सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ सात पार्टियों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिए जाने के बाद कांग्रेस ने रविवार को कहा कि जस्टिस मिश्रा को चाहिए कि वे खुद को तब तक प्रशासनिक एवं न्यायिक कार्यों से अलग कर लें जबतक उन पर चल रही प्रक्रिया समाप्त न हो जाए।
कांग्रेस के कम्युनिकेशन सेल के इंचार्ज रणदीप सुरजेवाला भी कहा कि महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस का विवरण सार्वजनिक करने में राज्यसभा के किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि भाजपा मुख्य न्यायाधीश का बचाव कर न्यायपालिका के सर्वोच्च पद का अपमान कर रही है। ऐसे में मुख्य न्यायाधीश को खुद आगे आकर भाजपा से कहना चाहिए कि वह उनके कार्यालय का राजनीतिकरण नहीं करे।
कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने कहा कि वह (जस्टिस मिश्रा) देश के मुख्य न्यायाधीश हैं। उनको अपने को खुद जांच के सुपुर्द करना चाहिए। यह उन पर आरोप नहीं है, बल्कि देश पर आरोप हैं। हम किसी का अपमान करने के लिए नहीं आए हैं। लेकिन इन गंभीर आरोपों की सच्चाई सामने आनी चाहिए। ऐसा होना देश और न्यायपालिका के हित में है।
तन्खा ने कहा कि हमें न्यायपालिका और न्यायाधीशों की ईमानदारी पर गर्व है। लेकिन पिछले तीन महीने से हम चिंतित थे। चार न्यायाधीशों ने संवाददाता सम्मेलन करके कहा कि लोकतंत्र खतरे में हैं। इसके बाद कुछ न्यायाधीशों के पत्र भी सामने आए। सांसदों ने बहुत सोच-विचार करके यह कदम उठाया। हमने भारी मन से ऐसा किया है।
नोटिस का विवरण मीडिया को दिए जाने को लेकर भाजपा के सवालों पर वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने कहा कि 15 दिसंबर, 2009 को जस्टिस दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद राज्यसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली और माकपा नेता सीताराम येचुरी ने मीडिया से बात की थी। उन्होंने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के बारे में मीडिया से बात करने पर राज्यसभा के नियमों में रोक नहीं है।
गौरतलब है कि गत शुक्रवार को कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश पर ‘कदाचार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को महाभियोग का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि संविधान और न्यायपालिका की रक्षा के लिए उनको ‘भारी मन से’ यह कदम उठाना पड़ा है। महाभियोग प्रस्ताव पर कुल 71 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं जिनमें सात के कार्यकाल पूरा हो चुके हैं। महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, सपा, बसपा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के सदस्य शामिल हैं।