राफेल डील को लेकर संसद में पिछले तीन दिनों से कांग्रेस और भाजपा में घमासान मचा है। कांग्रेस जहां इस डील में घोटाले का आरोप लगा रही है। वहीं, मोदी सरकार ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कांग्रेस पर गुमराह करने का आरोप लगाया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सरकार को क्लीन चिट दे चुका है जबकि कांग्रेस ने कोर्ट में सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस लगातार सरकार से सवाल पूछ रही है लेकिन सरकार ने सीधे तौर पर इनका जवाब नहीं दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार राफेल को एक लाख 30 हजार करोड़ की डील कह चुके तो लोकसभा में अरुण जेटली ने साफ किया है कि डील 58 हजार करोड़ की है। हालांकि कीमत को लेकर रक्षा मंत्री ने गोपनीयता का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया है। इन सबके बीच दिलचस्प ये है कि सवालों का सीधा जवाब देने के बजाय अब सरकार उल्टे कांग्रेस से ही सवाल पूछ रही है कि यूपीए शासन में डील क्यों नहीं हुई?
आइए जानते हैं कि राफेल पर कांग्रेस के सवालों पर सरकार का क्या है जवाब
सवालः मोदी सरकार ने 526 करोड़ के एक विमान को 1670 करोड़ में क्यों खरीदा?
वेपनाइज्ड राफेल की कीमत को सरकार देश की सुरक्षा और भारत-फ्रांस के बीच हुई। इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट के आर्टिकल 10 का हवाला देकर सरकार इसे गोपनीय बता रही है। कांग्रेस का आरोप है कि भारत ने 526 करोड़ रुपये के एक विमान को 1670 करोड़ में खरीदा है।
इस पर मोदी सरकार का कहना है कि चूंकि सरकार ने बेसिक एयरक्राफ्ट की जगह हथियारों से लैस एयरक्राफ्ट खरीदने की डील की है, इस नाते उसकी कीमत ज्यादा है। वित्त अरुण जेटली ने लोकसभा में यह दावा किया कि मौजूदा सरकार ने जो डील की है, उसके मुताबिक बेसिक एयरक्राफ्ट यूपीए की तुलना में नौ प्रतिशत और वेपनरी एयरक्राफ्ट 20 प्रतिशत सस्ता है।
सवालः यूपीए के 126 की तुलना में मोदी सरकार ने 36 विमानों की डील क्यों की?
इस पर सरकार का कहना है कि 126 राफेल विमान खरीदने के लिए यूपीए सरकार के समय कोई अंतिम समझौता नहीं हो सका था, इसलिए दॉसो को कोई डील फाइनल नहीं हुई थी। इस नाते जून, 2015 में 126 का प्रस्ताव (आरएफपी) वापस हुआ।
सवालः रिलायंस डिफेंस को विमान क्षेत्र का अनुभव नहीं, फिर डील का ठेका क्यों?
अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने पर सबसे ज्यादा घमासान मचा है। कांग्रेस का आरोप है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अनिल अंबानी को फायदा दिलाने के लिए राफेल डील का ठेका दिलाया।
जबकि मोदी सरकार का कहना है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की भूमिका नहीं रही, यह फैसला दॉसो एविएशन ने लिया है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि ऑफसेट पार्टनर तय करने का अधिकार निर्माता कंपनी को है, इसमें दोनों देशों की सरकारों का कोई दखल नहीं है। कितने पार्टनर होंगे, यह भी उसी कंपनी को तय करना होता है। यूपीए के समय ही शर्त बनी थी कि जो मूल निर्माता कंपनी है वो भारत में कलपुर्जो की आपूर्ति या रखरखाव के लिए खुद से भारतीय कंपनी को साझीदार बना सकती है।
सवालः 108 विमान एचएएल को बनाना था तो फिर राफेल डील से सरकारी कंपनी एचएएल को बाहर क्यों किया गया?
यूपीए-2 सरकार के दौरान दॉसो एविएशन के साथ एल-1 विक्रेता के तौर पर नवंबर,2011 में पहली बार डील को लेकर बातचीत शुरू हुई। तब तय हुआ था कि कुल 126 में से 108 विमानों को सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) बनाएगी और बाकी 18 विमान फ्रांस से डायरेक्ट मिलने थे।
वहीं, इस पर सरकार का जवाब है कि इसमें उसकी कोई भूमिका नहीं है। दॉसो को निर्धारित समय-सीमा के भीतर विमानों के निर्माण का भरोसा नहीं मिल सका। वार्ता में गतिरोध पैदा होने के कारण दॉसो ने एचएएल को डील में नहीं रखा। रक्षा मंत्री ने कहा कि स्टैंडिंग कमेटी ने भी उस वक्त एएचएल पर सवाल उठाए थे।
सवालः रिलायंस डिफेंस को क्या 30 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाने की कोशिश हुई?
बुधवार को लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली बता चुके हैं कि राफेल की पूरी डील ही कुल 58 हजार करोड़ रुपये की है। जिसमें ऑफसेट पार्टनर को करीब 30 हजार करोड़ रुपये के काम मिलेंगे। कुल सौ ऑफसेट पार्टनर हैं। ऐसे में रिलायंस डिफेंस को करीब आठ सौ करोड़ रुपये के ही काम मिलेंगे। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष एक लाख 30 हजार करोड़ की डील कह रहे हैं।
सवालः क्या डील में एयरफोर्स की आपत्ति को अनदेखा किया गया?
राहुल गांधी ने पूछा था कि बात सामने आ रही है कि एयरफोर्स को इस डील पर आपत्ति थी। इस पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण या सरकार की तरफ से कोई बात नहीं की गई।
सवालः क्या टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण होगा?
कांग्रेस का कहना है कि यूपीए के दौरान राफेल डील को लेकर बातचीत की शर्तों में टेक्नोलॉजी हस्तांतरण की भी बात थी जिससे भारत इन विमानों को बनाने में सक्षम होता। मगर मोदी सरकार ने जो डील फाइनल की, उसमें ऐसी व्यवस्था नहीं है।
सरकार भी यह बात मान चुकी है कि मौजूदा डील में टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण नहीं होगा।