“राकांपा प्रमुख शरद पवार का फैसला संतुलन साधने वाला है या अजित पवार को ठिकाने लगाया गया”
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार क्या इन दिनों अपना उत्तराधिकारी घोषित करने की दिशा में हौले-हौले कदम बढ़ा रहे हैं? जानकारों का मानना है कि वे अपनी पार्टी का भविष्य तय करने में जुटे हैं। लिहाजा वे अपने फैसलों से सियासी तस्वीर में थोड़ी स्पष्टता लाने की कवायद कर रहे हैं। दरअसल, मई की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि वे पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने वाले हैं। जून के दूसरे हफ्ते में उन्होंने ऐलान कर दिया कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। पवार की इन घोषणाओं से पार्टी के उत्तराधिकार को लेकर भले ही धुंधलका छंटता दिख रहा हो लेकिन इससे उनके भतीजे अजित पवार के भविष्य को जोड़कर देखा जा रहा है, हालांकि कई विशेषज्ञ इसके दूसरे अर्थ भी निकाल रहे हैं।
पवार ने 10 जून को पार्टी की 24वीं वर्षगांठ पर कार्यकारी अध्यक्षों के नामों की घोषणा की। पवार ने सुले को पार्टी के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का अध्यक्ष और महाराष्ट्र का प्रभारी बनाया। माना जा रहा है कि इससे अजित पवार को पार्टी में असहजता महसूस हो सकती है क्योंकि न सिर्फ महाराष्ट्र के मामले में, बल्कि चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में भी सुले की ही चलेगी। सियासी हलकों में अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये सब शरद पवार ने भतीजे अजित पवार को सत्ता के खेल से बाहर करने के लिए किया है। इससे पहले जब भी कभी इस बात का जिक्र होता था कि शरद पवार का उत्तराधिकारी कौन होगा, तो अजित पवार को गद्दी मिलने की अटकलें लगने लगती थीं। अब शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इस बहस को ही खत्म कर दिया है। सनद रहे कि 2019 में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में तड़के शपथ लेने वाले विवाद और भाजपा के साथ संबंधों की वजह से अपनी पार्टी में उनका कद काफी प्रभावित हुआ था।
महाराष्ट्र विधानसभा में अजित पवार विपक्ष के नेता हैं। शरद पवार का कहना है कि अजित पहले से ही काफी जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। उन्होंने फैसले के बाद संवाददाताओं से कहा, “इसका सुझाव उन्होंने (अजीत पवार ने) ही दिया था। इसलिए, उनके खुश या नाखुश होने का सवाल ही कहां है।” पवार ने कहा कि उनके फैसले से अजित के नाखुश होने की खबरों में “एक प्रतिशत भी सच्चाई नहीं है।” उनका कहना था कि जयंत पाटील पहले से ही राकांपा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष हैं, अजित पवार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले के पास पार्टी में ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं थी और वे पार्टी को समय देने के लिए तैयार थे।
राकांपा सुप्रीमो के इस रुख पर भाजपा चुटकी ले रही है। घोषणा के बाद अजित पवार मीडिया से बातचीत किए बिना ही पार्टी कार्यालय से चले गए थे, हालांकि बाद में ट्वीट कर उन्होंने शरद पवार के फैसले का स्वागत किया। अजित ने पुणे में संवाददाताओं से कहा, “कुछ मीडिया चैनलों ने ऐसी खबरें चलाईं हैं कि अजित पवार को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि मेरे पास महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी है। पिछले कई वर्षों से सुप्रिया दिल्ली में हैं। मेरे पास राज्य की जिम्मेदारी है क्योंकि मैं यहां का विपक्ष का नेता हूं।”
यह भी सच है कि पवार के दांव से अजित के करीबियों को ज्यादा कुछ नहीं मिला है। ऐसे में पवार के दांव को कई लोग अजित के लिए मुसीबत भी करार दे रहे हैं। अब तक महाराष्ट्र से संबंधित निर्णय शरद पवार, अजित पवार और जयंत पाटील की सलाह पर करते थे लेकिन अब सुप्रिया को महाराष्ट्र की कमान मिल गई है। सुप्रिया टिकट बंटवारे से लेकर संगठन के कई बड़े फैसलों से सीधे जुड़ी रहेंगी। अगर सुप्रिया को महाराष्ट्र में ज्यादा मजबूती मिलती है तब अजित के कद पर इसका साफ असर पड़ेगा।
महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में गाहे-बगाहे खबर उड़ती रहती है कि अजित पवार भाजपा के साथ जाने वाले हैं। माना जाता है कि राकांपा के भीतर वैचारिक आध्ाार पर दो गुट हैं। इसलिए इसे पार्टी के दो खेमों के बीच सामंजस्य साधने के एक उपाय के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि दोनों गुटों को कार्यकारी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देकर संतुलन लाने की कोशिश की गई है। जानकारों का यह भी मानना है कि शरद पवार ने अभी अपने पत्ते पूरे नहीं खोले हैं।
अगर सुप्रिया को महाराष्ट्र में ज्यादा मजबूती मिलती है तब अजित पवार के कद पर इसका साफ असर पड़ेगा