
चुनाव आयोग ने फैसला लेकर राज्य में राजनीतिक विवाद को समाप्त कर दिया है लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा की ओर से एक पेशकश के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर भाजपा और शिवसेना का तीन दशक पुराना गठबंधन खत्म हो गया। चुनाव पूर्व सहयोगी दलों के रूप में दोनों पार्टी 21 अक्टूबर को चुनाव मैदान में उतरी थीं और उन्होंने बहुमत हासिल किया था। लेकिन बाद में शिवसेना ने सरकार के पांच साल के कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग की, जिसे भाजपा ने खारिज कर दिया था।
इसके बाद, शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया और सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को छोड़ दिया। तब से, दोनों दलों के बीच संबंध खराब हो गए और राजभवन तथा उद्धव सरकार के बीच गतिरोध चरम पर पहुंच गया।
भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है
उद्धव के प्रवेश को सुविधाजनक बनाने का भाजपा के शीर्ष का फैसला तय रूप से भविष्य के लिए राजनीतिक रूप से मायने रखता है। अन्य बातों के अलावा, इसे शिवसेना के साथ तालमेल करने के लिए भाजपा के बड़े इशारे के रूप में समझा जा रहा है, जिसके साथ उसने पिछले कई सालों तक सत्ता में साझादारी की है। यह सभी जानते हैं कि शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ सत्ता के लिए गठबंधन किया होगा, लेकिन यह सालों से भगवा विचारधारा के करीब है। इसलिए, पार्टी के पास यह सोचने का कारण है कि कभी न कभी आंतरिक विरोधाभास एमवीए गठबंधन के पतन का कारण बनेंगे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा के पास दोनों दलों के लिए विकल्प खुले रखने के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जैसा कि कहावत भी है कि राजनीति में कोई किसी का न कोई दोस्त है है न कोई दुश्मन