पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष चुने गए हैं। साय दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं। कहा जा रहा है पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की पसंद पर ही साय को प्रदेश अध्यक्ष बनाने फैसला लिया गया है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए चार नाम प्रमुख थे। इनमें ओबीसी वर्ग से पूर्व मंत्री एवं विधायक अजय चंद्राकर व सांसद विजय बघेल और आदिवासी वर्ग से पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय के साथ रामविचार नेताम का नाम चल रहा था । सामान्य वर्ग से सांसद संतोष पांडे का नाम भी सामने आया था। साय को विक्रम उसेंडी के स्थान पर राज्य ईकाई की जिम्मेदारी दी गई है। रामविचार नेताम तगड़े दावेदार थे, लेकिन रमन सिंह की पसंद न होने से पीछे हो गए। नेताम अभी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
आला नेताओं के लिया फीडबैक
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के पहले राष्ट्रीय संगठन ने पर्यवेक्षक भेजकर राज्य संगठन के तमाम आला नेताओं से फीडबैक लिया था। पर्यवेक्षक की रिपोर्ट मिलने के बाद आलाकमान ने साय के नाम पर मुहर लगा दी। विष्णुदेव साय पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेहद करीबी माने जाते है, इस लिहाज से संगठन के भीतर चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष भले ही साय होंगे, लेकिन कमान रमन सिंह के हाथों ही होगी। विष्णुदेव साय की नियुक्ति को आदिवासी वर्ग को साधने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. ओबीसी वर्ग से नेता प्रतिपक्ष चुने जाने के बाद यह लगभग साफ हो गया था कि राज्य संगठन की बागडोर आदिवासी वर्ग को सौंपा जाएगा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी आदिवासी वर्ग से हैं। विक्रम उसेंडी भी इसी रणनीति के तहत तब अध्यक्ष चुने गए थे।
सत्ता और संगठन में काम करने का अनुभव
साय के पास सत्ता और संगठन में काम करने का अनुभव उनके पास है। साय के नेतृत्व में बीजेपी संगठन एक मजबूत विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करता रहेगा। .प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन के पहले जे पी नड्डा बीजेपी के पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए, तब यह सुनिश्चित हो गया था कि अब बीजेपी हाईकमान ही प्रदेश अध्यक्ष को मनोनीत करेगा। नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद से ही राज्य में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी. चूंकि ओबीसी वर्ग से धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे, ऐसे में यह लगभग तय हो गया था कि आदिवासी वर्ग से ही प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। संगठन नेता इसके पीछे एक दलील यह देते हैं कि जिस आदिवासी वोट बैंक के बूते राज्य की सत्ता की दहलीज तक बीजेपी पहुंचती रही है।साल 2018 के चुनाव में यह वोट बैक बीजेपी से पूरी तरह खिसक गया। सभी सीटें कांग्रेस की झोली में चली गई, ऐसे में आदिवासी कोटे से ही अध्यक्ष बनाकर बीजेपी एक संदेश भी देना चाहती थी.साल 2006 से 2019 तक विष्णुदेव साय प्रदेश अध्य़क्ष की बागडोर संभाल चुके हैं। 2013 में विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा के चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रीय नेतृत्व ने विष्णुदेव साय को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी, उनके नेतृत्व में ही बीजेपी ने राज्य में लोकसभा चुनाव लड़ा था और 11 में से दस सीटों पर जीत दर्ज की थी। रायगढ़ लोकसभा सीट से लगातार चार बार जीत दर्ज कर चुके विष्णुदेव साय साल 2014 में मोदी मंत्रीमंडल में शामिल किए गए थे। केंद्रीय मंत्री बनाए जाने के बाद उनकी जगह धरमलाल कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।
आदिवासी वोटरों पर था पार्टी का ध्यान
कहा जा रहा है कि साय का नाम फरवरी में ही तय हो गया था, लेकिन, छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं ने दिल्ली जाकर नेतृत्व के समक्ष साय के नाम पर आपत्ति जताई थी। इस वजह से साय की नियुक्ति टल गई थी। इसके बाद कोरोना आ गया। अब साय के पैरोकार पार्टी नेताओं को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि आदिवासी वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनाने से आदिवासी वोटरों को पार्टी की ओर खींचा जा सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर बीजेपी को बुरी तरह मात खानी पड़ी थी। राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह भी आदिवासी वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष चाहते थे।