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एक देश, एक चुनाव: विपक्ष ने विधेयक को किया खारिज, कहा- सरकार नया संविधान लाएगी

विपक्ष ने मंगलवार को लोकसभा में पेश किए गए 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को खारिज कर दिया। रिपोर्ट्स के...
एक देश, एक चुनाव: विपक्ष ने विधेयक को किया खारिज, कहा- सरकार नया संविधान लाएगी

विपक्ष ने मंगलवार को लोकसभा में पेश किए गए 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को खारिज कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, विधेयक पेश किए जाने के बाद केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से अनुरोध करेंगे कि विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संयुक्त समिति को भेजा जाए।

इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 12 दिसंबर को मंजूरी दी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत के लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। दअरसल, सितंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें सबसे पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएंगे।

नया संविधान लाने का प्रयास: कांग्रेस

कांग्रेस ने कहा कि उसका मानना है कि यह विधेयक "असंवैधानिक" है और संविधान के "मूल ढांचे के खिलाफ है।" पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि भले ही भारतीय जनता पार्टी के एनडीए सहयोगी टीडीपी और जेडी(यू) "इसका खुलकर विरोध न करें, लेकिन वे इस विधेयक को नहीं चाहते हैं।" एएनआई से बात करते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य देश में "लोकतंत्र और जवाबदेही का गला घोंटना" है

उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि यह मूल ढांचे के खिलाफ है और इसका उद्देश्य इस देश में लोकतंत्र और जवाबदेही का गला घोंटना है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने 17 जनवरी को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर पूछा था कि कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार पर आपत्ति क्यों जता रही है।" उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने 30 नवंबर 1949 को इस संविधान को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह मनुस्मृति आदि के मूल्यों से प्रेरित नहीं है।

तानाशाही की ओर कदम: सपा

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस विधेयक की आलोचना करते हुए इसे "अलोकतांत्रिक" बताया और कहा कि यह "सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक" साबित होगा। विधेयक के खिलाफ़ चिंताओं की एक सूची साझा करते हुए सपा प्रमुख ने कहा कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो लोकतंत्र की जगह "निरंकुशता" आ जाएगी और देश "तानाशाही की ओर बढ़ जाएगा"

उन्होंने कहा, "ये लोग राज्यसभा को भी अपने अधीन कर लेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए 'एक देश-एक विधानसभा' का नया नारा देंगे। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे देश में राज्य को मूल मानकर 'राज्यसभा' की निरंतरता का संवैधानिक प्रावधान है। लोकसभा पांच साल की अवधि के लिए होती है।"

सपा प्रमुख ने कहा, "अगर भाजपा को लगता है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' अच्छी बात है, तो इसमें देरी क्यों, केंद्र और राज्य सरकारों को भंग कर तुरंत चुनाव कराएं। दरअसल, यह भी 'नारी शक्ति वंदन' जैसा ही नारा है।"

गलत, संविधान के खिलाफ: शिवसेना (यूबीटी)

शिवसेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी विधेयक की आलोचना की और आरोप लगाया कि इसमें "चुनाव प्रक्रिया से छेड़छाड़ की गई है।" उन्होंने कहा कि यह "दुर्भाग्यपूर्ण" है कि "इस तरह से संविधान पर हमला किया जा रहा है।"

उन्होंने समाचार एजेंसी एएनवाई से कहा, "इस तरह से संविधान पर हमला करना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। चुनाव प्रक्रिया से छेड़छाड़ करना, संघवाद के खिलाफ काम करना केंद्र सरकार द्वारा सत्ता को केंद्रीकृत करने का एक तरीका है।"

क्यों खास है यह बिल?

यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव रखता है। इसके साथ ही, अर्जुन मेघवाल केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन के लिए एक और विधेयक भी पेश कर सकते हैं। यह विधेयक दिल्ली,जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए आवश्यक बदलाव की बात करता है।


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