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बंगाल में कांग्रेसियों का हलफनामा वफादारी का

बंगाल में चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस- वाममोर्चा गठबंधन के बनाए रखने की चुनौती से दोनों पार्टियों के नेता जूझ ही रहे हैं। अब कांग्रेस अपने विधायक दल और पार्टी में टूट रोकने के लिए जूझ रही है। कांग्रेस के नवनिर्वाचित 44 विधायकों और पार्टी के बाकी उम्मीदवारों और जिला यूनिटों के पदाधिकारियों ने वफादारी के हलफनामे पर दस्तखत किया है। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नाम पर शपथ ली है कि किसी भी हालत में पार्टी नहीं छोड़ेंगे।
बंगाल में कांग्रेसियों का हलफनामा वफादारी का

बंगाल कांग्रेस के प्रमुख अधीर चौधरी ने यह अभिनव प्रयोग किया है। पार्टी के नेताओं के बीच ही इसके कानूनी पहलू को लेकर चर्चा सरगर्म है। पहला पैराग्राफ ही है कि ‘मैं अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी के साथ बने रहने की शपथ लेता हूं।` दूसरा पैराग्राफ है- ‘विधायक होने के नाते मैं किसी पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल नहीं रहूंगा। अगर पार्टी के किसी फैसले से सहमत नहीं रहूं और पार्टी छोड़ने का फैसला करूं तो सबसे पहले विधायक पद छोड़ूंगा।`

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, मालदा और मुर्शिदाबाद जिले से जीतकर आए कुछ विधायकों के साथ तृणमूल कांग्रेस नेताओं का लगातार संपर्क बना होने की जानकारी मिलने के बाद सोमेन मित्र, मानस भुइयां, प्रदीप भट्टाचार्य अब्दुल मन्नान के सुझाव पर अधीर चौधरी ने आनन-फानन में कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई और शपथ पत्र पर दस्तखत करा लिए। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, इस बैठक की सूचना फोन पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव सी.पी. जोशी और डॉ. शकील अहमद को दी गई। हालांकि, अधीर चौधरी के अनुसार, आलाकमान ने इस तरह के फैसले लेने की छूट पार्टी की राज्य इकाई को ही दी हुई है, इसलिए पूछने की जरूरत नहीं थी। यह जरूर है कि बंगाल के मामले में वाममोर्चा के साथ गठबंधन करने को लेकर हरी झंडी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सहमति से दी गई थी। राहुल गांधी ने बंगाल में कांग्रेस के लिए डेढ़ दर्जन से ज्यादा जनसभाएं की थीं।

दरअसल, 2011 के अनुभव को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने यह कवायद की है। तब तृणमूल के साथ गठबंधन था और कांग्रेस के 42 विधायक जीतकर आए थे। पांच साल में 11 विधायक पार्टी छोड़कर तृणमूल में शामिल हो गए। उनमें से अधिकांश को मंत्री बनाया गया और बचे रह गए विधायकों को मलाईदार पद दिए गए। इस बार वाममोर्चा के साथ गठबंधन किया गया और कांग्रेस ने बंगाल में 44 सीटें जीतीं। तृणमूल कांग्रेस को 294 में से 211 सीटें मिली हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रभाव वाले जिलों- मालदा, मुर्शिदाबाद, दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी आदि में पैठ के मद्देनजर तृणमूल टूट-फूट कराने की कोशिश में थी।

इस बात की भनक मिलने पर सभी विधायकों, सभी उम्मीदवारों, जिला पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई और उनसे पार्टी न छोड़ने के शपथ पत्र पर दस्तखत कराए गए। सौ रुपए के जूडीशियल स्टैम्प पेपर पर हलफनामा टाइप कराया गया। इसका मजमून पीसीसी महासचिव अरुणाभ घोष ने तैयार किया था। उधर, इस शपथपत्र को लेकर चर्चा तेज हो गई है। अधीर चौधरी के अनुसार, शपथ पत्र पर दस्तखत करने के बाद नैतिक रूप से सभी हमारे साथ बंध गए हैं। हालांकि, एक बुजुर्ग विधायक के अनुसार, यह कानूनी रक्षा कवच नहीं है। बैठक में अधीर चौधरी ने कांग्रेस के विधायकों के साथ ही पराजित उम्मीदवारों को भी सम्मानित किया। इसे कांग्रेसियों का मनोबल बनाए रखने की कवायद मानी जा रही है। 

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