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बंटा विपक्ष,खनिज और कोयला विधेयक रास में पारित

केंद्र सरकार को आज राज्यसभा में विपक्षी दलों में फूट डालकर खान और खनिज विधेयक तथा कोयला खनन विधेयक पारित करवाने में सफलता मिली। ये दोनों विधेयक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारपोरेट विकास के लिए बहुत अहम थे और इन्हें पारित कराना उनके लिए बड़ी चुनौती भी थी।
बंटा विपक्ष,खनिज और कोयला विधेयक रास में पारित

बजट सत्र में एक महीने के अवकाश से जाने से पहले इन दोनों विधेयकों का राज्यसभा में पारित हो जाना मोदी सरकार के लिए खासी राहत की बात है। मोदी सरकार के इन विधेयकों के पक्ष में खासकर खनन विधेयक के पक्ष में जिस तरह से क्षेत्रीय क्षत्रपों को जुटाया गया है, वह भी बहुत दिलचस्प पहलू है। राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पर्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मतदान किया। बताया जाता है कि इन तमाम दलों को सहमति पर लाने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही कमान संभाल रखी थी। राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में राज्यसभा में सरकार के पक्ष में ऐसी सेंध और भी लग सकती है।

जनता दल (एकीकृत) ने वॉक आउट किया, जबकि कांग्रेस और वाम दलों ने खनन विधेयक के खिलाफ वोट डाला। ये विधेयक केंद्र सरकार के कॉरपोरेट के पक्ष वाले आर्थिक एजेंडे का हिस्सा थे और सरकार इन्हें पारित करवाने के लिए पूरा जोर लगाए हुई थी, क्योंकि वह बाजार को सही संदेश देने से चूकना नहीं चाहती थी। राज्यसभा में 117 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट दिया जबकि 69 के इनके विरोध में और दो ने वोटिंग में भाग नहीं लिया। वाम दलों ने इसे समीक्षा के लिए दोबारा संसदीय समिति के पास भेजने के लिए प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सदन ने मतदान के जरिए ठुकरा दिया। इस तरह से सरकार ने महत्वपूर्ण सुधार कार्यक्रमों के तहत आने वाले खान एवं खनिज संबंधी विधेयक को आज पारित करा दिया। यह विधेयक इससे संबंधित अध्यादेश का स्थान लेगा। इससे पहले सुधार कार्यक्रमों के तहत लाए गए बीमा क्षेत्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 से बढ़ा कर 49 प्रतिशत करने वाले बीमा कानून संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी मिल चुकी है।

इसी के साथ राज्यसभा ने आज कोयला विधेयक को भी 107 मतों पारित कर दिया,। इसके विपक्ष में 69 वोट पड़े। इसे अब सरकार 200 कोयला खदानों के रद्द हुए आवंटन की नीलामी फिर कर सकेगी। गौरतलब है कि आज जिन पार्टियों ने खनन विधेयक के पक्ष में मतदान किया वह मंगलवार को भू-अधिग्रहण विधेयक के विरोध में निकले मार्च में शामिल थीं।

इस विधेयक के जरिये 1957 के मूल अधिनियम में संशोधन किया गया है। विधेयक में खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए करने के साथ ही सरकारों की विवेकाधीन शक्तियों का समाप्त करने की दिशा में पहल की गई है। विवेकाधीन शक्तियों के चलते भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रही हैं। विधेयक में राज्यों को कई अधिकार दिए गए हैं। इसके माध्यम से मूल अधिनियम में नयी अनुसूची जोड़ी गई है तथा बाक्साइट, चूना पत्थर, मैगनीज जैसे कुछ खनिजों को अधिसूचित खनिजों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें खनन लाइसेंस की नई श्रेणी बनाई गई है। इसमें खनन के बारे में पट्टे की अवधि और पट्टे को बढ़ाए जाने की रूपरेखा का उल्लेख किया गया है।

 राज्यसभा में पारित विधेयक पर लोकसभा ने आरएसपी के एन.के. प्रेमचन्द्रन की ओर से पेश संशोधन को अस्वीकार करते हुए उच्च सदन द्वारा किए गए संशोधनों के साथ इसे ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इससे पहले उच्च सदन में कांग्रेस और वाम दलों को छोड़कर अधिकतर पार्टियों ने इसका समर्थन किया जबकि जदयू ने यह कह कर वाकआउट किया कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता है। उच्च सदन में इस विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा में भाग लेते हुए जदयू के पवन कुमार वर्मा ने कहा कि इस विधेयक को बनाते समय राज्यों से विचार विमर्श नहीं किया गया। तृणमूल कांगे्रस के डेरेक ओ ब्रायन ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि राज्यों को अधिकार दिये जाने के कारण उनकी पार्टी इस विधेयक का समर्थन कर रही है। संसद में खान एवं खनिज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने चर्चा के जवाब में कहा कि उनकी सरकार बहुमत के दम पर विपक्ष को दबाना नहीं चाहती है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कानून बन जाने से खनन क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव आएगा, रोजगार के अवसर बढेंगे और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।

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