कांग्रेस ने चार केंद्रीय मंत्रियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफा मांगा है। ऐसा नहीं होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इन्हें बर्खास्त करने की मांग की है। कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री ने दावा किया था, "न खाएंगे और न खाने देंगे", फिर इस मसले पर चुप क्यों हैं। यदि इन मंत्रियों को बर्खास्त कर केंद्र सरकार कार्रवाई नहीं करती तो कांग्रेस कानूनी कदम उठाएगी।
कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने शनिवार को प्रेस कांफ्रेस में कहा कि चार केंद्रीय मंत्रियों के अलावा प्रसार भारती के चेयरमैन ए. सूर्यप्रकाश और भाजपा महासचिव राममाधव गैर-सरकारी संगठन इंडिया फाउंडेशन में डायरेक्टर हैं। यह गैर-कानूनी है। इंडिया फाउंडेशन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल की एनजीओ है। इसमें केंद्रीय मंत्रियों के शामिल होने को सिब्बल ने हितों के टकराव के साथ-साथ लाभ के पद का मामला बताया है। उन्होंने सवाल उठाया कि केंद्रीय मंत्री किसी एनजीओ में डायरेक्टर कैसे हो सकते हैं? चारों मंत्री नियम-कायदों को दरकिनार कर डोभाल के बेटे को फायदा पहुंचा रहे हैं। लिहाजा अपराध और भ्रष्टाचार का मामला बनता है।
उधर, एबीपी न्यूज़ के मुताबिक, इंडिया फाउंडेशन ने कांग्रेस की ओर से लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताया है। संस्था का कहना है कि उन्होंने सभी नियमों का पालन किया और कभी विदेशी फंडिंग नहीं ली। सांसद और मंत्री बनने से पहले ही चारों मंत्री एनजीओ में निदेशक थे।
सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि इंडिया फाउंडेशन को चलाने वाले शौर्य डोभाल की निजी इक्विटी कंपनी जीअस कैपिटल 2016 में जैमिनी एंटरप्राइजेज में शामिल हो गई। इस कंपनी का टर्नओवर एक बिलियन डॉलर है। इसके चेयरमैन सऊदी के प्रिंस हैं। उन्होंने देसी-विदेशी कंपनियों के साथ शौर्य डोभाल के हितों के घालमेल और केंद्रीय मंत्रियों की मिलीभगत को "कॉकटेल ऑफ इंट्रेस्ट" करार दिया है।
शनिवार को वेबसाइट 'द वायर' ने एनएसए अजित डोभाल के बेटे की संस्था और उनकी कंपनी के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु, नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा और विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर इंडिया फाउंडेशन में निदेशक हैं। इस संस्था के कार्यक्रमों को ऐसी कंपनियां स्पॉन्सर करती है, जिनका वास्ता इन मंत्रालयों से पड़ता है। इस रिपोर्ट में इंडिया फाउंडेशन की अपारदर्शी वित्तीय संरचना और हितों के टकराव पर सवाल उठाए गए हैं। हालांकि, सिब्बल ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में 'द वायर' की स्टोरी का जिक्र नहीं किया। उनका कहना है कि वे अपनी तरफ से ये सवाल उठा रहे हैं।
फॉरेन कंट्रीब्यूनशन (रेगुलेशन) एक्ट, 2010 की धारा (3) का हवाला देते हुए सिब्बल ने कहा कि चुने हुए जन प्रतिनिधि, राजनैतिक दल के पदाधिकारी, मीडिया समूह या पत्रकार विदेशी फंडिंग नहीं ले सकते। इंडिया फाउंडेशन में इसका उल्लंघन होता दिख रहा है। सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए।
इस मामले में जो भी कानून प्रावधान हैं, कांग्रेस उनका इस्तेमाल करेगी। सिब्बल का कहना है कि एक तरफ केंद्र सरकार के रक्षा, उद्योग एवं वाणिज्य, नागरिक उड्डयन और विदेश मंत्रालयों के मंत्री इंडिया फाउंडेशन से जुड़े हैंं, जबकि बोइंग जैसी जिन कंपनियों का इन मंत्रालयों से काम पड़ता है, वे इंडिया फाउंडेशन की कमाई का जरिया बनती हैं। इसके कार्यक्रमों को प्रायोजित करती है। हितों के टकराव का ऐसा गंभीर मामला कभी नहीं देखा गया।
सिब्बल ने उदाहरण दिया कि अगर यूपी सरकार को कोई मंत्री तीस्ता शीतलवाड़ या इंदिरा जयसिंह के गैर-सरकारी संगठन का सदस्य होता तो उसका क्या हश्र होता सभी जानते हैं। संसद नहीं चलने दी जाती। साथ-साथ तुरंत सीबीआइ एफआइआर हो जाती। सिब्बल ने कहा कि सोनिया गांधी यूपीए सरकार में मंत्री नहीं थीं। फिर भी उनके नेशनल एडवायजरी काउंसिल की चेयरपर्सन होने को लेकर भाजपा के लोगों ने संसद में हंगामा किया। उस समय सोनिया गांधी ने इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ा था। भाजपा के मंत्रियों को भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देकर फिर से चुनाव मैदान में जाना चाहिए।