रियासतों का विलय कराकर देश को एक सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह धरती आबा, झारखंड में आदिवासियों के भगवान, अंग्रेजों से लोहा लेने वाले बिरसा मुंडा भी अब नहीं हैं। मगर पटेल की तरह बिरसा मुंडा को भी हाईजैक करने की तैयारी चल रही है। पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है तो गुजरात में नर्मदा नदी के करीब सरकार पटेल में अभूतपूर्व विशाल मूर्ति ने एक नये आंदोलन सा माहौल बनाया गया। अब बिरसा मुंडा की जयंती से कुछ उसी अंदाज में भाजपा एजेंडा सेट कर रही है।
बिरसा मुंडा की जयंती यानी 15 नवंबर को हर साल जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया है। तो एक सप्ताह तक जयंती के मौके पर विभिन्न तरह के कार्यक्रम होंगे। केंद्रीय कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दी है। इसी दिन यानी 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची के पुराने बिरसा मुंडा जेल जहां बिरसा मुंडा ने अंतिम सांसे ली थीं, जो अब झारखंड के आदिवासी शहीदों की स्मृति वाला बिरसा मुंडा स्मृति पार्क बन गया है का ऑनलाइन उद्घाटन करने वाले हैं। हालांकि खुद उस दिन भोपाल में जाजातीय गौरव दिवस पर आयोजित समारोह में शामिल होंगे। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की पिछले माह रांची में ही केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई उसमें बिरसा जयंती को देश भर में राष्ट्रीय पर्व के रूप में जनजातीय गौरव दिवस का प्रस्ताव भी पारित हुआ।
केंद्रीय सरकार की जनजातीय से जुड़ी योजनाओं की लंबी फेहरिश्त पेश करते हुए गिनाया गया कि आजादी के बाद देश में पहली बार अनुसूचित जनजाति से दो महिला मंत्री सहित 8 केंद्रीय मंत्री एवं तीन राज्यपाल बनाये गये। देश में किसी भी प्रदेश का आदिवासी हो जहां रह रहा है, आरक्षण का लाभ मिले, केंद्र की भांति राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग एवं जनजाति वित्त निगम का गठन करे, आदिवासियों की जमीन की रक्षा हो जो जमीन उनके हाथ से निकल गया है की वापसी, वन क्षेत्रों में निवास करने वालों को भूमि का मालिकाना हक जैसी मांग उठी। रही सही कसर झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने पूरी कर दी।
इसी सप्ताह 51 वें राज्यपाल सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रपति को बताया राज्य सरकार ने राज्यपाल की पूर्व सहमति और स्वीकृति के बिना ही टीएसी (ट्राइवल एडवाइजरी कमेटी) के गठन और सदस्यों की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को समाप्त कर दिया है। यह भी बताया कि राज्य में सरना धर्म कोड लागू करने की निरंतर मांग उठ रही है। इसे लेकर कई प्रतिनिधिमंडल उनसे राजभवन में मिले हैं हालांकि आधिकारिक रूप से यह मामला अभी तक उनके समक्ष नहीं आया है। यानी आदिवासियों को लेकर जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड के झामुमो के बड़े एजेंडे पर भी हमला कर दिया। भाजपा के इस अभियान से आदिवासियों में पैठ रखने वाली पार्टी झामुमो को गहरे तितकी लगी। लगा उनके बिरसा को हाईजैक किया जा रहा है।
दरअसल जनजातीय इलाकों की उपेक्षा और विकास के सवाल पर लंबे आंदोलन के बाद सन् 2000 में अलग झारखंड अस्तित्व में आया। भाजपा अलग वनांचल राज्य का राग रटती रही। मगर अलग राज्य का वजूद इस सहमति के साथ आकार ले पाया कि इसका नाम वनांचल नहीं झारखंड होगा। साथ ही बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर यानी 15 नवंबर को यह अस्तित्व में आयेगा। यही हुआ भी। आदिवासियों के बीच गहरी पैठ रखने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा को पहली नजर में ही अलग प्रदेश के नाम से फायदा मिल गया जो उसकी पार्टी का था और बिरसा मुंडा पर प्रवल हकदारी का भी संदेश गया। मूलत: बिरसा को झारखंड के आदिवासी ही बिरसा भगवान कहते हैं। मगर भाजपा की नजर बिरसा के बहाने पूरे देश के आदिवासियों पर है। जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड का मामला झारखंड से निकलकर राष्ट्रीय फलक पर पहुंच रहा है। सरना कोड पर फंसी भाजपा ने एक प्रकार से दूसरा चाल भी चल दिया है। झामुमो को यह रास नहीं आ रहा। उसने भाजपा के गौरव दिवस को लेकर कई गंभीर सवाल उठाकर भाजपा को घेरने की कोशिश की है, वहीं मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने 15 नवंबर बिरसा की जयंती पर, बिरसा के गांव खूंटी जिला के उलिहातू से जन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रहे हैं। मौके पर बिरसा मुंडा के वंशजों को भी सम्मानित किया जायेगा।
राज्यपाल ने जब टीएसी के अधिकार में कटौती का सवाल उठाया तो झामुमो ने सफाई दी। पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राज्यपाल के अधिकार में कोई कटौती नहीं हुई है। भ्रम पैदा किया जा रहा है। टीएसी शुद्ध रूप से राज्यपाल की सलाहकार समिति है जो राज्यपाल को सलाह देती है। उस पर राज्यपाल को निर्णय करना है। और टीएसी का गठन करना मंत्रिमंडल का काम है। सुप्रियो ने कहा कि बिरसा जयंती को राष्ट्रीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का भाजपा नाटक कर रही है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पांचवीं अनुसूची और जनगणना में सरना धर्म कोड के मसले पर चर्चा क्यों नहीं हुई जबकि यह आदिवासियों की जड़ से जुड़ा सवाल है।
हेमंत सरकार ने विधानसभा और जनजातीय सलाहकार परिषद से प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति को भेने का काम किया है ताकि जनगणना में अन्य धर्मों के अतिरिक्त सरना धर्म को भी स्थान मिले। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश का पहला विद्रोह 1831 में वीर बुधु भगत के नेतृत्व में कोल विद्रोह हुआ। उस वीर बुधु भगत की जन्मभूमि सिलगाई में जमीन अधिग्रहण हो रहा है। इसी तरह मंडल डैम के नाम पर नीलांबर-पीताबंर के दो गांव भी डूब जायेंगे। शहीदों की पहचान मिटाकर आदिवासियों का कैसा गौरव दिवस मनेगा। बिरसा मुंडा के नाम पर बने एयरपोर्ट को भारत सरकार ने बेचने का काम किया है। सही मायने में जनजातीय गौरव तब होगा जब जनजाति को पांचवीं और छठी अनुसूची का अधिकार दे दिया जाये। पेसा कानून पूरी तरह लागू कर दिया जाये। जनगणना में सरना धर्म कोड को लागू कर दिया जाये। आदिवासियों के सवाल पर तीखी होती जंग, आगे और भी रंग दिखायेगा।