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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से संसद में हलचल, विपक्ष ने बताया ‘अप्रत्याशित और रहस्यमयी’

संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन, सोमवार शाम को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिकित्सा कारणों का...
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से संसद में हलचल, विपक्ष ने बताया ‘अप्रत्याशित और रहस्यमयी’

संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन, सोमवार शाम को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिकित्सा कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे राजनीतिक हलकों में अटकलें तेज हो गईं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने कहा कि वह ‘‘स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने’’ के लिए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं।

उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, "स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार, तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।"

74 वर्षीय धनखड़ ने अगस्त 2022 में पदभार ग्रहण किया था और उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था। राज्यसभा के सभापति धनखड़ का इस्तीफा संसद के मानसून सत्र के पहले दिन आया।

हाल ही में दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उनकी एंजियोप्लास्टी हुई थी और इस साल मार्च में उन्हें कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कुछ कार्यक्रमों में उनकी हालत ठीक नहीं दिखी, लेकिन संसद समेत अधिकांश सार्वजनिक कार्यक्रमों में वे जीवंत और ऊर्जावान दिखे।

राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने घटनापूर्ण कार्यकाल में, धनखड़ का विपक्ष के साथ कई बार टकराव हुआ, जिसने उन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव भी पेश किया था। उन्हें हटाने का प्रस्ताव, जो स्वतंत्र भारत में किसी वर्तमान उपराष्ट्रपति को हटाने का पहला मामला था, बाद में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था।

वीवी गिरि और आर वेंकटरमन के बाद, कार्यकाल के दौरान इस्तीफा देने वाले वे भारत के तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। गिरि और वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।

सरकार या सत्तारूढ़ भाजपा में से किसी की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया कि धनखड़ ने इस्तीफा क्यों दिया या उनका उत्तराधिकारी कौन हो सकता है। नियमों के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद के लिए "यथाशीघ्र" चुनाव कराए जाने चाहिए। हालांकि, राज्यसभा के उपसभापति नए उपराष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक सदन की कार्यवाही संभाल सकते हैं।

धनखड़ 2022 में उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार थे, जो राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष होते हैं। उनके इस्तीफे से अटकलें तेज हो गईं और कांग्रेस ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह "पूरी तरह अप्रत्याशित" है और "इसमें जो दिख रहा है उससे कहीं अधिक है।"

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति का अचानक इस्तीफा जितना हैरान करने वाला है, उतना ही समझ से परे भी है।"

रमेश ने बताया कि धनखड़ ने मंगलवार दोपहर एक बजे कार्य मंत्रणा समिति की बैठक तय की थी। कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्हें न्यायपालिका से जुड़ी कुछ बड़ी घोषणाएँ भी करनी थीं। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री उनसे अपना मन बदलने का आग्रह करेंगे क्योंकि यह राष्ट्रहित में होगा।

धनखड़ के 23 जुलाई को जयपुर में क्रेडाई राजस्थान की नवनिर्वाचित समिति के साथ बातचीत करने की भी उम्मीद है।

उनका अचानक इस्तीफा सरकार के लिए राज्य सभा में एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम के बाद आया है, क्योंकि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव का नोटिस उन्हें सौंपा गया था और उन्होंने सदन में इसका उल्लेख किया तथा महासचिव से आगे आवश्यक कदम उठाने को कहा।

यह घटनाक्रम सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक झटका है, जिसने लोकसभा में इसी तरह का नोटिस प्रायोजित किया था और विपक्ष को भी इसमें शामिल किया था।

अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने राष्ट्रपति मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रिपरिषद तथा सभी सांसदों को उनके कार्यकाल के दौरान सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया। इसमें उन्होंने लिखा, "मैं भारत की महामहिम माननीय राष्ट्रपति के प्रति उनके अटूट समर्थन और मेरे कार्यकाल के दौरान हमारे बीच बने सुखद और अद्भुत कार्य संबंध के लिए अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।"

उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, "मैं माननीय प्रधानमंत्री और सम्मानित मंत्रिपरिषद के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है।"

उन्होंने कहा, "सभी माननीय संसद सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह मिला है, वह सदैव मेरी स्मृति में रहेगा।"

धनखड़ ने यह भी कहा कि वह भारत के लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में प्राप्त अमूल्य अनुभवों और अंतर्दृष्टि के लिए बहुत आभारी हैं।

इसमें कहा गया, "इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति और अभूतपूर्व घातीय विकास को देखना और उसमें भाग लेना सौभाग्य और संतुष्टि की बात है। हमारे राष्ट्र के इतिहास के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना एक सच्चा सम्मान है।"

उन्होंने कहा, "इस प्रतिष्ठित पद को छोड़ते हुए, मैं भारत के वैश्विक उत्थान और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा हूं तथा इसके उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास रखता हूं।"

धनखड़ को देशभक्त बताते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि उनका इस्तीफा स्वीकार किया जाना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।

भाकपा सांसद पी.संदोष कुमार ने कहा कि यह घटनाक्रम काफी अप्रत्याशित है और "हमें नहीं पता कि इसके क्या कारण हैं।"

शिवसेना (यूबीटी) नेता आनंद दुबे ने कहा कि मानसून सत्र शुरू होने के दिन ही उनका इस्तीफा देना आश्चर्य पैदा करता है।

राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई 1951 को जन्मे धनखड़ ने दावा किया कि वह एक किसान के बेटे हैं और देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर पहुंचे हैं।

एक समय उन्हें "अनिच्छुक राजनेता" माना जाता था, लेकिन 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में राजनीतिक परिदृश्य में उनका फिर से उभरना कई लोगों को आश्चर्यचकित कर गया, ठीक उसी तरह जैसे उपराष्ट्रपति के पद पर उनका उदय हुआ था।

उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका को आड़े हाथों लिया तथा राज्यसभा में विपक्ष के साथ लगभग हर दिन उनका आमना-सामना हुआ।

धनखड़ ने इस महीने की शुरुआत में एक कार्यक्रम में कहा था कि वह "सही समय" पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे, बशर्ते "ईश्वरीय हस्तक्षेप" हो। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा था, "मैं सही समय पर, अगस्त 2027 में, ईश्वरीय हस्तक्षेप के अधीन, सेवानिवृत्त हो जाऊंगा।"

अपने वर्तमान पद से पहले, उन्होंने 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1990 से 1991 तक चंद्रशेखर मंत्रालय में संसदीय मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया, और 1989 से 1991 तक राजस्थान में झुंझुनू निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।

1993 से 1998 तक वे राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। वे भाजपा, कांग्रेस और जनता दल से जुड़े रहे हैं।

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