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लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें मजबूत हुईं: आडवाणी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने यह कहकर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है कि देश में लोकतंत्र को कुचलने में सक्षम ताकतें मजबूत हुई हैं और दोबारा इमर्जेंसी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
लोकतंत्र को कुचलने वाली ताकतें मजबूत हुईं: आडवाणी

नई दिल्‍ली। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस को दिए इंटरव्‍यू में आडवाणी ने कहा कि इमर्जेंसी के बाद इतने वर्षों में ऐसा कुछ नहीं किया गया जो उन्‍हें भरोसा दिलाए कि नागरिक स्‍वतंत्रता का दोबारा हनन या दमन नहीं होगा। हालांकि आडवाणी ने माना है कि देश में काेई भी आसानी से इमर्जेंसी नहीं लगा सकता, लेकिन ऐसा दोबारा नहीं हो सकता, वह ऐसा नहीं कह कहेंगे। मौलिक आजादी पर फिर से अंकुश लग सकता है। अडवाणी की इन बातों को मोदी सरकार के तौर-तरीकों पर बड़े हमले के तौर पर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी को भाजपा का पीएम उम्‍मीदवार घोषित करने के बाद भी अडवाणी ने अपने ब्‍लॉग में हिटलर की तानाश्‍ााही का जिक्र किया था।  

यह पूछे जाने पर कि देश में आज ऐसी क्‍या कमी है जो इमर्जेंसी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं, आडवाणी ने कहा कि देश की राजनीति में ऐसा कोई संकेत नहीं दिखता है जो उन्‍हें भरोसा दिलाया। लोकतंत्र और इससे जुड़े विभिन्‍न पक्षों के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव नजर आता है। आडवाणी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि आज का राजनीतिक नेतृत्‍व परिपक्‍व नहीं है, लेकिन इसकी कमियों के कारण विश्‍वास नहीं होता। उन्‍हें भरोसा नहीं है कि दोबारा इमर्जेंसी नहीं लग सकती है। आडवाणी की इन बातों को सीधे तौर पर केंद्र की मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना जा रहा है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री उम्‍मीदवार घोषित किए जाने के बाद भी आडवाणी ने अपने ब्‍लॉग में हिटलर की तानाशाही का जिक्र किया था। लेकिन अब उन्‍होंने मोदी राज में सीधे तौर पर इमर्जेंसी की आशंका जता दी है। उल्‍लेखनीय है कि पिछले दिनों ग्रीनपीस जैसे गैर-सरकारी संगठनों पर अंकुश लगाने की मोदी सरकार की कोशिशों और चार हजार से ज्‍यादा एनजीओ के विदेशी चंदे पर रोक के बाद सिविल सोसायटी के खिलाफ केंद्र के रुख की खूब आलोचना हो रही है।

इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमर्जेंसी के दिनों को याद करते हुए लालकृष्‍ण आडवाणी ने कहा कि तमाम संवैधानिक उपायों के बावजूद तब ऐसा हुआ था। वर्ष 2015 में भी भारत में पर्याप्‍त सुरक्षा कवच नहीं हैं। उन्‍होंने माना कि निरंकुशता से मुकाबला करने वाली ताकतों में मीडिया आज ज्‍यादा स्‍वतंत्र है। लेकिन लोकतंत्र और नागरिक स्‍वतंत्रता के प्रति मीडिया की प्रतिबद्धता को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता। इसका परीक्षा होनी बाकी है। आडवाणी के मुताबिक, सिविल सोसायटी ने हाल में अन्‍ना आंदोलन के दौरान भ्रष्‍टाचार के खिलाफ उम्‍मीदें जगाई थी लेकिन निराश ही किया। लोकतंत्र के विभिन्‍न स्‍तंभों में से आडवाणी ने न्‍यायपालिका को अधिक जिम्‍मेदार माना है।

हालांकि, अडवाणी ने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार का नाम नहीं लिया है लेकिन मौजूदा राजनैतिक नेतृत्‍व की खामियों की तरफ इशारा कर उन्‍होंने मोदी विरोधियों को बड़ा मौका दे दिया है। 

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