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नई जिम्मेदारी तो मिली लेकिन पूर्वी यूपी में कितना असर डाल पाएंगी प्रियंका

यूं तो प्रियंका गांधी पार्टी जॉइन किए बिना ही पॉलिटिक्स में काफी पॉवरफुल थीं लेकिन पूर्वी उत्तर...
नई जिम्मेदारी तो मिली लेकिन पूर्वी यूपी में कितना असर डाल पाएंगी प्रियंका

यूं तो प्रियंका गांधी पार्टी जॉइन किए बिना ही पॉलिटिक्स में काफी पॉवरफुल थीं लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार मिलने के बाद औपचारिक तौर पर उन्होंने राजनीति में एंट्री कर ली है। प्रियंका गांधी की राजनीति में भूमिका को लेकर अलग-अलग चर्चाएं होती रही हैं लेकिन माना जा रहा है कि उनकी नई भूमिका के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलों के चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। प्रियंका के राजनीति में आने की अटकलें लंबे समय से लगती रही हैं लेकिन इन अटकलों को वह हमेशा टालती भी रही हैं। 

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन मानते हैं कि बसपा-सपा गठबंधन की राजनीति भी इससे प्रभावित हो सकती है। यानी मुस्लिम और अगड़ी जातियों का वोट भी कांग्रेस को जा सकता है। खासतौर पर पूरब की सीटों पर इसका असर देखने को मिल सकता है। प्रियंका की भी राजनीति में एक छवि बनी है। आम राय है कि उनमें लोगों या कार्यकर्ताओं से घुलने-मिलने का एक सहज गुण है। पिछले चुनावों के दौरान उन्होंने इसे साबित भी किया है। दूसरे लोग उनमें अपनी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते है।

उलझी हुई है पूरब की लड़ाई

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन कहते हैं कि राजनीति में उनकी एंट्री बेशक देर से ही सही लेकिन आगामी आम चुनावों के लिए अहम कही जा सकती है। खासतौर पर पूरब में एक नया समीकरण बन सकता है। सपा-बसपा गठबंधन पर भी प्रियंका असर डाल सकती हैं। सपा-बसपा का पश्चिम की करीब 25 सीटों पर तो असर माना जा सकता है लेकिन पूरब की लड़ाई पूरी तरह उलझी हुई है। यहां की सीटों का गणित अलग तरह का है। यहां छोटी-छोटी पार्टियां 2-4 सीटों पर मजबूत हैं लेकिन प्रियंका के आने के बाद मुस्लिम और अगड़ी जातियों का पूरा वोट कांग्रेस की तरफ जा सकता है। यानी पूरब की 55 सीटों पूरी तरह खुली हुई हैं और इस पर हवा किधर भी बह सकती है।

'भाजपा का राहुल के अलावा प्रियंका से भी मुकाबला'

अरविंद मोहन का कहना है कि राजनीति की सीमाओं के भीतर एक बड़े चुनाव से पहले कांग्रेस जो बड़ा दांव खेल सकती थी, यह वह दांव जरूर है। भाजपा को अब राहुल के अलावा प्रियंका का भी मुकाबला करना है। दूसरे दलों को अब अपने तालमेल या मोलतोल में प्रियंका का भी खयाल रखना है।

बदल सकता है मुस्लिमों का रूझान

2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार करते हुए विरोधियों के लिए कड़ी मुश्किल खड़ी कर दी थी। प्रियंका भले ही सक्रिय राजनीति में नहीं रही हैं, वह राजनीति की समझ रखती हैं। पिछले कई सालों से वह कांग्रेस पार्टी के नेताओं, महासचिवों के लगातार संपर्क में रही हैं।

राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका तेज समझी जाती हैं और उनके आने से कांग्रेस के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं। इससे न केवल उत्तर प्रदेश में पूरब की राजनीति की दिशा बदलेगी बल्कि पश्चिम के साथ अन्य राज्यों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। मसलन सपा-बसपा की कथित जाति आधारित राजनीति के सामने प्रियंका जाति से कहीं ऊपर जा सकती है। यानी सपा-बसपा के वोट बैंक में भी सेंध लगा सकती है और मुस्लिम भी अपना रूझान बदल सकता है। फिर उनके साथ नेहरू परिवार का नाम भी जुड़ा है।

राहुल की करीबी सलाहकार भी हैं

पार्टी में प्रियंका पर्दे के पीछे से रहकर अहम भूमिका निभाती रही हैं। वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सबसे विश्वसनीय और करीबी सलाहकार भी हैं। चुनाव से ठीक पहले प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार देना मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं में नया जोश देखने को मिल सकता है।

इन सबके बीच सवाल यह है कि 2019 के चुनाव का नक्शा क्या प्रियंका की उपस्थिति से बदलेगा? इसका जवाब तो चुनाव नतीजे ही देंगे लेकिन इतना तय है कि राजनीति में उनकी सक्रियता ने सभी दलों को सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया है।

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