पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि आज कोरोना की दूसरी लहर थोड़ी धीमी जरूर पड़ी है। लेकिन सरकार को अभी से संभावित तीसरी लहर के लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने पर जोर देना होगा। इतना ही नहीं, कोरोना के बाद की स्थितियों को संभालने के लिए भी अभी से योजना बनानी होगी। क्योंकि महामारी के साथ महंगाई, मंदी, गरीबी और बेरोजगारी भी लगातार बढ़ रही है। हरियाणा में बेरोजगारी दर 35.1% पर पहुंच गई है। यानी प्रदेश का हर तीसरा व्यक्ति बेरोजगार है। इसलिए कोरोना के दौरान जिन लोगों के काम-धंधे चौपट हो चुके हैं, सरकार को उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए।
साथ ही उन्होंने कहा सरकार को कोरोना की वजह से अपनी जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपये देने चाहिए। उन परिवारों के लिए पेंशन का ऐलान करना चाहिए, जिनके परिवार में कोई कमाने वाला नहीं बचा है। इसके लिए सरकार को पहले कोरोना से मरने वालों का सही आंकड़ा जुटाना होगा। क्योंकि, अब ये बात स्पष्ट हो चुकी है कि सरकार अपनी तरफ से जो आंकड़ा दे रही है, मरने वालों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। साथ ही सरकार को सभी फ्रंट लाइन वॉरियर्स के लिए विशेष बीमा का ऐलान करना चाहिए, जिसमें डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारियों, आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी वर्कर्स, पुलिसकर्मियों और पत्रकारों समेत हर वो कर्मचारी होना चाहिए जो घर से बाहर निकलकर लोगों की जान बचाने के काम में लगा है।
हुड्डा आज डिजिटल माध्यम से पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर पत्रकारों ने मुख्यमंत्री द्वारा टीकाकरण को लेकर दिए गए बयान पर उनसे सवाल किया। इसके जवाब में हुड्डा ने कहा कि वो टीकाकरण की रफ्तार धीमी करने वाले मुख्यमंत्री के बयान से इत्तेफाक नहीं रखते। टीकाकरण की रफ्तार घटाने की बजाए उसे बढ़ाने की जरूरत है। आज जो आंकड़े आए हैं उससे पता चला है कि सरकार टीके की सिर्फ 20 हजार डोज ही रोज लगा रही है। अगर इसी रफ्तार से टीकाकरण हुआ तो सभी लोगों को वैक्सीन लगाने में कई साल लग जाएंगे। मुख्यमंत्री द्वारा कल की गई एक टिप्पणी पर पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में हुड्डा ने कहा कि उन्होंने कभी महामारी और आपदा जैसे मुद्दों पर राजनीति नहीं की। उन्होंने सिर्फ नेता प्रतिपक्ष होने के नाते सरकार तक लोगों की समस्याएं पहुंचाने की कोशिश की। उन्होंने जो सवाल पूछे वो उनके निजी सवाल नहीं थे, बल्कि वो बेड, दवाई और ऑक्सीजन के बिना कोराना से जूझ रही जनता के सवाल थे। लेकिन, मुख्यमंत्री ने उनमें से किसी सवाल का जवाब नहीं दिया क्योंकि, उनके पास जवाब है ही नहीं। इसलिए मुख्यमंत्री कोरोना जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सरकार की विफलता छिपाने के लिए राजनीतिक टीका टिप्पणियों का सहारा ले रहे हैं।
हुड्डा ने कहा कि वो स्वतंत्रता सेनानी परिवार से आते हैं। इसलिए उन्होंने मूल्यों के साथ कभी समझौता नहीं किया कभी अवसरवादी राजनीति नहीं की। देशहित के मुद्दों पर उन्होंने हमेशा राजनीति से ऊपर उठकर अपने विचार रखे हैं। इसका स्पष्ट प्रमाण है कि उन्होंने सबसे पहले कश्मीर से धारा 370 हटाने का भी समर्थन किया था। उन्होंने कोरोना की शुरुआत में ही कहा था कि ये महामारी पूरी मानव जाति पर संकट है। इसलिए सभी को मिलकर इसके खिलाफ लड़ना होगा। संकट की इस घड़ी में जनता की भलाई के फैसलों में हम सरकार का सहयोग करने के लिए तैयार हैं। हमने हमेशा लोगों को जागरुक करने और सरकार को जगाने का काम किया। अपने स्तर पर लोगों की मदद करने की हमेशा कोशिश की। लेकिन मुख्यमंत्री ने सर्वदलीय बैठक तक बुलाने से इंकार कर दिया और निजी टीका-टिप्पणी का सहारा लेना शुरू कर दिया।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि महामारी को रोकने में सरकार विफल रही है। ये बात उन्होंने नहीं बल्कि खुद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने मानी थी। उन्होंने बयान जारी करके कहा था कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अब व्यवस्थाएं बनाने के लिए सेना का सहारा लेना होगा। साथ ही भिवानी-महेंद्रगढ़ से बीजेपी सांसद ने भी स्वास्थ्य व्यवस्था के चरमराने की बात कही थी। बार-बार अखबारों ने तथ्यों के साथ बताया कि सरकार कोरोना से मौत के आंकड़ों पर पर्दा डाल रही है। ऐसे में जरूरी था कि विपक्ष सरकार को सच्चाई से अवगत करवाए। सरकार को भी सच्चाई को कबूल करने से गुरेज नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब वो सच्चाई को मानेगी, तभी उससे निपटने के लिए बेहतर तैयारी कर पाएगी।
हुड्डा ने कहा कि अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाए सरकार अपनी विफलताओं का ठीकरा विपक्ष और किसानों के सिर फोड़ना चाहती है। जबकि उसे एक कदम आगे बढ़कर किसानों से बात करनी चाहिए और सम्मानजनक समाधान निकालना चाहिए।