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राष्ट्रपति ने लौटाया 'गुजरात आतंकवाद रोधी विधेयक'

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज गुजरात विधानसभा द्वारा पारित विवादास्पद आतंकवाद रोधी विधेयक को लौटाते हुए और अधिक सूचना मांगी है। राष्ट्रपति के लौटाए जाने के बाद विधेयक को वापस ले लिया गया।
राष्ट्रपति ने लौटाया 'गुजरात आतंकवाद रोधी विधेयक'

गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध विधेयक 2015 को राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को लौटाते हुए विधेयक के कुछ प्रावधानों के बारे में और अधिक जानकारी मांगी है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, गृह मंत्रालय गुजरात सरकार से अतिरिक्त जानकारी पाने के बाद उसे राष्ट्रपति को मुहैया करेगा। गृहमंत्रालय ने राष्ट्रपति को यह सूचना दी। इसके पहले मंत्रालय ने कहा कि वह विधेयक को वापस ले रहा है और उनकी मंजूरी के लिए अतिरिक्त जानकारी के साथ विधेयक सौंपेगा। पिछली संप्रग सरकार ने इस विधेयक को दो बार खारिज कर दिया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने इसे साल 2003 में पेश किया था जिसके बाद से यह लटकता आ रहा है।

 

यह विधेयक आरोपी के मोबाइल फोन की टैपिंग के जरिए जुटाए गए साक्ष्य की स्वीकार्यता या एक जांच अधिकारी के समक्ष दिए गए इकबालिया बयान को अदालत में मुहैया करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। इस विवादास्पद विधेयक को पिछले साल सितंबर में राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए उनके पास भेजा गया था। पिछले साल जुलाई में केंद्र की मोदी सरकार ने राज्य सरकार को विधेयक वापस भेजते हुए उससे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा उठाए गए कुछ खास मुद्दों को स्पष्ट करने को कहा था। आईटी मंत्रालय ने टेलीफोन बातचीत की टैपिंग को अधिकृत किए जाने और अदालत में साक्ष्य के तौर पर उन्हें स्वीकार किए जाने के विधेयक में मौजूद प्रावधानों पर ऐतराज जताया था। गुजरात सरकार ने आईटी मंत्रालय के उठाए गए ऐतराजों का पुरजोर खंडन किया था। अपने जवाब में गुजरात सरकार ने समवर्ती सूची में जिक्र किए गए विषयों का उल्लेख किया था, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बनाने का अधिकार रखते हैं। केंद्र सरकार ने अन्य केंद्रीय मंत्रालयों के साथ मशविरा करने के बाद आरोपपत्र दाखिल करने की समय सीमा को 90 से बढ़ा कर 180 दिन किए जाने के प्रावधान को अपनी मंजूरी दे दी थी।

 

गुजरात विधानसभा ने मार्च 2015 में यह सख्त विधेयक पारित करते हुए उन विवादास्पद प्रावधानों को बनाए रखा था जिसके चलते दो बार पहले भी इस विधेयक को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था। इस विधेयक को सबसे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2004 में खारिज किया था। दोनों ही मौकों पर तत्कालीन संप्रग सरकार ने राष्ट्रपति से विधेयक को खारिज करने की सिफारिश करते हुए कहा था कि विधेयक के कई प्रावधान केंद्रीय कानून, गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अनुरूप नहीं हैं।

 

 

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