कांग्रेस पार्टी को और ऊर्जा प्रदान करने के लिए पार्टी छोड़कर गये पुराने कद्दावर साथियों को वापस लाने पर पार्टी गंभीरता से विचार कर रही है। झारखंड इसके लिए मुफीद जगह है। वह इसलिए कि कांग्रेस के चार पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सहित कई बड़े नेता इसका दामन छोड़कर किनारा कर चुके हैं। जमशेदपुर के एसपी रहे आइपीएस अधिकारी व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार की वापसी को इसी कड़ी में माना जा रहा है। हालांकि उनकी वापसी पर प्रदेश नेतृत्व को न तो भरोसे में लिया गया न पूर्व जानकारी दी गई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के साथ रांची में बैठक कर रहे थे उसी समय अजय कुमार की पार्टी में वापसी की सूचना पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणु गोपाल से रामेश्वर उरांव को फोन पर मिली। मूलत: कर्नाटक के रहने वाले अजय कुमार की कांग्रेस में दक्षिण लॉबी पर अच्छी पकड़ है। और प्रदेश में वापसी के लिए प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह की अनुशंसा भी आवश्यक है। अंतत: आलाकमान की हरी झंडी के बाद अजय कुमार वापस हो गये।
पीछे से लाइन में सुखदेव भगत और प्रदीप बालमुचू भी हैं। इनकी पुनर्वापसी का रास्ता भी करीब करीब साफ है। ये तीनों एक समय में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे। यानी पार्टी की तकदीर गढ़ने वाले। जब पार्टी को उनकी जरूरत थी तीनों ने बाय बाय कर दिया। बीते विधानसभा चुनाव के समय तक पार्टी में कोई ऐसा नाम नहीं था जिसे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कह सकें। यहां तक की संयुक्त बिहार में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सरफराज अहमद भी झामुमो में चले गये। कांग्रेस के लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती थी। मगर चारों बड़े चेहरे की अनुपस्थिति में पार्टी ने बेहतर परफार्मेंस दिखाया और राज्य के विभाजन के बाद विधानसभा में सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल की। 16 सीटें मिलीं जबकि 2014 में छह, 2009 में 14 और 2005 में मात्र नौ सीटों पर ही कांग्रेस को सफलता मिली थी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सह वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव नेताओं की वापसी पर कहते हैं कि पार्टी कमजोर हो रही है। संकट के समय जो निकले थे उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता पार्टी के प्रति नहीं थी। आज पार्टी सत्ता में है तो वापसी हो रही है। सुखदेव भगत अगर वापस आना चाहते हैं तो पार्टी को ऐसे लोगों के बारे में विचार करना होगा। जो एन मौके पर धुर विरोधी भाजपा में जा मिले थे। उनके अनुसार सुखदेव भगत का जनाधार भी नहीं है। उन्हें टिकट मिला था, जीते और पार्टी ने आदिवासी के नाम पर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी थी। अजय कुमार की वापसी पर कहते हैं कि उनकी भी कोई राजनीतिक जमीन, जनाधार नहीं है। वे कर्नाटक के रहने वाले हैं और राजनीति कोई अखिल भारतीय सेवा नहीं है। जिस दिन अजय कुमार की वापसी हुई रामेश्वर उरांव की त्वरित प्रतिक्रिया थी कि जब चीन से युद्ध हो रहा था हिंदुस्तान छोड़कर चले गये थे। जब हिंदुस्तान जीत गयाहै तो अखिर चीन छोड़कर क्यों वापस आना चाहते हैं। इसे उन्होंने व्यक्तिगत कमेंट की संज्ञा दी थी। जहां तक प्रदीप बालमुचू का सवाल है संयुक्त बिहार में भी वे मंत्री और राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। तीन टर्म घाटशिला से विधायक रहे। बालमुचू की सीट यूपीए गठबंधन में झामुमो के खाते में चले जाने से नाराज होकर वे आजसू में शामिल हो गये थे। इनके बारे में कांग्रेस अध्यक्ष की अवधारणा है कि जनाधार वाले और सुलझे हुए नेता हैं। बालमुचू रामेश्वर उरांव के करीब रहे राज्यसभा सदस्य धीरज साहू के भी बेहद करीबी हैं। रामेश्वर उरांव कहते हैं कि पार्टी हित सर्वोपरी है, आलाकमान का जो आदेश होगा सिरोधार्य है।
