बिहार की सियासत में चौथे नंबर की पार्टी बन चुकी कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव से पहले हॉट केक बनी हुई है। सत्ताधारी जदयू, भाजपा और मुख्य विपक्षी दल राजद की बजाए ज्यादार दलों के बागी या असंतुष्ट कांग्रेस का हाथ थामने को तैयार बैठे हैं। इनमें सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण कुमार, महबूब अली कैसर, पप्पू यादव, पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह और बाहुबली अनंत सिंह जैसे नाम हैं। दरभंगा से सांसद कीर्ति आजाद, कटिहार के सांसद तारिक अनवर और पूर्व सांसद लवली आनंद तो कांग्रेस में शामिल हो भी चुके हैं।
यानी करीब डेढ़ दर्जन नाम ऐसे हैं जिन्हें चुनावी नजरिए से दमदार कहा जा सकता है। बीते दिन दशक में यह पहला मौका है जब लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस में उम्मीदवारों का टोटा नजर नहीं आ रहा। लेकिन, महागठबंधन में सीट बंटवारे पर फंसे पेंच के कारण अब इन नामों को कांग्रेस से जोड़ने में दिक्कत हो रही है। दरअसल, ये लोग कांग्रेस में शामिल होने से पहले टिकट की गारंटी चाहते हैं।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने बताया, “भाजपा और अन्य दलों के कई नेता हमारे संपर्क में हैं। इनके साथ आने से कांग्रेस मजबूत होगी। इनमें से कुछ चुनाव भी लड़ सकते हैं। हालांकि कौन-कौन चुनाव लड़ेंगे यह फिलहाल तय नहीं है।” ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में उन संभावनाओं को भुना पाएगी जो उसके लिए नजर आ रही है?
2014 का गणित
कांग्रेस ने 2014 का लोकसभा चुनाव राजद के साथ मिलकर लड़ा था। चालीस सीटों में से उसके हिस्से में तेरह सीटें आई थी और दो सीट से पार्टी उम्मीदवार को जीत मिली। लेकिन, इस बार राजद-कांग्रेस के साथ पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हम, शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल, मुकेश सहनी की वीआइपी भी है। सहनी तीन सीट, कुशवाहा चार-पांच सीटें चाहते हैं। मांझी कई बार कह चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस और राजद को छोड़ गठबंधन के अन्य भागीदारों के बराबर ही सीट चाहिए। हालांकि, उन्हें एक सीट मिलने की बात कही जा रही है। वहीं, शरद यादव के राजद के चुनाव चिह्न पर मधेपुरा से लड़ने की चर्चा है। राजद खुद कम से कम बीस सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। साथ ही वह एक-एक सीट भाकपा-माले और बसपा को देकर उन्हें भी महागठबंधन में जोड़ने के पक्ष में है।
इस स्थिति में इस बार कांग्रेस को दस से ज्यादा सीटें मिलने के आसार नहीं दिख रहे। एनसीपी छोड़ कर कांग्रेस में आए तारिक अनवर के लिए कटिहार में राह आसान दिखती है। लेकिन, दरभंगा में कीर्ति आजाद पर पेंच फंसा हुआ है। वीआइपी नेता मुकेश सहनी भी इसी सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं और बताया जाता है कि इसी शर्त पर वे महागठबंधन में शामिल हुए थे। सूत्रों के अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा भी कांग्रेस आलाकमान के संपर्क में हैं। यदि वे कांग्रेस में शामिल होते हैं तो पटना साहिब की सीट कांग्रेस को मिल सकती है। वैसे भी, इस सीट को राजद ने सिन्हा की मर्जी पर छोड़ रखा है।
घर वापसी की कोशिश में कैसर
जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार रालोसपा का दामन छोड़ चुके हैं। कांग्रेसी सूत्र उनके संपर्क में होने की बात तो कहते हैं, किंतु उनकी सीट भी कांग्रेस के हिस्से में आनी तय नहीं है। मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव इस बार कांग्रेस से लड़ने को इच्छुक हैं। उनकी पत्नी रंजीता रंजन सुपौल से कांग्रेस की सांसद भी हैं। लेकिन, शरद यादव के कारण यह सीट कांग्रेस को मिलने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में पप्पू यादव का नाम पूर्णिया से भी उछाला जा रहा है, जहां से वे पहले सांसद रह चुके हैं। लेकिन, इसी सीट से भाजपा के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह भी कांग्रेस का टिकट चाहते हैं। भाजपा को अलविदा कहने वाले पप्पू सिंह अभी तक किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं। इसी तरह खगड़िया के सांसद महबूब अली कैसर भी कांग्रेस में लौटना चाहते हैं। 2014 में कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने पर वे लोजपा में शामिल हो गए थे।
अनंत सिंह भी लगा रहे जोर
कभी नीतीश के करीबी रहे बाहुबली अनंत सिंह औपचारिक तौर पर अभी तक कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं। लेकिन, मुंगेर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की बाते वे सार्वजनिक तौर पर कई बार कह चुके हैं। तीन फरवरी को गांधी मैदान में हुई कांग्रेस की रैली को सफल बनाने के लिए भी उन्होंने खासा जोर लगाया था। करीब तीन दशक में यह पहला मौका था जब कांग्रेस ने पटना के गांधी मैदान में रैली की थी।
वैसे, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा का दावा है कि सीटों को लेकर महागठबंधन में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। सभी सीटों पर महागठबंधन की जीत होगी। वे कहते हैं, “जहां पार्टी उम्मीदवार नहीं होंगे वहां कांग्रेस कार्यकर्ता साथी दलों के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करेंगे।” लेकिन, जानकारों का मानना है कि महागठबंधन के साझीदारों के बीच कुछ सीटों पर 2009 की तरह आपसी मुकाबला हो सकता है। ऐसा हुआ तो 2009 की ही तरह एनडीए को फायदा मिलना भी तय है।