नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आखिर अपने राजनैतिक करियर की नई शुरुआत अब कांग्रेस से की है। इससे पहले उनका सियासी सफर खासा खट्टा-मीठा रहा है। एक जमाने में बसपा प्रमुख मायावती के वह खासे भरोसेमंद और दाहिना हाथ माने जाते थे और बड़े मुस्लिम चेहरे के तौर पर कभी पार्टी और सरकार में उनकी तूती बोलती थी।
मायावती ने बसपा से किया था निष्कासित
बसपा के उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के प्रभारी रह चुके नसीमुद्दीन प्रभावशाली नेता माने जाते थे और पार्टी के फैसलों में उनकी अहम भूमिका रहती थी लेकिन पिछले वर्ष 10 मई को मायावती ने पैसों के लेन-देन में गड़बड़ी करने का आरोप लगाते हुए उन्हें पार्टी से निकाल दिया था और तभी से वह अपनी नई भूमिका की तलाश में जुटे थे। मायावती का आरोप था कि पश्चिमी यूपी के प्रभारी रहते सिद्दीकी ने उम्मीदवारों से पैसे लिए थे लेकिन उन्हें पार्टी के कोष में जमा नहीं किया जिसका उन्होंने खासा पलटवार भी किया था और वीडियो जारी सभी को चौंका दिया था।
सियासी सफर की शुरुआत
नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 1988 में अपना सियासी सफर शुरू किया और बसपा का दामन थामा। करीब तीन दशक तक बसपा में सक्रिय रहे तथा बसपा की रीढ़ के हड्डी के तौर पर काम किया। 1991 में बसपा के टिकट पर बांदा से पहली बार विधायक बने और फिर 1995 में जब मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो वह मंडी परिषद के अध्यक्ष बना दिए गए। 1997 में वह पहली बार मंत्री बनें। यह सिलसिला 2002 और 2007 में चला। 2012 में बसपा विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने। 2014 में लोकसभा चुनाव में नसीमुद्दीन ने अपने बेटे अफजल को बसपा टिकट दिया लेकिन वह हार गए।
मायावती पर लगाया पैसों की मांग का आरोप
लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने और विधानसभा चुनाव में केवल 19 सीटें जीत पाने का ठीकरा मायावती ने उनके सिर फोड़ दिया। उनका आरोप था कि वह मायावती की ब्लैकमेलिंग और लगातार पैसों की मांग से आजिज आ गए थे। बसपा छोड़ने के एक सप्ताह बाद ही नसीमुद्दीन ने अपने कुछ समर्थकों के साथ एक नई पार्टी राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा बना ली थी लेकिन तभी से उनके अगले राजनीतिक कदम के बारे में कयास लग रहे थे। यूं तो उनकी सपा में जाने की भी बात चल रही थी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से कई मुलाकातें भी हुई लेकिन दो वजहों से वे सपा में शामिल नहीं हो पाए। एक तो अखिलेश उनके सभी समर्थकों को पार्टी में समायोजित कर पाने में असमर्थ थे और दूसरे आजम खां का भी खासा विरोध था।
राहुल गांधी से हुई थी मुलाकात
सूत्रों के मुताबिक, राहुल की नसीमुद्दीन से पहली मुलाकात 28 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई। जनवरी मध्य में एक और मुलाकात में बात आगे बढ़ी। इस बीच राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने जमीनी स्तर की पूरी तैयारी कर ली। पिछले रविवार को राहुल के साथ सिद्दीकी की मुलाकात में आगे की राजनीति और रणनीति के साथ उनके समर्थकों के शामिल होने के कार्यक्रम को अंतिम रूप दे दिया गया। वह कई पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और विधायक के साथ कांग्रेस में शामिल हुए हैं।