मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल का आखिरी मानसून संसद सत्र 18 जुलाई से शुरू हो गया। विपक्षी पार्टियों ने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की सरकार को कई मुद्दों पर घेरते हुए अविश्वास का प्रस्ताव रखा। लोकसभा अध्यक्ष ने इसे स्वीकार कर लिया है और अब 20 जुलाई को इस पर संसद में चर्चा होगी। आइए, जानते हैं कि यह अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है, सबसे पहले भारतीय संसद में यह कब आया।
अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे पारंपरिक रूप से विपक्ष द्वारा संसद में सरकार को हराने या कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है यह प्रस्ताव संसदीय मतदान द्वारा पारित किया जाता है या अस्वीकार किया जाता है।
ऐसे तो संविधान में अविश्वास प्रस्ताव की कोई चर्चा नहीं है। लेकिन अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है।
आमतौर पर जब संसद अविश्वास पर वोट करती है या वह विश्वास मत में विफल रहती है, तो किसी सरकार को दो तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी होती है- त्यागपत्र देना या संसद को भंग करने और आम चुनाव का अनुरोध।
पहली बार भारतीय संसद के इतिहास में अगस्त 1963 में जेबी कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट पड़े थे।
पहला अविश्वास प्रस्ताव नेहरू सरकार के विरोध में आया। तब से लेकर अब तक संसद में 25 बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं।