जम्मू-कश्मीर में विपक्षी भाजपा ने गुरुवार को कहा कि यह "दुर्भाग्यपूर्ण" है कि सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विधानसभा की "अखंडता से समझौता" किया है और देश की संसद के एक फैसले पर सवाल उठाने वाला प्रस्ताव लाकर लोकतंत्र का "मजाक" बनाया है।
रामनगर से भाजपा विधायक आर एस पठानिया ने विशेष दर्जे के प्रस्ताव पर हंगामे के बाद विधानसभा की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित होने के बाद यहां संवाददाताओं से कहा, "यह एक धोखा है, एक नाटक है जो जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किया गया है।"
उन्होंने कहा, "अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष दर्जे जैसी कोई चीज नहीं है। यह इतना ही सरल है। पुनर्गठन अधिनियम के तहत यह विधानसभा एक क़ानून है, जो संसद और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल नहीं उठा सकती। इसका कोई सवाल ही नहीं है।"
पठानिया ने कहा कि बुधवार को विधानसभा द्वारा ध्वनिमत से पारित किया गया प्रस्ताव "कागज़ का एक टुकड़ा, रद्दी का एक टुकड़ा" है और "यदि कोई चपरासी या क्लर्क भी इसे प्राप्त कर ले तो वह इसे कूड़ेदान में फेंक देगा"।
उन्होंने कहा, "उन्होंने (एनसी) सदन की अखंडता से समझौता किया है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र का मजाक बना दिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है और जम्मू-कश्मीर के लोगों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। उनकी पोल खुल गई है। यह (प्रस्ताव) जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ बहुत बड़ा मजाक है।"
उपमुख्यमंत्री सुरेन्द्र चौधरी और मंत्री सतीश शर्मा, जो दोनों जम्मू से हैं, का जिक्र करते हुए पठानिया ने कहा, "जम्मू से कुछ जयचंद हैं, लेकिन अब उनका पर्दाफाश हो गया है।"
विधायक ने कहा, "लोगों को समझ आ गया है कि उन्होंने क्या किया है। उन्होंने पाकिस्तान समर्थक और अलगाववादी विचारधारा के आगे घुटने टेक दिए हैं। यह विचारधारा धोखाधड़ी है और इसका कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है। इस विचारधारा के कारण सुरक्षा बलों के जवानों और नागरिकों की हत्याएं हुई हैं।"
जयचंद 12वीं शताब्दी में कन्नौज का राजा था, जिसे कुछ ऐतिहासिक विवरणों में भारतीय हित के प्रति विश्वासघाती बताया गया है।
भाजपा के एक अन्य विधायक शामलाल शर्मा ने कहा कि पार्टी संसद द्वारा सुलझाए गए मुद्दे पर विधानसभा में प्रस्ताव को "अवैध रूप से पारित" नहीं होने देगी। "इसका कोई सवाल ही नहीं उठता"।
विधानसभा में भाजपा विधायकों और मार्शलों के बीच हुई मारपीट पर उन्होंने कहा कि इसका दोष विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर पर है।
उन्होंने कहा, "सदस्यों को विधानसभा के अंदर इस तरह के पोस्टर लाने का अधिकार नहीं है। हम जानना चाहते हैं कि स्पीकर ने इसकी अनुमति कैसे दी? सुरक्षा जांच कहां थी? जम्मू-कश्मीर में आज स्थिति ऐसी है कि अगर किसी सदस्य पर कोई संदेह है, तो उसकी तलाशी ली जानी चाहिए, वह कुछ भी अंदर ला सकता है।"
उन्होंने कहा, "यह वहीं से शुरू हुआ, इसलिए दोष अध्यक्ष का है। बैनर उनसे छीन लिया जाना चाहिए था। उन्हें भाजपा के सदस्यों की तरह बाहर निकाल दिया जाना चाहिए था।"
भाजपा विधायक लंगेट से अवामी इत्तेहाद पार्टी के विधायक शेख खुर्शीद का जिक्र कर रहे थे, जो "अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करो" लिखे बैनर के साथ सदन के वेल में कूद गए थे।
उन्होंने कहा, "एनसी विशेष दर्जे की बहाली चाहती है, जिसके तहत वह शंकराचार्य (पहाड़ी) का नाम तख्त-ए-सुलेमानी रख सकती है। भाजपा ऐसा कैसे होने दे सकती है? भाजपा इस तरह के कदम या मांग को स्वीकार नहीं करेगी? हम इसका कड़ा विरोध करेंगे। हम तब तक नहीं रुकेंगे, जब तक इस तरह के नाटक और राजनीतिक धोखाधड़ी बंद नहीं हो जाती।"
चेनानी से भाजपा विधायक बलवंत सिंह मनकोटिया ने पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अन्य द्वारा पेश किए गए नए प्रस्ताव का जिक्र करते हुए कहा कि यह लोगों को "भावनात्मक ब्लैकमेल" है।
उन्होंने कहा, "हम जम्मू-कश्मीर के लोगों को मूर्ख नहीं बनने देंगे। हम नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और कश्मीर केंद्रित पार्टियों को लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की इजाजत नहीं देंगे।"
विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने भी अध्यक्ष पर खुर्शीद को बैनर लेकर सदन के बीचोंबीच आने की अनुमति देने का आरोप लगाया।
सुनील शर्मा ने कहा, "एक विधायक को बैनर लेकर आने की अनुमति दी गई। क्या इस सदन में ऐसी कोई मिसाल है? स्पीकर और विधानसभा स्टाफ ने उन्हें इसकी अनुमति दी। उन्होंने (स्पीकर ने) सत्ता पक्ष के माइक्रोफोन चालू कर दिए, ताकि यह दिखाया जा सके कि वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के स्पीकर हैं, सदन के नहीं। सदन को मछली बाजार में बदल दिया गया।"
जब उनसे पूछा गया कि क्या भाजपा सदस्य सदन की मेजों पर खड़े हो गए थे, तो विपक्ष के नेता ने कहा कि जब विपक्ष को बोलने ही नहीं दिया जाएगा तो वे क्या करेंगे।
उन्होंने कहा, "विपक्ष के नेता खड़े थे और उनका माइक्रोफोन बंद था। हमारे विधायकों को बाहर निकाल दिया गया, तो हमारे पास क्या विकल्प है?"
सुनील शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को वह अनुच्छेद दिखाने की चुनौती दी जानी चाहिए जिसके तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रही है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद में कहा गया है कि यह तब तक के लिए अस्थायी प्रावधान है जब तक कि भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू नहीं हो जाता।
उन्होंने कहा, "विशेष दर्जा नाम की कोई चीज नहीं है। विशेष दर्जा (एनसी संस्थापक) शेख अब्दुल्ला का संविधान है जो (एनसी अध्यक्ष) फारूक अब्दुल्ला के गुपकर सदन में है जिसमें यह लिखा है कि कश्मीरी पंडितों को यहां से बाहर निकाल दिया जाए।"
विपक्ष के नेता ने कहा, "5 अगस्त 2019 को जो हुआ, वह अब इतिहास है। अब विशेष दर्जा दोहराया (बहाल) नहीं जा सकता।"