उत्तर प्रदेश की सियासत में खोया गौरव हासिल करने के लिए कांग्रेस बेहद सक्रिय है। हर बूथ पर कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की जा रही है। आगामी विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन की योजना भी बड़ी तेजी के साथ बनाई जा रही है। कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस संबंध में मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर चुके हैं। कई बिंदुओं पर सहमति भी बनी है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव से भी मुलाकात हो चुकी है। कांग्रेस के विधायकों ने भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मिलकर गठबंधन के लिए दबाव बनाया है।
गठबंधन को लेकर कांग्रेस में विराेेध स्वर भी
यूपी में कांग्रेस के गठबंधन को लेकर पार्टी में दबे स्वर विरोध भी हो रहा है। यह विरोध पार्टी के अंदर से है और जमीनी है। विरोधी लोग वहीं हैं जिन्हें रणनीतिकार प्रशांत किशोर घरों से निकालकर चुनावी मोड में ले आए और अब पर्दे के पीछे की सियासी चाल उनके लिए ही मुसीबत बन रही है। तभी एक सिरे से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर, मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित और कैंपेन कमेटी के चेयरमैन संजय सिंह किसी गठबंधन को सिरे से नकार रहे हैं। 27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ सरकार बनाने की रणनीति के साथ उतरी कांग्रेस ने पिछले दो-तीन महीनों में अपने कार्यकर्ताओं और घर बैठ गए नेताओं को न सिर्फ बाहर निकाला बल्कि उन्हें राजनीतिक दमखम दिखाने के लिए तैयार किया। राहुल संदेश यात्रा पंचायत स्तर पर निकाली जा रही हैं। अब अचानक सीटों के बंटवारे की खबर ने स्थानीय स्तर पर पार्टी को भ्रम में डाल दिया है।
एक ओर यूपी में विकास का दिल्ली मॉडल और ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित का चेहरा सामने किया। यदि गठबंधन हुआ तो शीला दीक्षित का क्या होगा। गठबंधन के दूसरे दल कांग्रेस का मुख्यमंत्री तो कतई स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं शीला दीक्षित चुनाव लड़ने से इनकार कर चुकी हैं। गठबंधन की हकीकत यह होने वाली है कि यूपी में समाजवादी पार्टी जिन 224 विधानसभा सीटों पर जीतकर आई थी उनमें एक दो छोड़ वहां खुद ही लड़ेगी। कांग्रेस को चुनाव में जीतीं हुई 29 सीटों के अलावा कुछ और सीटें मिल सकती हैं। ऐसे में प्रदेश भर में यात्राएं निकालकर कांग्रेस को बैकफुट पर ले जाने की रणनीति कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही है।