कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत पार्टी में वापसी के लिए दरवाजा खटखटा ही रहे थे कि भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी से बाहर कर दिया। आरोप अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने का लगा है। सुखदेव भगत की त्वरित प्रतिक्रिया रही कौन परवाह करता है।
कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ ही लड़े थे विधानसभा चुनाव
2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान लोहरदगा से कांग्रेस के विधायक रहे सुखदेव भगत का टिकट काट पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव को उम्मीदवार बनाया था। इस सीट से टिकट कटने से नाराज भगत कांग्रेस को बायबाय बोल भाजपा में शामिल हो वहीं से चुनाव लड़े थे, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ। हालांकि कांग्रेस के रामेश्वर उरांव से पराजित हो गए। विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद से ही सुखदेव भगत भाजपा में सक्रिय नहीं दिख रहे थे। बल्कि तीन नवंबर को होने वाले उप चुनाव में बेरमो से कांग्रेस प्रत्याशी अनूप कुमार सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार में लगे रहे, अनूप के नामांकन में भी शामिल हुए।
राज्य प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ राजनीति में आये सुखदेव भगत कांग्रेस में वापस होने के लिए आवेदन भी कर चुके हैं। सुखदेव के करीबी बताते हैं कि बीते माह वे झारखंड के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह और सोनिया गांधी के करीबी अहमद पटेल से भी मिल आये हैं। बहरहाल प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव तो उनके खिलाफ हैं। पार्टी छोड़ उरांव के खिलाफ ही चुनाव जो लड़े थे। उनकी वापसी की पहल पर रामेश्वर उरांव बोल चुके हैं कि सुखदेव भगत का जनाधार नहीं है। पार्टी ने टिकट दे दिया तो जीत गए थे, आदिवासी होने के नाते प्रदेश अध्यक्ष बनने का मौका मिल गया था।
कांग्रेस छोड़ धुर विरोधी भाजपा में शामिल होने और प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के खिलाफ चुनाव लड़ने को लेकर स्थिति थोड़ी असहज है। सवाल पार्टी के प्रति निष्ठा का है। कांग्रेस नेतृत्व पुराने लोगों को वापस जोड़ रहा है मगर सुखदेव भगत के मामले में केंद्रीय नेतृत्व का क्या रवैया होता है समय बतायेगा। वापसी पर प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव सहमत होंगे ऐसा लगता नहीं है मगर नेतृत्व के फैसले के आगे उन्हें शरणागत होना पड़ेगा। अगर प्रदेश अध्यक्ष की दिल्ली दरबार में चल गई तब सुखदेव भगत को कोई तीसरा घर तलाशना होगा।