इसमें से पहले और दूसरे चुनाव के समय बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन जीता था मगर 2009 और 2014 में बीजू जनता दल ने भाजपा से नाता तोड़कर अपने दम पर जीत हासिल की और भाजपा राज्य में हाशिये पर चली गई। हालांकि पार्टी ने प्रयास करना नहीं छोड़ा और 2014 में उसे अपने दम पर ओडिशा में एक सांसद जिताने में कामयाबी मिली। शेष 20 सीटें बीजू जनता दल ने जीती। इसी से राज्य की राजनीति में बीजद के दबदबे का पता चलता है। लेकिन लगता है कि इस राज्य में अब भाजपा मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए तैयार हो चुकी है। कम से कम स्थानीय निकाय चुनाव तो यही बताते हैं।
राज्य में नगरपालिका व पंचायत चुनाव और साथ-साथ आ रहे नतीजे यह बता रहे हैं कि बीजद का गढ़ दरकने लगा है और कांग्रेस को हाशिये पर धकेलते हुए भाजपा मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने लगी है। जाहिर है कि इस चुनाव के बाद केंद्र में भी बहुत कुछ बदलता दिखेगा। इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि संसद में गाहे-बगाहे सरकार की नीतियों की प्रशंसा करने वाला बीजद अब उग्र दिखे।
ओडिशा में नगरपालिका और पंचायत की 852 सीटों के लिए मतदान होना है। पहले चरण में सोमवार को 189 सीटों पर मतदान भी हुआ और अनाधिकारिक नतीजे भी आ चुके हैं। बीजद भले ही 104 सीटों के साथ सबसे आगे है, लेकिन भाजपा ने लगभग छह गुना छलांग लगाते हुए 71 सीटों पर कब्जा जमा लिया है। इसमें कालाहांडी, केंद्रपाड़ा, मयूरभंज जैसे जिले भी शामिल हैं जो अतिपिछड़े हैं। बताते हैं कि बीजद में इसे चेतावनी की घंटी के रूप में देखा जा रहा है। पिछली बार इस चुनाव में भाजपा सभी चरण मिलाकर सिर्फ 36 सीटें जीत पाई थी। उस आंकड़े से दो गुना पार्टी इस बार पहले चरण में ही जीत चुकी है और अगर इसी अनुपात में सीटें जीतती रही तो कुल 300 सीटों तक पहुंच सकती है। भाजपा के प्रदेश प्रभारी और महासचिव अरुण सिंह ने भी इन चुनावों में पार्टी के कम से कम तीन सौ सीटें जीतने का दावा किया है। बुधवार को दूसरे चरण का मतदान है।
मोदी मंत्रिमंडल में शामिल ओडिशा से आने वाले केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान राज्य में भाजपा के भावी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर देखे जा रहे हैं। गरीब परिवारों को मुफ्त गैस देने की उनके मंत्रलय की उज्ज्वला योजना ने भी भाजपा की जीत में कमाल दिखाया होगा। अंतिम नतीजों तक भाजपा अगर इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो असर भी जल्द ही दिख सकता है।