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केंद्र का अंतिम तिथि बढ़ाने का आदेश असम को विदेशियों के लिए चारागाह बना देगा: कांग्रेस

असम कांग्रेस के नेता देवव्रत सैकिया और रिपुन बोरा ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि पड़ोसी देशों से आने...
केंद्र का अंतिम तिथि बढ़ाने का आदेश असम को विदेशियों के लिए चारागाह बना देगा: कांग्रेस

असम कांग्रेस के नेता देवव्रत सैकिया और रिपुन बोरा ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि पड़ोसी देशों से आने वाले प्रवासियों (मुसलमानों को छोड़कर) के लिए अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2014 से बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2024 करने का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का फैसला राज्य को विदेशियों के लिए चारागाह बना देगा।

सैकिया और बोरा ने यहां एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘एक सितंबर को जारी किया गया नया आव्रजन और विदेशी (छूट) आदेश, 2025; असम समझौते को रद्द करके असमिया लोगों के अस्तित्व को नष्ट करने की भाजपा की गहरी साजिश है, ताकि विदेशियों को वैध बनाया जा सके और राज्य को बाहरी लोगों का चारागाह बनाया जा सके।’’

गृह मंत्रालय का यह आदेश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के वैसे अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई) को देश में रहने की अनुमति देता है, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2024 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं।

असम विधानसभा में विपक्ष के नेता सैकिया और पूर्व राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा ने भी राज्य में हिमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और उसकी सहयोगी असम गण परिषद (अगप) की आलोचना की और उन्हें तुष्टीकरण तथा वोट बैंक की राजनीति करने के लिए ‘राष्ट्र-विरोधी’ करार दिया।

सैकिया ने इस आदेश को ‘‘नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का दूसरा संस्करण’’ बताया और भाजपा पर ‘‘एक राष्ट्र, एक नीति और वोट बैंक की राजनीति’’ के नाम पर असमिया लोगों की पहचान मिटाने की एक खतरनाक साजिश शुरू की जा रही है।

सैकिया ने भाजपा पर चुनावी राजनीति के लिए हिंदू बांग्लादेशियों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।

बोरा ने कहा, ‘‘भाजपा का अवैध घुसपैठ रोकने का कोई इरादा नहीं है। अंतिम तिथि बढ़ाकर सरकार विदेशियों को एक और सुरक्षित रास्ता दे रही है और इससे साबित होता है कि असम में घुसपैठ आज भी जारी है।’’

बोरा ने आरोप लगाया, ‘‘मोदी ने 2014 में वादा किया था कि असम में सभी अवैध प्रवासियों को राज्य छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा, लेकिन उस वादे को पूरा करने के बजाय, भाजपा ने केवल ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए इस मुद्दे को जिंदा रखा है, इस प्रक्रिया में असमिया भाषा, संस्कृति और पहचान की बलि दी है।’’

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