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शिवराज की टक्कर में राहुल का 'कमल' पर दांव, इंदिरा गांधी के भरोसेमंद को मिली बड़ी जिम्मेदारी

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सत्ता को चुनौती देने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता...
शिवराज की टक्कर में राहुल का 'कमल' पर दांव, इंदिरा गांधी के भरोसेमंद को मिली बड़ी जिम्मेदारी

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सत्ता को चुनौती देने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता कमल नाथ को सौंपी है। नौ बार से सांसद रहे कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त हुए हैं। सूबे में लगातार तीन बार से खिलते ‘कमल’ के खिलाफ अब ‘कमलनाथ’ क्या गुल खिलाएंगे इस पर सबकी निगाहें टिक गई हैं।

आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के इस फैसले को बेहद अहम माना जा रहा है। हालांकि अब कमलनाथ अपनी इस भूमिका में कितना खरे उतरते हैं ये आने वाला समय बताएगा लेकिन सूबे में उनका राजनीतिक इतिहास कामयाबियों से भरा हुआ है। कमल नाथ का 1980 से छिंदवाड़ा संसदीय सीट पर कब्जा रहा है। यहां तक कि उन्हें युवा नेता प्रहलाद पटेल भी 2004 की भाजपा लहर में नहीं हरा सके।

कानपुर में जन्मे, छिंदवाड़ा से जीते

कमल नाथ का जन्म 18 नवम्बर 1946 को उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर में हुआ था। देहरादून के दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद श्री कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की। वो 34 साल की उम्र में वो छिंदवाड़ा से जीत कर पहली बार लोकसभा पहुंचे।

"इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमल नाथ"

1970 के दशक में संजय गांधी ने कमल नाथ को कांग्रेस में शामिल किया था। तब से लेकर अब तक वो कांग्रेस के साथ बने हुए हैं। गांधी परिवार से उनकी नजदीकी इतनी रही कि इमरजेंसी के दौरान नारा दिया गया था, "इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमल नाथ।"

वे ना केवल संगठन में बल्कि सरकार में भी अपना लोहा मनवाते रहे। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में कमलनाथ पर्यावरण मंत्री थे। रियो डी जेनेरो में अर्थ समिट में उनके कामों की तारीफ की गई थी।

जब नौ बार जीतने वाले कमलनाथ को मिली थी हार..

ऐसे तो राजनीति में कमलनाथ को अजेय समझा जाता रहा है। लेकिन एक दफा उन्हें भी हार झेलनी पड़ी थी। यह कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 1996 तक छिंदवाड़ा सीट से वे लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे। लेकिन 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को कांग्रेस से चुनावी मैदान में उतार दिया। कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ चुनाव जीत गईं। लेकिन कमलनाथ को दिल्ली में सांसद न रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया। कमलनाथ ने बहुत प्रयास किया की कि ये बंगला उनकी पत्नी के नाम एलॉट हो जाए। मगर उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसकी वजह से वह बंगला नहीं मिल सका। उधर कमलनाथ किसी उस बंगले को छोड़ने तैयार नहीं थे। आखिरकार उन्होंने अपनी पत्नी से संसद से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में उम्मीदवार बन गए।

1997 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने सुंदरलाल पटवा अपना प्रत्याशी घोषित किया। पटवा ने कड़ी टक्कर देते हुए कमलनाथ को उन्हीं के गढ़ में परास्त कर दिया। हालांकि अगले साल 1998 में फिर चुनाव हुए और पटवा कमलनाथ से हार गए। यानी हिसाब बराबर...

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