पार्टी के बढ़ते विरोध के बीच अजय कुमार ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष के पद से पिछले साल अगस्त महीने में इस्तीफा दिया और सितंबर में आप के हो गये। प्रदीप बालमुचू और सुखदेव भगत तो टिकट नहीं मिल पाने की आशंका से ही घोषणा के पूर्व ठीक विधानसभा चुनाव के मौके पर पार्टी से निकल गये। सुखदेव धुर विरोधी भाजपा का दामन थाम लिया और बालमुचू आजसू का। सरफराज अहमद भी कांग्रेस छोड़ जेएमएम का दामन थामा और गांडेय से विधायक चुन लिये गये। जानकार बताते हैं कि पूर्व मंत्री मनोज यादव, सारठ के पूर्व भाजपा विधायक चुन्ना सिंह जैसे लोग भी समय के साथ वापस हो सकते हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हाल में शामिल होने वाले नेताओं को ज्यादा महत्व का पद तत्काल नहीं पकड़ाया जायेगा। उनसे पहले जेवीएम से अपने बूते जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को पहले महत्व दिया जायेग। बालमुचू, सुखदेव भगत दिल्ली दरवार का चक्कर लगा आये हैं। आरपीएन सिंह से भी मिल चुके हैं। आरपीएन सिंह कोरोना संक्रमित नहीं होते तो शायद कुछ और को पार्टी में इंट्री मिल गई होती। आरपीएन सिंह अब कोरोना को मात दे चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्क्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि पुराने लोगों की वापसी के पार्टी को मजबूती ही मिलेगी। अजय कुमार की वापसी पर प्रदेश के बड़े नेताओं ने दिलचस्पी नहीं दिखाई मगर सोशल मीडिया पर उनका टीआरपी हाई दिखा।
अध्यक्ष की कुर्सी पर नजर
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर भीतर में खींचतान चल रही है। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लेकर माना जा रहा है कि रामेश्वर उरांव तदर्थ रूप से काम कर रहे हैं। सरकार में मंत्री रहने के कारण मुख्यमंत्री के समक्ष वे मजबूती के साथ पार्टी की बात नहीं रखपाते। कृषि ऋण की माफी का ही मुद्दा था तो प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के आने पर फाइनल हुआ। बीस सूत्री समिति, सीनेट सिंडिकेट के मामले पर निर्णय नहीं हो सका है। ऐसे में नेतृत्व को किसी मजबूत नेता की तलाश है। आदिवासी चेहरे में खिजरी विधायक राजेश कच्छप, सिमडेगा से विधायक विक्सल कोंगाडी, सिंहभूम में कांग्रेस अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा को हराकर संसद पहुंचने वाली पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जैसे नाम हैं। तर्क यह भी दिया जाता है कि पार्टी भाजपा की तर्ज पर किसी गैर आदिवासी को भी जिम्मा पकड़ा सकती है। दिनेशानंद गोस्वामी, अभय कांत प्रसाद, रघुवर दास, रवींद्र राय, दीपक प्रकाश की तरह भाजपा के गैर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष रहे। कांग्रेस में गैर आदिवासी नेताओं में दीपिका पांडेय, धीरज साहू, सुबोध कांत सहाय, कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी संभाल रहे चेहरों को मौका मिल सकता है। अंतिम निर्णय आलाकमान का होगा। कोई चौंकाने वाले फैसला भी हो सकता है। वैसे एकबात तय है कि पुराने नेताओं का रास्ता खुला तो रामेश्वर उरांव थोड़ा कमजोर पड़ सकते हैं।