राज्यसभा में मंगलवार को विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि सरकार जनगणना और जातिगत जनगणना कराने से बचना चाहती है। उन्होंने जनगणना और जातिगत जनगणना जल्दी कराने की मांग करते हुए कहा कि इस प्रक्रिया में विलंब होने से बहुत सारे लोग जनकल्याण योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित हो रहे हैं।
उच्च सदन में शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए खड़गे ने कहा, ‘‘भारत में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना 1881 में शुरू की गई थी और तमाम आपात हालात, युद्ध और अन्य संकट के बावजूद जनगणना जारी रही।’’ उन्होंने कहा कि 1931 में जातिगत जनगणना भी हुई थी और उस जनगणना से पहले महात्मा गांधी ने कहा था जिस प्रकार शरीर की जांच के लिए समय-समय पर मेडिकल पड़ताल जरूरी होती है उसी प्रकार जनगणना किसी राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण होती है।
खड़गे ने कहा कि जनगणना एक बहुत महत्वपूर्ण चीज है जिसे कई जानकारी मिलती है। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध और 1971-72 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी जनगणना हुई थी लेकिन दुख की बात है कि इतिहास में पहली बार सरकार ने जनगणना में रिकॉर्ड देरी की है।
उन्होंने कहा कि सरकार चाहे तो जनगणना के साथ जाति आधारित जनगणना भी संभव है। उन्होंने कहा कि जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनताति के बारे में आंकड़े एकत्र किए ही जाते हैं, अन्य जातियों के आंकड़े में एकत्र किए जा सकते हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जनगणना समय पर नहीं कराये जाने से बहुत सारे लोग कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित हो रहे हैं। खड़गे ने कहा कि दुनिया के 81 प्रतिशत देशों ने कोरोना महामारी के बावजूद जनगणना प्रक्रिया पूरी कर ली है लेकिन भारत में जनगणना कब होगी, इस बारे में कुछ भी साफ तौर पर नहीं कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस साल बजट में सिर्फ 575 करोड रुपए का आवंटन किया गया है जिससे लगता है कि यह सरकार जनगणना कराने से बचना चाहती है।
उन्होंने कहा कि जनगणना में देरी के दूरगामी परिणाम होते हैं और विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं जनगणना के परिणाम पर ही निर्भर होती हैं।