कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और बाद में इंदिरा गांधी के शासनकाल में सरदार बल्लभ भाई पटेल और मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत रत्न नहीं दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जिन लोगों ने नेहरू की आलोचना की या उनकी नितियों का विरोध किया उन्हें कांग्रेस के शासन काल खासकर नेहरू-गांधी राज में उचित सम्मान नहीं दिया गया। प्रसाद ने पूछा कि क्यों मौलाना आजाद को 1992 में भारत रत्न दिया गया जबकि उनका निधन 1958 में हुआ था। उन्होंने कहा, काफी समय तक शासन करने वाले परिवार का व्यवहार दर्शाता है कि जो लोग जवाहरलाल नेहरू के आलोचक रहे उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। मंत्री ने कहा, मेरा स्पष्ट विचार है कि कांग्रेस के शासन काल के दौरान सरदार पटेल की महान विरासत की उपेक्षा जानबूझकर की गई। इस बारे में इतिहास गवाह है। प्रसाद ने कहा, सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहर लाल नेहरू के बीच मतभेद के बारे में भी सब लोग जानते हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा, जयपाल रेड्डी ने कहा है कि नेहरू और पटेल के बीच कोई मतभेद नहीं थे और दस वर्षों तक उनका साथ रहा। रेड्डी कह रहे थे कि कानून मंत्री प्रसाद गैर कानूनी बात बोल रहे हैं। मैं गैर कानूनी नहीं बोल रहा था। मैं वास्तविकता बयां कर रहा था। प्रसाद ने पूछा कि भारत को एक करने वाले महान भारतीय पटेल को 1991 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्यों दिया गया जबकि 1950 में उनका निधन हो गया था। उन्होंने कहा, नेहरू पटेल की मृत्यू के बाद 14 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे और फिर उनकी बेटी इंदिरा गांधी 16 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहीं। फिर कई लोगों को अच्छे कारणों से भारत रत्न दिया गया लेकिन इस महान भारतीय सरदार पटेल की उपेक्षा क्यों की गई? उन्होंने कहा, जब पी वी नरसिम्हा राव 1991 में प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भारत रत्न दिया गया। रेड्डी ने कल कहा था कि भाजपा सरदार वल्लभभाई पटेल का इस्तेमाल जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधने में कर रही है और लौह पुरूष से वास्तव में इसका कोई लगाव नहीं है। हाल के समय में नेहरू पर भाजपा नेताओं की टिप्पणी के जवाब में रेड्डी ने कहा कि नेहरू और पटेल स्वतंत्रता संघर्ष में साथ-साथ थे और किसी मुद्दे पर उनमें मतभेद नहीं थे।